बुंदेली नवगीत 
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१. नाग, साँप, बिच्छू भय ठाँड़े
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१. नाग, साँप, बिच्छू भय ठाँड़े
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 नाग, साँप, बिच्छू भय ठाँड़े,
 धर संतन खों भेस।
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 हात जोर रय, कान पकर रय,
 वादे-दावे खूब।
 बिजयी हो झट कै दें जुमला,
 मरें नें चुल्लू डूब।।
 की को चुनें, नें कौनउ काबिल,
 सरम नें इनमें लेस।
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 सींग मार रय, लात चला रय,
 फुँफकारें बिसदंत।
 डाकू तस्कर चोर बता रय,
 खुद खें संत-महंत।
 भारत मैया हाय! नोच रइ
 इनैं हेर निज केस।
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 जे झूठे, बे लबरा पक्के,
 बाकी लुच्चे-चोर।
 आपन मूँ बन रय रे मिट्ठू,
 देख ठठा रय ढोर।
 टी वी पे गरिया रय
 भत्ते बढ़वा, लोभ असेस।
 ***२. राम रे!
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 राम रे!
 कैसो निरदै काल?
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 भोर-साँझ लौ गोड़ तोड़ रए
 कामचोर बे कैते।
 पसरे रैत ब्यास गादी पै
 भगतन संग लपेटे।
 काम पुजारी गीता बाँचें
 गोपी नचें निढाल-
 आँधर ठोंके ताल
 राम रे!
 बारो डाल पुआल।
 राम रे!
 कैसो निरदै काल?
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 भट्टी देह, न देत दबाई
 पैलउ माँगें पैसा।
 अस्पताल मा घुसे कसाई
 थाने अरना भैंसा।
 करिया कोट कचैरी घेरे
 बकरा करें हलाल-
 बेचें न्याय दलाल
 राम रे !
 लूट बजा रए गाल।
 राम रे!
 कैसो निरदै काल?
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 झिमिर-झिमिर-झम बूँदें टपकें
 रिस रओ छप्पर-छानी।
 दागी कर दई रौताइन की
 किन नें धुतिया धानी?
 अँचरा ढाँके, सिसके-कलपे
 ठोंके आपन भाल
 राम रे !
 जीना भओ मुहाल।
 राम रे!
 कैसो निरदै काल?
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- ३. हम का कर रए
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- हम का कर रए?जे मत पूछो,तुम का कर रएजे बतलाओ?*हमरो स्याह सुफेद सरीखोतुमरो धौला कारो दीखोपंडज्जी ने नोंचो-खाओहेर सनिस्चर भी सरमाओघना बाज रओ थोथा दानाठोस पकाहिल-मिल खा जाओहम का कर रए?जे मत पूछो,तुम का कर रएजे बतलाओ?*हमरो पाप पुन्न सें बेहतरतुमरो पुन्न पाप सें बदतरहोते दिख रओ जा जादातरऊपर जा रओ जो बो कमतररोन न दे मारे भी जबराखूं खें आँसूचुप पी जाओहम का कर रए?जे मत पूछो,तुम का कर रएजे बतलाओ?
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- अभिनव प्रयोग:
 ४. होरा भूँज रओ*होरा भूँज रओ छाती पै
 आरच्छन जमदूत
 
 पैदा होतई बनत जा रए
 
 बाप बाप खें, पूत
 
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 लोकनीति बनबास पा रई
 
 राजनीति सिर बैठ
 
 नाच नचाउत नित तिगनी खों
 
 घर-घर कर घुसपैठ
 
 नाम आधुनिकता को जप रओ
 
 नंगेपन खों भूत
 
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 नींव बगैर मकान तान रय
 
 भौत सयाने लोग
 
 त्याग-परिस्रम खों तलाक दें
 
 मनो चाह रय भोग
 
 फूँक रए रे, मिली बिरासत
 
 काबिल भए सपूत
 
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 ईंट-ईंट में खेंच दिवारें
 
 तोड़ रए हर जोड़
 
 लाज-लिहाज कबाड़ बता रए
 
 बेसरमी हित होड़
 
 राह बिसर कें राह दिखा रओ
 
 सयानेपन खों भूत
 
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- भारतवारे बड़े लड़ैया
 बिनसें हारे पाक सियार
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 घेर लओ बदरन नें सूरज
 मचो सब कऊँ हाहाकार
 ठिठुरन लगें जानवर-मानुस
 कौनौ आ करियो उद्धार
 बही बयार बिखर गै बदरा
 धूप सुनैरी कहे पुकार
 सीमा पार छिपे बनमानुस
 कबऊ न पइयो हमसें पार
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 एक सिंग खों घेर भलई लें
 सौ वानर-सियार हुसियार
 गधा ओढ़ ले खाल सेर की
 देख सेर पोंके हर बार
 ढेंचू-ढेचूँ रेंक भाग रओ
 करो सेर नें पल मा वार
 पोल खुल गयी, हवा निकर गयी
 जान बखस दो करें पुकार
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 (प्रयुक्त छंद: आल्हा, रस: वीर, भाषा रूप: बुंदेली)
 
- ५. भारतवारे बड़े लड़ैया
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- कओ बाद में, सोचो पैले।
- मन झकास रख, कपड़े मैले।।
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- रैदासों सें कर लई यारी।
- रुचें नें मंदिर पंडित थैले।।
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- शीश नबा लओ, हो गओ पूजन।
- तिलक चढ़ोत्री?, ठेंगा लै ले।।
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- चाहत हो पीतम सें मिलना?
- उठो! समेटो, नाते फैले।।
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- जोड़ मरे, जा रए छोड़कर
- लिए मनुज तन, बे थे बैले।।
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- बुन्देली मुक्तिका:
- हमाये पास का है?.
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- हमाये पास का है जो तुमैं दें?
- तुमाये हात रीते तुमसें का लें?
- आन गिरवी बिदेसी बैंक मां है
- चोर नेता भये जम्हूरियत में।।
- रेत मां खे रए हैं नाव अपनी
- तोड़ परवार अपने हात ही सें।।
- करें गलती न मानें दोष फिर भी
- जेल भेजत नें कोरट अफसरन खें।।
- भौत है दूर दिल्ली जानते पै
- हारियो नें 'सलिल मत बोलियों टें।।
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- बुंदेली दोहा सलिला
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 जब लौं बऊ-दद्दा जिए, भगत रए सुत दूर
 अब काए खों कलपते?, काए हते तब सूर?
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 खूबई तौ खिसियात ते, दाबे कबऊं न गोड़
 टँसुआ रोक न पा रए, गए डुकर जग छोड़
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 बने बिजूका मूँड़ पर, झेलें बरखा-घाम
 छाँह छीन काए लई, काए बिधाता बाम
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 ए जी!, ओ जी!, पिता जी, सुन खें कान पिराय
 'बेटा' सुनबे खों जिया, हुड़क-हुड़क अकुलाय
 
 
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