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बुधवार, 20 सितंबर 2017

doha

दोहा सलिला 
माटी के संसार का, माटी सा दस्तूर
श्वास-आस माटी मुई, माटी ही संतूर
*
माटी से माटी मिले, माटी होती दूर
माटी खिल-खिल झर रही, माटी पर है नूर
*
माटी माटी पर करे, माटी मलकर नेह
माटी माटी से मिले, होकर 'सलिल' विदेह
*
माटी माटी से मिले, माटी को नव देह 
निराकार साकार हो, पा माटी का गह 
माटी से मत दूर रह, माटी से कर प्यार 
माटी से संसार रच, खेले ईश कुम्हार 
*


गीत 
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काश! कभी आ जाओ  १२ 
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कभी-कभी ऐसा लगता  १४
धीरे से तुम्हें पुकारूँ       १४
और तुम आ जाओ !
एक शाम हो सुहानी सी
मैं तुम्हारी आँखों मे देखूं
और तुम मुस्कुरावो !
ॠतु बसंत में भौरे गायें
मैं मिलन प्रेम गीत लिखूँ
और तुम गुनगुनावो !
बात ही बात में प्यार से
सचमुच सा मैं रूठ जाऊँ
और तुम मुझे मनावो !
तेरे इंतज़ार की घड़ियों मे
मैं टूट कर न बिखर जाऊँ
अब तो तुम आ जावो ।

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