कुल पेज दृश्य

शुक्रवार, 1 अप्रैल 2022

दोहा, यमक, गीत, तुम,

सॉनेट 
दुर्गा दुर्गतिनाशिनी दमकें  
दुर्गस्वामिनी दुर्जय दम दें। 
दुर्गमविद्यादायिनी दुर्गे! 
दान-दक्षिणा दया दीप्ति दें। 

द्युतिस्वामिन! द्युतिवान दिपदिपा 
देह दुर्ग दुनिया दीपित दें।  
दस दिश दिखे दयालु! दबदबा 
दनुज दल दलें, दमदम दमकें।
   
दक्षा दक्ष दक्षतादायिनी!
दिन-दिन दूनी दया दिव्य दें। 
दुखविदारिणी!  दोषहारिणी!   
दरियादिल! दात्री! दर्शन दें।

दया दिखा, दुख-दर्द दमनकर
दुर्गा दुर्गतिनाशिनी दमकें 
***
दोहा दुनिया 
बौरा-गौरा को नमन, करता बौरा आम.
खास बन सके, आम हर, हे हरि-उमा प्रणाम..
*
देख रहा चलभाष पर, कल की झलकी आज.
नन्हा पग सपने बड़े, कल हो इसका राज..
***
गीत
मीत तुम्हारी राह हेरता...
*
मीत तुम्हारी राह हेरता...
*
सुधियों के उपवन में तुमने
वासंती शत सुमन खिलाये.
विकल अकेले प्राण देखकर-
भ्रमर बने तुम, गीत सुनाये.
चाह जगा कर आह हुए गुम
मूँदे नयन दरश करते हम-
आँख खुली तो तुम्हें न पाकर
मन बौराये, तन भरमाये..
मुखर रहूँ या मौन रहूँ पर
मन ही मन में तुम्हें टेरता.
मीत तुम्हारी राह हेरता...
*
मन्दिर मस्जिद गिरिजाघर में
तुम्हें खोजकर हार गया हूँ.
बाहर खोजा, भीतर पाया-
खुद को तुम पर वार गया हूँ..
नेह नर्मदा के निनाद सा
अनहद नाद सुनाते हो तुम-
ओ रस-रसिया!, ओ मन बसिया!
पार न पाकर पार गया हूँ.
ताना-बाना बुने बुने कबीरा
किन्तु न घिरता, नहीं घेरता.
मीत तुम्हारी राह हेरता...
१-४-२०१०

***

कोई टिप्पणी नहीं: