कुण्डलिया
*
हिंदू मरते हों मरें, नहीं कहीं भी जिक्र।
काँटा चुभे न अन्य को, सबको इसकी फ़िक्र।।
सबको इसकी फ़िक्र, किस तरह सत्ता पाएँ?
स्वार्थ साध लें अपना, लोग भाड़ में जाएँ।।
कैसे बचे घास जब रखवाले चरते हों?
नहीं किसी को फ़िक्र, अगर हिन्दू मरते हों।।
*
*
हिंदू मरते हों मरें, नहीं कहीं भी जिक्र।
काँटा चुभे न अन्य को, सबको इसकी फ़िक्र।।
सबको इसकी फ़िक्र, किस तरह सत्ता पाएँ?
स्वार्थ साध लें अपना, लोग भाड़ में जाएँ।।
कैसे बचे घास जब रखवाले चरते हों?
नहीं किसी को फ़िक्र, अगर हिन्दू मरते हों।।
*
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें