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शनिवार, 9 अप्रैल 2022

हास्य दोहे, नवगीत, तंत्रोक्त रात्रिसूक्त, समीक्षा, उर्वशी,अनिता रश्मि, साधना वर्मा,संजीव वर्मा 'सलिल'

कृति चर्चा :
२१ श्रेष्ठ बुंदेली लोक कथाएँ मध्यप्रदेश : लोक में नैतिकता अब भी हैं शेष
समीक्षक ; प्रो. (डॉ.) साधना वर्मा, सेवानिवृत्त प्राध्यापक,  
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कृति विवरण : २१ श्रेष्ठ बुंदेली लोक कथाएँ मध्य प्रदेश, संपादक आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल', प्रथम संस्करण २०२२, आकार २१.५ से.मी.x १४ से.मी., आवरण बहुरंगी लेमिनेटेड पेपरबैक, पृष्ठ संख्या ७०, मूल्य १५०/-, प्रकाशक डायमंड पॉकेट बुक्स नई दिल्ली। 
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लोक कथाएँ ग्राम्यांचलों में पीढ़ी दर पीढ़ी कही-सुनी जाती रहीं ऐसी कहानियाँ हैं जिनमें लोक जीवन, लोक मूल्यों और लोक संस्कृति की झलक अंतर्निहित होती है। ये कहानियाँ श्रुतियों की तरह मौखिक रूप से कही जाते समय हर बार अपना रूप बदल लेती हैं। कहानी कहते समय हर वक्ता अपने लिए सहज शब्द व स्वाभाविक भाषा शैली का प्रयोग करता है। इस कारण इनका कोई एक  स्थिर रूप नहीं होता। इस पुस्तक में हिंदी के वरिष्ठ साहित्य साधक आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' ने देश के केंद्र में स्थित प्रांत मध्य प्रदेश की एक प्रमुख लोकभाषा बुंदेली में कही-सुनी जाती २१ लोक कथाएँ प्रस्तुत की हैं। पुस्तकारंभ में प्रकाशक नरेंद्र कुमार वर्मा द्वारा भारत की स्वतंत्रता के ७५ वे वर्ष में देश के सभी २८ राज्यों और ९ केंद्र शासित प्रदेशों से संबंधित नारी मन, बाल मन, युवा मन और लोक मन की कहानियों के संग्रह प्रकाशित करने की योजना की जानकारी दी है। 

पुरोवाक के अन्तर्गत सलिल जी ने पाठकों की जानकारी के लिये लोक कथा के उद्गम, प्रकार, बुंदेली भाषा के उद्भव तथा प्रसार क्षेत्र की लोकोपयोगी जानकारी दी है। लोक कथाओं को चिरजीवी बनाने के लिए सार्थक सुझावों ने संग्रह को समृद्ध किया है। लोक कथा ''जैसी करनी वैसी भरनी'' में कर्म और कर्म फल की व्याख्या है। लोक में जो 'बोओगे वो काटोगे' जैसे लोकोक्तियाँ चिरकाल से प्रचलित रही हैं। 'भोग नहीं भाव' में राजा सौदास तथा चित्रगुप्त जी की प्रसिद्ध कथा वर्णित है जिसका मूल पदम् पुराण में है। यहाँ कर्म में अन्तर्निहित भावना का महत्व प्रतिपादित किया गया है। लोक कथा 'अतिथि देव'  में गणेश जन्म की कथा वर्णित है. साथ ही एक उपकथा भी है जिसमें अतिथि सत्कार का महत्व बताया गया है। 'अतिथि देवो भव' लोक व्यवहार में प्रचलित है ही। सच्चे योगी की पहचान संबंधी उत्सुकता को शांत करने के लिए एक राज द्वारा किए गए प्रयास और मिली सीख पर केंद्रित है लोक कथा 'कौन श्रेष्ठ'। 'दूधो नहाओ, पूतो फलो' का आशीर्वाद नव वधुओं के घर के बड़े देते रहे हैं। छठ मैया का पूजन बुंदेलखंड में बहुत लोक मान्यता रखता है। यह लोक कथा छठ मैया पर ही केंद्रित है। 

लोक कथा 'जंगल में मंगल' में श्रम की प्रतिष्ठा और राज्य भक्ति (देश भक्ति) के साथ-साथ वृक्षों की रक्षा का संदेश समाहित है। राजा हिमालय की राजकुमारी पार्वती द्वारा वनवासी तपस्वी शिव से विवाह करने के संकल्प और तप पर केंद्रित है लोक कथा 'सच्ची लगन'। यह लोक कथा हरतालिका लोक पर्व से जुडी हुई है। मंगला गौरी व्रत कथा में प्रत्युन्नमतित्व तथा प्रयास का महत्व अंतर्निहित है। यह संदेश 'कोशिश से दुःख दूर' शीर्षक लोक कथा से मिलता है। आम जनों को अपने अभावों का सामना कर, अपने उज्जवल भविष्य के लिए मिल-जुलकर प्रयास करने होते हैं। यह प्रेरक संदेश लिए है लोककथा 'संतोषी हरदम सुखी'। 'पजन के लड्डू' शीर्षक लघुकथा में सौतिया डाह तथा सच की जीत वर्णित है। किसी को परखे बिना उस पर शंका या विश्वास न करने की सीख लोक कथा 'सयाने की सीख' में निहित है। 

भगवान अपने सच्चे भक्त की चिंता स्वयं ही करते हैं, दुनिया को दिखने के लिए की जाती पिजा से प्रसन्न नाहने होते। इस सनातन लोक मान्यता को प्रतिपादित करती है लोक कथा 'भगत के बस में हैं भगवान'। लोक मान्यता है की पुण्य सलिला नर्मदा शिव पुत्री हैं। 'सुहाग रस' नामित लोक कथा में भक्ति-भाव का महत्व बताते हुए इस लोक मान्यता के साथ लोक पर्व गणगौर का महत्व है। मध्य प्रदेश के मालवांचल के प्रतापी नरेश विक्रमादित्य से जुडी कहानी है 'मान न जाए' जबकि 'यहाँ न कोई किसी का' कहानी मालवा के ही अन्य प्रतापी नरेश राजा भोज से संबंधित है। महाभारत के अन्य पर्व में वर्णित किन्तु लोक में बहु प्रचलित सावित्री-सत्यवान प्रसंग को लेकर लिखी गयी है 'काह न अबला करि सकै'। मनुष्य को किसी की हानि नहीं करनी चाहिए और समय पर छोटे से छोटा प्राणी भी काम आ सकता है। यह कथ्य है 'कर भला होगा भला' लोक कथा का। गोंडवाना के पराक्रमी गोंड राजा संग्रामशाह द्वारा षडयंत्रकारी पाखंडी साधु को दंडित करने पर केंद्रित है लोक कथा 'जैसी करनी वैसी भरनी'। 'जो बोया सो काटो' में वर्णित कहानी पशु-पक्षियों की दाना-पानी आदि सुविधाओं का ध्यान देने की सीख देती है। ताकतवर को अपनी ताकत का उपयोह निर्बलों की सहायता करने के लिए करना चाहिए तथा कंबलशाली भी मिल-जुलकर अधिक बलशाली को हरा सकते हैं यह सबक कहानी 'अकल बड़ी या भैंस' में  बताया गया है। संकलन की आखिरी कहानी 'कर भला होगा भला' में बुंदेलखंड में अति लोकप्रिय नर्मदा-सोन-जुहिला नदियों की प्रेम कथा है।  यह कहानी प्रेम और वासना के अंतर को इंगित करते हुए त्याग और लोक हित की महत्ता बताती है। 

इस संकलन की कहानियाँ मध्य प्रदेश के विविध अंचलों में लोकप्रिय होने के साथ लोकोपयोगी तथा संदेशवाही भी हैं। कहानियों में सलिल जी ने अपनी और से कथा-प्रवाह, रोचकता, सन्देशपरकता, सहज बोधगम्यता तथा टटकेपन के पाँच तत्वों को इस तरह मिलाया है कि एक बार पढ़ना आरंभ करने पर बीच में छोड़ते नहीं बनता। कहानियों का शिल्प तथा संक्षिप्तता पाठक को बाँधता है। लोक कथाओं के शीर्षक कथानक से जुड़े हुए और मुहावरों पर आधृत है। इस संकलन को माध्यमिक कक्षाओं में पाठ्य पुस्तक के रूप होना चाहिए ताकि बच्चे अपने अतीत, परिवेश, लोक मान्यताओं और पर्यावरण से परिचित हो सकेंगे। लोक कथाओं में अंतर्नित संदेश कहानी में इस तरह गूंथे गए हैं कि वे बोझिल नहीं लगते। सलिल जी हिंदी गद्य-पद्य की लगभग सभी विधाओं में लगभग ४ दशकों से निरंतर सृजनरत आचार्य संजीव 'सलिल' ने लोक कथाओं का केवल संचयन नहीं किया है।  उन्होंने इनका पुनर्लेखन इस तरह किया है कि ये उनकी अपनी कहानियाँ  बन गयी हैं। संकलन में पाठ्यशुद्धि (प्रूफरीडिंग) पर कुछ और सजगता होना चाहिए। मुद्रण और कागज़ अच्छा है। आवरण पर ग्वालियर किले के मान मंदिर की आकर्षक छवि है। लोक कथाओं के साथ बुंदेलखं के वन्यांचलों के अप्रतिम सौंदर्य का चित्र आवरण के लिए अधिक उपयुक्त होता। सारत:, यह संकलन हिंदी भाषी क्षेत्र के हर विद्यालय के पुस्तकालय में होना चाहिए। लेखक और प्रकाशक इस सारस्वत अनुष्ठान हेतु साधुवाद के पात्र हैं। 
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संपर्क : डॉ. साधना वर्मा, २०४ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१ 
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झारखंड की खुशबू में रची बसी कहानियाँ : 21 श्रेष्ठ नारी मन की कहानियां
समीक्षक :- डॉ कुमारी उर्वशी, सहायक प्राध्यापिका,हिंदी विभाग, रांची विमेंस कॉलेज, रांची, झारखंड, 834001 चलभाष: 9955354365, ईमेल: urvashiashutosh@gmail.com
पुस्तक का नाम :- 21 श्रेष्ठ नारी मन की कहानियां, संपादक :- डॉ अनिता रश्मि, प्रकाशक :- डायमंड पॉकेट बुक्स, नई दिल्ली, संस्करण :-2022, मूल्य :- 250 (पेपरबैक)

डायमंड बुक्स से 2022 में अनिता रश्मि जी के संपादन में भारत कथा माला के अंतर्गत "21 श्रेष्ठ नारी मन की कहानियां" (झारखंड के कहानीकारों की कहानियों का संग्रह ) प्रकाशित हुई है। सुंदर सरल ढंग से परिस्थितियों को प्रस्तुत करती भावपूर्ण कथाएं इस संग्रह को सुशोभित कर रही हैं। 21 कहानियों के संग्रह में डॉ. रोज केरकेट्टा की गंध,डॉ. विद्याभूषण की सरे राह चलते-चलते, डॉ. माया प्रसाद की शापमोचन,डॉ. सी. भास्कर राव की हत्यारिन, पूर्णिमा केडिया 'अन्नपूर्णा' की सिद्धि, जयनंदन की सेराज बैंड बाजा,डॉ. महुआ माजी की इलशेगुंड़ि,अनिता रश्मि की लाल छप्पा साड़ी,कलावंती सिंह की शिप्रा एक्सप्रेस,डॉ. कविता विकास की नाम में क्या रखा है, रश्मि शर्मा की मनिका का सच, नीरज नीर की सभ्यता के अँधेरे, ममता शर्मा की औरत का दिल, डॉ. विनीता परमार की कोख पर कैंची, रेणु झा रेणुका की सुखद पड़ाव,सत्या शर्मा 'कीर्ति' की दुनिया फिर भी खूबसूरत है,डॉ. अनामिका प्रिया की अनुबंध,सारिका भूषण की प्रेम की परिधि, मीरा जगनानी की वो तीन दिन, कल्याणी झा 'कनक' की एहसास तथा प्रतिभा सिंह की वापसी शामिल हैं।

राज्य के श्रेष्ठ साहित्यकारों में शामिल डॉ माया प्रसाद की कहानी 'शापमोचन' पढ़ते हुए आंखें कई बार भींग गई। इतने संवेदनशील मुद्दे पर लिखी गई यह कहानी जाने कब तक प्रासंगिक बनी रहेगी।रायबर्न के अनुसार- “स्त्रियों ने ही प्रथम सभ्यता की नींव डाली है और उन्होंने ही जंगलों में मारे-मारे भटकते हुए पुरुषों को हाथ पकड़कर अपने स्तर का जीवन प्रदान किया तथा घर में बसाया|” बावजूद इसके उनकी सामाजिक स्थिति हमेशा ही दोयम दर्जे की रही।

डॉ रोज केरकेट्टा की कहानी 'गंध' स्त्रियों के साथ सबसे ज्यादा घटित होने वाले और मामूली समझे जाने वाले दुर्व्यवहार 'छेड़खानी' के मुद्दे पर लिखी गई है। इसे पढ़कर अखबार में पढ़ी एक घटना बरबस याद आ गई। जिसमें लिखा था कि बिहार के जहानाबाद जिले में गुरुवार को युवक को अपनी बहन के साथ छेड़खानी कर रहे बदमाशों का विरोध करना मंहगा पड़ा तथा विरोध करने पर बदमाशों ने युवक को चाकू से गोदकर गंभीर रूप से घायल कर दिया और मौके से फरार हो गए।

डायन प्रथा के बढ़ते प्रभाव के मद्देनजर झारखण्ड जैसे राज्यों ने पहले ही कानून बना लिए हैं। अब छत्तीसगढ़, राजस्थान और हरियाणा भी इसी राह पर हैं।कुछ सामाजिक कार्यकर्ताओ का कहना है कि मौजूदा कानून के तहत भी कार्रवाई की जा सकती है, मगर पुलिस इसमें कोई रूचि नहीं लेती।डायन प्रथा के नाम पर महिलाओं के उत्पीड़न की घटनाएं रह-रहकर सर उठाती रही हैं।बहुत छोटी-छोटी बात के लिए औरत को जिम्मेदार बताकर डायन करार दे दिया जाता है जैसे गाय ने दूध देना बंद कर दिया, कुँए में पानी सूख गया, किसी बच्चे की मौत हो गई तो अन्धविश्वास के चलते औरत को डायन घोषित कर दिया जाता है।कई मामलों में सम्पत्ति हड़पने की नीयत से भी महिलाओं को डायन करार दिया जाता है। इसी मुद्दे पर कहानी है अनिता रश्मि की 'लाल छप्पा साड़ी' तथा रश्मि शर्मा की 'मनिका का सच'। 'लाल छप्पा साड़ी' कहानी की नायिका बुधनी पढ़ने लिखने की इच्छा लेकर डॉ निशा के घर जाने वाली महिला है। यह वह महिला है जो एक लाल छप्पा साड़ी की आस लगाए बैठी है। जिस दिन लाल छप्पा साड़ी के लिए अपने पति जीतना को बाजार जाते वक्त रुपए देती है उम्मीद लगाए घर पर बैठी है और उसका पति दामोदर नदी में बह जाता है । साड़ी घर नहीं आती बुधनी की आस अधूरी ही रह जाती है जो प्रेमचंद के 'गोदान' के होरी की याद दिलाती है। जिसकी गाय की आस अधूरी ही रह जाती है। अपने बच्चों के संग अकेली बुधनी जीवन के लिए संघर्ष कर रही है ऐसी महिला को समाज डायन घोषित कर देता है।

'मनिका का सच' कहानी की नायिका मनिका डायन घोषित है। जानकर आश्चर्य होगा कि स्वयं मनिका ने खुद को डायन घोषित करवाया है क्योंकि पति की मृत्यु के बाद गांव वाले उसकी इज्जत नहीं बख्शते अगर वह डायन घोषित नहीं होती। शकुन बुआ मनिका की तकलीफ जानती है उसकी मृत्यु के बाद वह बताती है कि रोज कोई न कोई उसके पास आधी रात को दरवाजा खटखटाने चलाता था ।यहां तक की सिलाई के लिए कपड़े लेकर आने वाला आदमी भी उसका फायदा उठाना चाहता था ।इशारों में भद्दी बातें करता। मनिका यह जानती थी कि उसकी बात पर यकीन करने वाला कोई नहीं है। उसकी सुंदरता ही आज उसकी दुश्मन बन गई है। और वह अपने पति के बनाए घर को छोड़ना भी नहीं चाहती थी। खुद को सुरक्षित रखने के लिए डायन बनने के अलावा उसके पास कोई रास्ता नहीं बचा था।

डॉ महुआ माजी की 'इलशेगुंड़ि’ रूपकुमारी की कहानी है। ‘इलशेगुंड़ि’ बांग्ला का शब्द है और इसकी अर्थध्वनि कहानी में मौजूद हैै। लेखिका ने कहा है कि बारिश की महीन-महीन या छोटी-छोटी बूंदे नदी की सतह पर जब पड़ती हैं तो हिल्सा मछली गहरे जल से सतह पर आ जाती है। इसी तरह रूपकुमारी की तकलीफ़ भी सतह पर आती है। रूपकुमारी अपने पति के छल का शिकार बन जाती है वह उससे दूसरी शादी कर मौज लूट गांव से भाग जाता है। भोली भाली रूपकुमारी उसके इस छल से असावधान है और उसकी प्रतीक्षा करती रहती है, लेकिन वह आता नहीं। इसी प्रतीक्षा के दौरान कालीपॉदो से पहचान बनती है।

कालीपॉदो भी उसके पति को खोजता है। एक दिन वह सूचना देता है कि उसका पति तो शहर में किसी और स्त्री के साथ है। इसके बाद रूपकुमारी गांव से शहर जाती है उस तथाकथित पति के घर। वहां सौत से झगड़ा होता है और फिर वह अपने गांव चली आती है। कालीपॉदो भी इसी ताक में था। अंततः कालीपॉदो उसे अपने घर में पनाह देता है और इसकी कीमत भी वसूलता है।

कालीपॉदो के घर रहती रूपकुमारी सब कुछ झेल रही होती है। एक शादीशुदा मर्द के घर उसके साथ जो हुआ वो बस हुआ। इसके बाद गांव में बाढ़ का प्रकोप आया और सभी बेघर हो गए। त्राण शिविर में कालीपॉदो रूपकुमारी का परिचय नहीं दे पाता। शिविर के बचावकर्मी सबका नाम रजिस्टर में लिखते हैं। वह रूपकुमारी से भी पूछते हैं। रूपकुमारी कुछ कहती है लेकिन कालीपॉदो बोल उठता है कि वह कुछ नहीं लगता। रूपकुमारी जो उसके घर सौत बनकर हर दुख सहते हुए रह रही होती है। वह कालीपॉदो जो रूपकुमारी पर पति की तरह अधिकार रखता था कह देता है कि वह‌ कुछ नहीं लगता। रूपकुमारी समझ नहीं पाती कि ‘‘क्या वाकई भरपेट भोजन-कपड़े के लिए ही उसने सोच-समझकर कालोपॉदो को फाँसा? वह खुद ही से पूछती। यह उस़की पेट की क्षुधा थी या देह की ? या फिर मन की? क्यों प्रत्याख्यान नहीं कर पायी वह उसके प्रेम-निवेदन का... देह-आमंत्राण का...? ये कैसी पहेली है ठाकुर! ये मन की ग्रंथियां इतनी जटिल क्यों हैं? क्या एक पुरुष-मानुष के बिना जीना वाकई इतना मुष्किल था? वह सोचती। फिर सबकुछ भूलकर कालीपॉदो की गृहस्थी में मन रमाने की कोशिश करती। चूल्हा-चौका... बड़े-बुजुर्गों की सेवा... बच्चों पर लाड़ जताना... गाय-गोरू की देखभाल... रिश्तेदारों की तिमारदारी... क्या कुछ नहीं करती वह। सबका दिल जीतने का प्रयास करती। लेकिन हरेक के बर्ताव में उसके लिए हिकारत...सिर्फ हिकारत...। बड़ों की देखा-देखी मासूम बच्चे भी उसे दुत्कारना सीख गए थे। एक अछूत-सी ही हैसियत थी उस घर में उसकी।’’ रूपकुमारी की इस व्यथा को महुआ माजी ने बेहद संवेदनशीलता के साथ उभारा है।

'कोख पर कैंची' डॉ विनीता परमार की एक ऐसी संवेदनशील कहानी है जिसमें महिलाओं को इंसान नहीं समझे जाने के सामाजिक पहलू को उभारा गया है। लेखिका ने एक गंभीर मुद्दा इस कहानी से उठाया है। इस कहानी में हैं गरीबी से हताश लोग और उनका फायदा उठाते लोग जो इंसान कहलाने के भी काबिल नहीं है। बीड़ जिले में जहां पानी के लिए हमेशा त्राहिमाम मचा रहता है। कर्ज में पूरा गांव डूबा है। बेरोजगारी का यह आलम है कि ठेकेदार जो कह दे वह मान लिया जाता है। यहां तक की महिलाएं माहवारी के दिनों में काम की हानि ना करें इसके लिए महिलाओं के गर्भाशय निकाल देने का फरमान ठेकेदार जारी करता है और लोग मान भी लेते हैं। ठेकेदार की कठपुतली बने गांव वाले सिर्फ सहना जानते हैं क्योंकि ठेकेदार के खिलाफ बोलने का मतलब है भूखा मरना। इस परंपरा से विद्रोह करती है अपनी कोख खो चुकी नंदिनी । इस सशक्त नारी की कथा है कोख पर कैंची।

संग्रह की अधिकांश कहानियों में झारखंड की खुशबू रची बसी है। झारखंड की नैसर्गिक खूबसूरती यहां के साहित्य में भी पुरजोर झलकती है यह बात इस संग्रह की कहानियों से स्पष्ट होती है।
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दोहा सलिला
*
शुभ प्रभात होता नहीं, बिन आभा है सत्य
आ भा ऊषा से कहे, पुलकित वसुधा नित्य
*
मार्निंग गुड होगी तभी, जब पहनेंगे मास्क
सोशल डिस्टेंसिंग रखें, मीत सरल है टास्क
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भाप लाभदायक बहुत, लें दिन में दो बार
पीकर पानी कुनकुना, हों निरोग हर वार
*
कोल्ड ड्रिंक से कीजिए, बाय बाय कर दूर
आइसक्रीम न टेस्ट कर, रहिए स्वस्थ्य हुजूर
*
नीबू रस दो बूँद लें, आप नाक में डाल
करें गरारे दूर हो, कोरोना बेहाल
*
जिंजर गार्लिक टरमरिक, रियल आपके फ्रैंड्स
इन सँग डेली बाँधिए, फ्रैंड्स फ्रेंडशिप बैंड्स
*
सूर्य रश्मि से स्नानकर, सुबह शाम हों धन्य
घूमें ताजी हवा में, पाएँ खुशी अनन्य
*
हार्म करे एक सी बहुत, घटती है ओजोन
बिना सुरक्षा पर्त के, जीवन चाहे क्लोन
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दूर शीतला माँ हुईं, कोरोना माँ पास
रक्षित रह रखिए सुखी, करें नहीं उपहास
*
हग कल्चर से दूर रह, करिए नमन प्रणाम
ब्लैसिंग लें दें दूर से, करिए दोस्त सलाम
*
कोविद माता सिखातीं, अनुशासन का पाठ
धन्यवाद कह स्वस्थ्य रह, करिए यारों ठाठ
८-४-२०२१
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हिंदी काव्यानुवाद-
तंत्रोक्त रात्रिसूक्त
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II यह तंत्रोक्त रात्रिसूक्त है II
I ॐ ईश्वरी! धारक-पालक-नाशक जग की, मातु! नमन I
II हरि की अनुपम तेज स्वरूपा, शक्ति भगवती नींद नमन I१I
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I ब्रम्हा बोले: 'स्वाहा-स्वधा, वषट्कार-स्वर भी हो तुम I
II तुम्हीं स्वधा-अक्षर-नित्या हो, त्रिधा अर्ध मात्रा हो तुम I२I
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I तुम ही संध्या-सावित्री हो, देवी! परा जननि हो तुम I
II तुम्हीं विश्व को धारण करतीं, विश्व-सृष्टिकर्त्री हो तुम I३I
*
I तुम ही पालनकर्ता मैया!, जब कल्पांत बनातीं ग्रास I
I सृष्टि-स्थिति-संहार रूप रच-पाल-मिटातीं जग दे त्रास I४I
*
I तुम्हीं महा विद्या-माया हो, तुम्हीं महा मेधास्मृति हो I
II कल्प-अंत में रूप मिटा सब, जगन्मयी जगती तुम हो I५I
*
I महा मोह हो, महान देवी, महा ईश्वरी तुम ही हो I
II सबकी प्रकृति, तीन गुणों की रचनाकर्त्री भी तुम हो I६I
*
I काल रात्रि तुम, महा रात्रि तुम, दारुण मोह रात्रि तुम हो I
II तुम ही श्री हो, तुम ही ह्री हो, बोधस्वरूप बुद्धि तुम हो I७I
*
I तुम्हीं लाज हो, पुष्टि-तुष्टि हो, तुम ही शांति-क्षमा तुम हो I
II खड्ग-शूलधारी भयकारी, गदा-चक्रधारी तुम हो I८I
*
I तुम ही शंख, धनुष-शर धारी, परिघ-भुशुण्ड लिए तुम हो I
II सौम्य, सौम्यतर तुम्हीं सौम्यतम, परम सुंदरी तुम ही हो I९I
*
I अपरा-परा, परे सब से तुम, परम ईश्वरी तुम ही हो I
II किंचित कहीं वस्तु कोई, सत-असत अखिल आत्मा तुम होI१०I
*
I सर्जक-शक्ति सभी की हो तुम, कैसे तेरा वंदन हो ?
II रच-पालें, दे मिटा सृष्टि जो, सुला उन्हें देती तुम हो I११I
*
I हरि-हर,-मुझ को ग्रहण कराया, तन तुमने ही हे माता! I
II कर पाए वन्दना तुम्हारी, किसमें शक्ति बची माता!! I१२I
*
I अपने सत्कर्मों से पूजित, सर्व प्रशंसित हो माता!I
II मधु-कैटभ आसुर प्रवृत्ति को, मोहग्रस्त कर दो माता!!I१३II'
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I जगदीश्वर हरि को जाग्रत कर, लघुता से अच्युत कर दो I
II बुद्धि सहित बल दे दो मैया!, मार सकें दुष्ट असुरों को I१४I
*
IIइति रात्रिसूक्त पूर्ण हुआII
***
दोहा सलिला
पानी-पानी हो गया, पानी मिटी न प्यास।
जंगल पर्वत नदी-तल, गायब रही न आस।।
*
दो कौड़ी का आदमी, पशु का थोड़ा मोल।
नायक सबका खुदा है, धन्य-धन्य हम झेल।।
*
तू मारे या छोड़ दे, है तेरा उपकार।
न्याय-प्रशासन खड़ा है, हाथ बाँधकर द्वार।।
*
आज कदर है उसी की, जो दमदार दबंग।
इस पल भाईजान हो, उस पल हो बजरंग।।
*
सवा अरब है आदमी, कुचल घटाया भार।
पशु कम मारे कर कृपा, स्वीकारो उपकार।।
*
हम फिल्मी तुम नागरिक, आम न समता एक।
खल बन रुकते हम यहाँ, मरे बने रह नेक।।
*
८-४-२०१८
***
नवगीत:
समाचार है...
*
बैठ मुड़ेरे चिड़िया चहके
समाचार है.
सोप-क्रीम से जवां दिख रही
दुष्प्रचार है...
*
बिन खोले- अख़बार जान लो,
कुछ अच्छा, कुछ बुरा मान लो.
फर्ज़ भुला, अधिकार माँगना-
यदि न मिले तो जिद्द ठान लो..
मुख्य शीर्षक अनाचार है.
और दूसरा दुराचार है.
सफे-सफे पर कदाचार है-
बना हाशिया सदाचार है....
पैठ घरों में टी. वी. दहके
मन निसार है...
*
अब भी धूप खिल रही उज्जवल.
श्यामल बादल, बरखा निर्मल.
वनचर-नभचर करते क्रंदन-
रोते पर्वत, सिसके जंगल..
घर-घर में फैला बजार है.
अवगुन का गाहक हजार है.
नहीं सत्य का चाहक कोई-
श्रम सिक्के का बिका चार है..
मस्ती, मौज-मजे का वाहक
असरदार है...
*
लाज-हया अब तलक लेश है.
चुका नहीं सब, बहुत शेष है.
मत निराश हो बढ़े चलो रे-
कोशिश अब करनी विशेष है..
अलस्सुबह शीतल बयार है.
खिलता मनहर हरसिंगार है.
मन दर्पण की धूल हटायें-
चेहरे-चेहरे पर निखार है..
एक साथ मिल मुष्टि बाँधकर
संकल्पित करना प्रहार है...
८-४-२०११
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दोहा सलिला
कौन किसी का सगा है, और पराया कौन?
जब भी चाहा जानना, उत्तर पाया मौन
*
देवी इतनी प्रार्थना, रहे हमेशा होश
काम 'सलिल' करता रहे, घटे न किंचित जोश
***
हास्य दोहे:
*
बेचो घोड़े-गधे भी, सोओ होकर मस्त.
खर्राटे ऊँचे भरो, सब जग को कर त्रस्त..
*
दूर रहो उससे सदा, जो धोता हो हाथ.
गर पीछे पड़ जायेगा, मुश्किल होगा साथ..
*
टाँग अड़ाना है 'सलिल', जन्म सिद्ध अधिकार.
समझ सको कुछ या नहीं, दो सलाह हर बार..
*
देवी दर्शन कीजिए, भंडारे के रोज
देवी खुश हो जब मिले, बिना पकाए भोज
*
हर ऊँची दूकान के, फीके हैं पकवान
भाषण सुन कर हो गया, बच्चों को भी ज्ञान
*
नोट वोट नोटा मिलें, जब हों आम चुनाव
शेष दिनों मारा गया, वोटर मिले न भाव
८-४-२०१०
*

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