हिंदी के नए छंद ४
पाँच मात्रिक याज्ञिक जातीय हिमालय छंद
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प्रात: स्मरणीय जगन्नाथ प्रसाद भानु रचित छंद प्रभाकर के पश्चात हिंदी में नए छंदों का आविष्कार लगभग नहीं हुआ। पश्चातवर्ती रचनाकार भानु जी के ग्रन्थ को भी आद्योपांत कम ही कवि पढ़-समझ सके। २-३ प्रयास भानु रचित उदाहरणों को अपने उदाहरणों से बदलने तक सीमित रह गए। कुछ कवियों ने पूर्व प्रचलित छंदों के चरणों में यत्किंचित परिवर्तन कर कालजयी होने की तुष्टि कर ली। संभवत: पहली बार हिंदी पिंगल की आधार शिला गणों को पदांत में रखकर छंद निर्माण का प्रयास किया गया है। माँ सरस्वती की कृपा से अब तक ३ मात्रा से दस मात्रा तक में २०० से अधिक नए छंद अस्तित्व में आ चुके हैं। इन्हें सारस्वत सदन में प्रस्तुत किया जा रहा है। आप भी इन छंदों के आधार पर रचना करें तो स्वागत है। शीघ्र ही हिंदी छंद कोष प्रकाशित करने का प्रयास है जिसमें सभी पूर्व प्रचलित छंद और नए छंद एक साथ रचनाविधान सहित उपलब्ध होंगे। भवानी, राजीव तथा साधना छंदों के पश्चात प्रस्तुत है हिमालय छंद।
छंद रचना सीखने के इच्छुक रचनाकार इन्हें रचते चलें तो सहज ही कठिन छंदों को रचने की सामर्थ्य पा सकेंगे।
हिमालय छंद
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विधान:
प्रति पद ५ मात्राएँ।
पदांत: जगण।
सूत्र: ज ल, जगण + लघु, जभान + लघु , १२१ १।
ल भ, लघु + भगण, लघु + भानस, १ २११।
उदाहरण:
मुक्तिका-
अदावत
पाँच मात्रिक याज्ञिक जातीय हिमालय छंद
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प्रात: स्मरणीय जगन्नाथ प्रसाद भानु रचित छंद प्रभाकर के पश्चात हिंदी में नए छंदों का आविष्कार लगभग नहीं हुआ। पश्चातवर्ती रचनाकार भानु जी के ग्रन्थ को भी आद्योपांत कम ही कवि पढ़-समझ सके। २-३ प्रयास भानु रचित उदाहरणों को अपने उदाहरणों से बदलने तक सीमित रह गए। कुछ कवियों ने पूर्व प्रचलित छंदों के चरणों में यत्किंचित परिवर्तन कर कालजयी होने की तुष्टि कर ली। संभवत: पहली बार हिंदी पिंगल की आधार शिला गणों को पदांत में रखकर छंद निर्माण का प्रयास किया गया है। माँ सरस्वती की कृपा से अब तक ३ मात्रा से दस मात्रा तक में २०० से अधिक नए छंद अस्तित्व में आ चुके हैं। इन्हें सारस्वत सदन में प्रस्तुत किया जा रहा है। आप भी इन छंदों के आधार पर रचना करें तो स्वागत है। शीघ्र ही हिंदी छंद कोष प्रकाशित करने का प्रयास है जिसमें सभी पूर्व प्रचलित छंद और नए छंद एक साथ रचनाविधान सहित उपलब्ध होंगे। भवानी, राजीव तथा साधना छंदों के पश्चात प्रस्तुत है हिमालय छंद।
छंद रचना सीखने के इच्छुक रचनाकार इन्हें रचते चलें तो सहज ही कठिन छंदों को रचने की सामर्थ्य पा सकेंगे।
हिमालय छंद
*
विधान:
प्रति पद ५ मात्राएँ।
पदांत: जगण।
सूत्र: ज ल, जगण + लघु, जभान + लघु , १२१ १।
ल भ, लघु + भगण, लघु + भानस, १ २११।
उदाहरण:
मुक्तिका-
अदावत
करो मत।
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शरारत
तजो मत।
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क़यामत?
डरो मत।
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इनायत
चहो मत।
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चहो मत।
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शिकायत
धरो मत।
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किफायत
हरो मत।
हरो मत।
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salil.sanjiv@gmail.com, ९४२५१८३२४४
http://divyanarmada.blogspot.com
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