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गुरुवार, 21 सितंबर 2017

hindi ke naye chhand 3- sadhna chhand

हिंदी में नए छंद : ३. 
पाँच मात्रिक याज्ञिक जातीय साधना छंद 
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प्रात: स्मरणीय जगन्नाथ प्रसाद भानु रचित छंद प्रभाकर के पश्चात हिंदी में नए छंदों का आविष्कार लगभग नहीं हुआ। पश्चातवर्ती रचनाकार भानु जी के ग्रन्थ को भी आद्योपांत कम ही कवि पढ़-समझ सके। २-३ प्रयास भानु रचित उदाहरणों को अपने उदाहरणों से बदलने तक सीमित रह गए। कुछ कवियों ने पूर्व प्रचलित छंदों के चरणों में यत्किंचित परिवर्तन कर कालजयी होने की तुष्टि कर ली। संभवत: पहली बार हिंदी पिंगल की आधार शिला गणों को पदांत में रखकर छंद निर्माण का प्रयास किया गया है। माँ सरस्वती की कृपा से अब तक ३ मात्रा से दस मात्रा तक में २०० से अधिक नए छंद अस्तित्व में आ चुके हैं। इन्हें सारस्वत सदन में प्रस्तुत किया जा रहा है। आप भी इन छंदों के आधार पर रचना करें तो स्वागत है। शीघ्र ही हिंदी छंद कोष प्रकाशित करने का प्रयास है जिसमें सभी पूर्व प्रचलित छंद और नए छंद एक साथ रचनाविधान सहित उपलब्ध होंगे।
छंद रचना सीखने के इच्छुक रचनाकार इन्हें रचते चलें तो सहज ही कठिन छंदों को रचने की सामर्थ्य पा सकेंगे।
साधना  छंद
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विधान:
प्रति पद ५ मात्राएँ।
पदांत: रगण।
सूत्र: र, रगण, राजभा, २१२।
उदाहरण:
गीत-
रात है 
प्रात है 
वक़्त की 
बात है  
ऊगता 
जो यहाँ 
डूबता 
वो सदा।  
डूबता 
जो रहा। 
ऊगता 
है वही। 
मात में 
जीत है। 
जीत में 
मात है। 

वक़्त की 
बात है  

स्वार्थ का 
जाप है। 
पुण्य भी 
पाप है। 
दीखता 
संत जो 
भोगता 
शाप है। 
भोर के 
बाद में  
सांझ है 
रात है   

वक़्त की 
बात है  

 
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