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सोमवार, 4 अप्रैल 2022

कुण्डलिया, नोटा, दोहा, जनक छंद, द्विपदी, सॉनेट

सॉनेट 
दादा 
*
दादा माखनलाल प्रणाम।  
खासुलखास, रहे बन आम। 
सदा देश के आए काम।।
दसों दिशा में गूँजा नाम।। 

शस्त्र उठा विद्रोह किया। 
अमिय अहिंसा विहँस पिया।। 
शब्द-बाण जब चला दिया।।
अँग्रेजों का हिला जिया।।

'प्रभा','प्रताप' मशाल बना। 
कर्मवीर' युग-नाद घना।  
'हिम किरीटिनी' दर्द घना।    
रखे 'युग चरण' ख्वाब बुना। 

जीवन जिया नर्मदा सम। 
सुदृढ़ वज्र, माखन सम नम।।
४-४-२०२२  
सॉनेट
विनय
विनय सुनें हे तारणहार!
ले भावों का बंदनवार।
आया तव आत्मज सब हार।।
लाया है अँजुरी भर प्यार।।

करी बहुत तज दी तकरार।
किया बहुत त्यागा श्रंगार।
है समान अब हिम-अंगार।।
तुम पर बरबस ही दिल हार।।

पल भर तो लो ईश! निहार।
स्वीकारो हँसकर सत्कार।
मैं कैसे बिसरे सरकार!
युक्ति बता दो प्रभु! पुचकार।।

हारा, हरि! अब हो दीदार।
करुणा कर मेरे करतार!!
४•४•२०२२
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कुण्डलिया
नोटा

नोटा तो ब्रह्मास्त्र है, समझ लीजिए आप।
अनाचार पर चलाकर, मिटा दीजिए पाप।।
मिटा दीजिए पाप, न भ्रष्टाचार सहो अब।
जो प्रत्याशी गलत, उसे मिल दूर करो सब।।
कहे 'सलिल' कविराय, न जाए तुमको पोटा।
सजग मौन रह आप, मात दें चुनकर नोटा।।
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एक द्विपदी

करें न शिकवा, नहीं शिकायत, तुमने जात दिखा दी है।
अश्क़ बहकर मौन-दूर हम, तुमको यही सजा दी है।।
४-४-२०२१

***

सामयिक दोहा

परेशान होते बहुत, छोटे ग्राहक रोज
चुरा करोड़ों भागते, मोदी कैसे खोज??
४-४-२०१८
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एक त्रिपदी : जनक छंद
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हरी दूब सा मन हुआ
जब भी संकट ने छुआ
'सलिल' रहा मन अनछुआ..
४-४-२०११
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