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गुरुवार, 28 सितंबर 2017

कुंडलिया.
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भाव-भेद को जानता,
भेद-भाव से दूर.
सूर न सूरज पर न हो,
राग-रंग में चूर.
राग-रंग में चूर,
न उषा-दुपहरी देखे.
और न संध्या-निशा,
कहाँ हैं करता लेखे.
मन मंजूषा नहीं,
खोलता सूर्य-स्वभाव.
सलिल-धार में बिम्ब,
निहारे औरतों भाव.
...

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