कुल पेज दृश्य

रविवार, 8 अगस्त 2010

कविता: उम्मीद की किरण संजीव 'सलिल'

कविता:
उम्मीद की किरण
संजीव 'सलिल'
*

















*
बहुत कम हैं जो
सच को कह पाते हैं
उनसे भी कम हैं
जो सच को सह पाते हैं
अधिकांश तो
स्वार्थ और झूठ की
बाढ़ में बह जाते हैं.
रोशनी की लकीर
बनते और बनाते हैं वही-
जो सच को गह पाते हैं.
वे भले ही सच की
तह नहीं पाते हैं, किन्तु
सच को सहने और कहने की
वज़ह बन जाते हैं.
असच के सामने
तन जाते हैं.
उम्मीद की किरण
बनकर जगमगाते हैं.

************

कोई टिप्पणी नहीं: