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गुरुवार, 5 अगस्त 2010

मुक्तिका: छिप सकें आँसू... ---------संजीव 'सलिल'

मुक्तिका:
संजीव 'सलिल'
छिप सकें आँसू...
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छिप सकें आँसू, समय कोशिश लबादा दे गया.
बनावट को मात, सच का रूप सादा दे गया..

भलाई से भला मेरा हो नहीं पाया तनिक.
उपासे को विटामिन डॉक्टर ज़ियादा दे गया..
क़र्ज़ का जो मर्ज़ है वह तो कभी मिटता नहीं.
'और ले-ले क़र्ज़' कह, चुभता तगादा दे गया..

             आँख में दी झोंक उसने धूल इसका गम न कम.
             वह भरी बरसात में गीला बुरादा दे गया..

              ले गया अल्हड़पना मस्ती औ' सपनों का नगर.
              होश ज्यों सम्हला 'सलिल' निज बोझ लादा दे गया..

              मत न मत को व्यर्थ करना, उसे दो चाहो जिसे.
              दिया जिसको भी 'सलिल' वो झूठा वादा दे गया..
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