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शनिवार, 2 अप्रैल 2022

सप्त श्लोकी दुर्गा, सॉनेट, पवन, मुक्तक, कुण्डलिया, दुर्गा, हाइकु, भोजपुरी

सत श्लोकी दुर्गा
हिंदी भावानुवाद 
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शिव बोले- हो सुलभ भक्त को, कार्य नियंता हो देवी! 
एक उपाय प्रयत्न मात्र है, कार्य-सिद्धि की कला यही।। 
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देवी बोलीं- सुनें देव हे!, कला साधना उत्तम है। 
स्नेह बहुत है मेरा तुम पर, स्तुति करूँ प्रकाशित मैं।। 
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ॐ मंत्र सत् श्लोकी दुर्गा, ऋषि ‌नारायण छंद अनुष्टुप। 
देव कालिका रमा शारदा, दुर्गा हित हो पाठ नियोजित।। 
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ॐ चेतना ज्ञानी जन में, मात्र भगवती माँ ही हैं। 
मोहित-आकर्षित करती हैं, मातु महामाया खुद ही।१। 
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भीति शेष जो है जीवों में, दुर्गा-स्मृति हर लेती, 
स्मृति-मति हो स्वस्थ्य अगर तो, शुभ फल हरदम है देती। 
कौन भीति दारिद्रय दुख हरे, अन्य न कोई है देवी। 
कारण सबके उपकारों का, सदा आर्द्र चितवाली वे।२। 
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मंगलकारी मंगल करतीं, शिवा साधतीं हित सबका। 
त्र्यंबका गौरी, शरणागत, नारायणी नमन तुमको।३। 
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दीन-आर्त जन जो शरणागत, परित्राण करतीं उनका। 
सबकी पीड़ा हर लेती हो, नारायणी नमन तुमको।४। 
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सब रूपों में, ईश सभी की, करें समन्वित शक्ति सभी। 
देवी भय न अस्त्र का किंचित्, दुर्गा देवि नमन तुमको।५। 
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रोग न शेष, तुष्ट हों तब ही, रुष्ट काम से, अभीष्ट सबका। 
जो आश्रित वह दीन न होता, आश्रित पाता प्रेय अंत में।६। 
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सब बाधाओं को विनाशतीं, हैं अखिलेश्वरी तीन लोक में। 
इसी तरह सब कार्य साधतीं, करें शत्रुओं का विनाश भी।७। 
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सॉनेट 
पवन 
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झोंका बन पुलके झकझोर 
अंतर्मन में उठा हिलोर 
रवि-ऊषा बिन उज्जवल भोर 
बन आलिंगन दे चितचोर 

गाए मिलन-विरह के गीत 
लूटे लुटा हमेशा प्रीत 
हँसे हार ज्यों पाई जीत 
तोड़-बनाए पल-पल रीत 

कोई सकता कभी न रोक 
कोई सके न किंचित टोक 
होता विकल न करता शोक 
पैना बहुत न लेकिन नोक 

संगी भू नभ सलिल अगन 
चिरजीवी हो पवन मगन 
२-४-२०२२ 
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मुक्तक
*
सिर्फ पानी नहीं आँसू, हर्ष भी हैं दर्द भी।
बहाती नारी न केवल, हैं बनाते मर्द भी।।
गर प्रवाहित हों नहीं तो हृदय ही फट जाएगा-
हों गुलाबी-लाल तो होते कभी ये जर्द भी।।
२-४-२०२१
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कार्यशाला : कुण्डलिया
जाने कितनी हो रही अपने मन में हूक।
क्यों होती ही जारही अजब चूक पर चूक। - रामदेव लाल 'विभोर'
अजब चूक पर चूक, विधाता की क्या मर्जी?
फाड़ रहा है वस्त्र, भूलकर सिलना दर्जी
हठधर्मी या जिद्द, पड़ेगी मँहगी कितनी?
ले जाएगी जान, न जाने जानें कितनी - संजीव
***
चिंतन
दुर्गा पूजा
*
बचपन में सुना था ईश्वर दीनबंधु है, माँ पतित पावनी हैं।
आजकल मंदिरों के राजप्रासादों की तरह वैभवशाली बनाने और सोने से मढ़ देने की होड़ है।
माँ दुर्गा को स्वर्ण समाधि देने का समाचार विचलित कर गया।
इतिहास साक्षी है देवस्थान अपनी अकूत संपत्ति के कारण ही लूट को शिकार हुए।
मंदिरों की जमीन-जायदाद पुजारियों ने ही खुर्द-बुर्द कर दी।
सनातन धर्म कंकर कंकर में शंकर देखता है।
वैष्णो देवी, विंध्यवासिनी, कामाख्या देवी अादि प्राचीन मंदिरों में पिंड या पिंडियाँ ही विराजमान हैं।
परम शक्ति अमूर्त ऊर्जा है किसी प्रसूतिका गृह में उसका जन्म नहीं होता, किसी श्मशान घाट में उसका दाह भी नहीं किया जा सकता।
थर्मोडायनामिक्स के अनुसार इनर्जी कैन नीदर बी क्रिएटेड नॉर बी डिस्ट्रायड, कैन ओनली बी ट्रांसफार्म्ड।
अर्थात ऊर्जा का निर्माण या विनाश नहीं केवल रूपांतरण संभव है।
ईश्वर तो परम ऊर्जा है, उसकी जयंती मनाएँ तो पुण्यतिथि भी मनानी होगी।
निराकार के साकार रूप की कल्पना अबोध बालकों को अनुभूति कराने हेतु उचित है किंतु मात्र वहीं तक सीमित रह जाना कितना उचित है?
माँ के करोड़ों बच्चे महामीरी में रोजगार गँवा चुके हैं, अर्थ व्यवस्था के असंतुलन से उत्पादन का संकट है, सरकारें जनता से सहायता हेतु अपीलें कर रही हैं और उन्हें चुननेवाली जनता का अरबों-खरबों रुपया प्रदर्शन के नाम पर स्वाहा किया जा रहा है।
एक समय प्रधान मंत्री को अनुरोध पर सोमवार अपराह्न भोजन छोड़कर जनता जनार्दन ने सहयोग किया था। आज अनावश्यक साज-सज्जा छोड़ने के लिए भी तैयार न होना कितना उचित है?
क्या सादगीपूर्ण सात्विक पूजन कर अपार राशि से असंख्य वंचितों को सहारा दिया जाना बेहतर न होगा?
संतानों का घर-गृहस्थी नष्ट होते देखकर माँ स्वर्णमंडित होकर प्रसन्न होंगी या रुष्ट?
दुर्गा सप्तशती में महामारी को भी भगवती कहा गया है। रक्तबीज की तरह कोरोना भी अपने अंश से ही बढ़ता है। रक्तबीज तभी मारा जा सका जब रक्त बिंदु का संपर्क समाप्त हो गया। रक्त बिंदु और भूमि (सतह) के बीच सोशल कॉन्टैक्ट तोड़ा था मैया ने। आज बेटों की बारी है। कोरोना वायरस और हवा, मानवांग या स्थान के बीच सोशल कॉन्टैक्ट तोड़कर कोरोना को मार दें। यह न कर कोरोना के प्रसार में सहायक जन देशद्रोही ही नहीं मानव द्रोही भी हैं। उनके साथ कानून वही करे जो माँ ने शुंभ-निशुंभ के साथ किया। कोरोना को मानव बम बनाने की सोच को जड़-मूल से ही मिटाना होगा।
२-४-२०२०
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हाइकु के रंग भोजपुरी के संग
*
आपन त्रुटि
दोसरा माथे मढ़
जीव ना छूटी..
*
बिना बात के
माथा गरमाइल
केतना फीका?.
*
फनफनात
मेहरारू, मरद
हिनहिनात..
*
बांझो स्त्री के
दिल में ममता के
अमृत-धार..
*
धूप-छाँव बा
नजर के असर
छाँव-धूप बा..
*
तन एहर
प्यार-तकरार में
मन ओहर..
*
झूठ न होला
कवनो अनुभव
बोल अबोला..
*
सबुर दाढे
मेवा फरेला पर
कउनो हद?.
*
घर फूँक के
तमाशा देखल
समझदार?.
२-४-२०१०
***

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