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शनिवार, 12 फ़रवरी 2022

मुक्तिका, नवगीत, दोहे, तलाक, कायस्थ, पटवारी

मुक्तिका 
जय प्रकाश की कहें, तमन्ना अपनी पूरी हो।
आ भा आभा सूरज-शशि की, तनिक न दूरी हो।।

संत बसंत दिगंत छू रहा, बौर मंजरी संग।
जाड़ा-कोहरा चीन-पाक सम, लिए न छूरी हो।।

कर संतोष कहे कोरोना, उच्छृंखल मत हो। 
छाया अरुण रहे वसुधा पर, साँझ सिंदूरी हो।।

उमा शक्ति को जलज विनीता दे दीपक बाले। 
कर रंजन आलोक हँसे, शुभ स्नेह जरूरी हो।। 
 
है सुभाष सुन कर अशोक मन, जड़ भी हो संजीव। 
श्रमिक किसान न भूखा हो, पर्याप्त मजूरी हो।। 
११-२-२०२२
****
मुक्तिका
*
आज खत का जवाब आया है
धूल में फूल मुस्कुराया है
*
याद की है किताब हाथों में
छंद था मौन; खिलखिलाया है
*
नैन नत बोलते बिना बोले
रोज डे रोज ही मनाया है
*
कौन किसको प्रपोज कब करता
चाह ने चाहकर बुलाया है
*
हाथ बढ़ हाथ थामकर सिहरा
पैर ने पैर झट मिलाया है
*
देख मुखड़ा बना लिया मुखड़ा
अंतर में अंतरा बसाया है
*
दे दिया दिल न दिलरुबा छोड़ा
दिलवरी की न दिल दुखाया है
१२-२-२०२१
***
तीन तलाक - दोहे
*
तीन तलाक दीजिए
हर दिन जगकर आप
नफरत, गुस्सा, लोभ को
सुख न सकेंगे नाप
जुमलों धौंस प्रचार को,
देकर तीन तलाक
दिल्ली ने कर दिया है,
थोथा गर्व हलाक
भाव छंद रस बिंब लय
रहे हमेशा साथ
तीन तलाक न दें कभी
उन्नत हो कवि-माथ
आँसू का दरिया कहें,
या पर्वत सा दर्द
तीन तलाक न दे कभी,
कोई सच्चा मर्द
आँखों को सपने दिए,
लब को दी मुस्कान
छीन न तीन तलाक ले,
रखिए पल-पल ध्यान
दिल से दिल का जोड़कर,
नाता हुए अभिन्न
तीन तलाक न पाक है,
बोल न होइए भिन्न
अल्ला की मर्जी नहीं,
बोलें तीन तलाक
दिल दिलवर दिलरुबा का,
हो न कभी भी चाक
जो जोड़ा मत तोड़ना,
नाता बेहद पाक
मान इबादत निभाएँ
बिसरा तीन तलाक
जो दे तीन तलाक वह,
आदम है शैतान
आखिर दम तक निभाए,
नाता गर इंसान
१२-२-२०२०
***
नवगीत:
संजीव
.
आश्वासन के उपन्यास
कब जन गण की
पीड़ा हर पाये?
.
नवगीतों ने व्यथा-कथाएँ
कही अंतरों में गा-गाकर
छंदों ने अमृत बरसाया
अविरल दुःख सह
सुख बरसाकर
दोहा आल्हा कजरी पंथी
कर्म-कुंडली बाँच-बाँचकर
थके-चुके जनगण के मन में
नव आशा
फसलें बो पाये
आश्वासन के उपन्यास
कब जन गण की
पीड़ा हर पाये?
.
नव प्रयास के मुखड़े उज्जवल
नव गति-नव यति, ताल-छंद नव
बिंदासी टटकापन देकर
पार कर रहे
भव-बाधा हर
राजनीति की कुलटा-रथ्या
घर के भेदी भक्त विभीषण
क्रय-विक्रयकर सिद्धांतों का
छद्म-कहानी
कब कह पाये?
आश्वासन के उपन्यास
कब जन गण की
पीड़ा हर पाये?
.
हास्य-व्यंग्य जमकर विरोध में
प्रगतिशीलता दर्शा हारे
विडंबना छोटी कहानियाँ
थकीं, न लेकिन
नक्श निखारे
चलीं सँग, थक, बैठ छाँव में
कलमकार से कहे लोक-मन
नवगीतों को नवाचार दो
नयी भंगिमा
दर्शा पाये?
आश्वासन के उपन्यास
कब जन गण की
पीड़ा हर पाये?
***
स्मृतिशेष भवानी प्रसाद तिवारी की एक सामयिक रचना ......
उनकी ११० वीं जयंती पर सादर ......
घने आम पर मंजरी आ गई .....
शिशिर का ठिठुरता हुआ कारवां
गया लाद कर शीत पाला कहाँ
गगन पर उगा एक सूरज नया
धरा पर उठा फूल सारा जहां
अभागिन वसनहीनता खुश कि लो
नई धूप आ गात सहला गई ........
नए पात आए पुरातन झड़े
लता बेल द्रुम में नए रस भरे
चहक का महक का समाँ बन्ध गया
नए रंग ....धानी गुलाबी हरे
प्रकृति के खिलौने कि जो रंग गई
मनुज के कि दुख दर्द बहला गई ........
पवन चूम कलियाँ चटकने लगीं
किशोरी अलिनियां हटकने लगीं
रसानंद ,मकरंद ,मधुगन्ध में
रंगीली तितलियाँ भटकने लगीं
मलय -वात का एक झोंका चला
सुनहली फसल और लहरा गई ...
***
नवगीत:
.
मफलर की जय
सूट-बूट की मात हुई.
चमरौधों में जागी आशा
शीश उठे,
मुट्ठियाँ तनीं,
कुछ कदम बढ़े.
.
मेहनतकश हाथों ने बढ़
मतदान किया.
झुकाते माथों ने
गौरव का भान किया.
पंजे ने बढ़
बटन दबाया
स्वप्न बुने.
आशाओं के
कमल खिले
जयकार हुआ.
अवसर की जय
रात हटी तो प्रात हुई.
आसमान में आयी ऊषा.
पौध जगे,
पत्तियाँ हँसी,
कुछ कुसुम खिले.
मफलर की जय
सूट-बूट की मात हुई.
चमरौधों में जागी आशा
शीश उठे,
मुट्ठियाँ तनीं,
कुछ कदम बढ़े.
.
आम आदमी ने
खुद को
पहचान लिया.
एक साथ मिल
फिर कोइ अरमान जिया.
अपने जैसा,
अपनों जैसा
नेता हो,
गड़बड़ियों से लड़कर
जयी विजेता हो.
अलग-अलग पगडंडी
मिलकर राह बनें
केंद्र-राज्य हों सँग
सृजन का छत्र तने
जग सिरमौर पुनः जग
भारत बना सकें
मफलर की जय
सूट-बूट की मात हुई.
चमरौधों में जागी आशा
शीश उठे,
मुट्ठियाँ तनीं,
कुछ कदम बढ़े.
११.२.२०१५
***
लघु एकांकी
सबै जात गोपाल की
भारतेंदु हरिश्चंद्र
*
(एक पंडित जी और एक क्षत्री आते हैं)
क्षत्री : महाराज देखिये बड़ा अंधेर हो गया कि ब्राह्मणों ने व्यवस्था दे दी कि कायस्थ भी क्षत्री हैं। कहिए अब कैसे कैसे काम चलेगा।
पंडित : क्यों, इसमें दोष क्या हुआ? ”सबै जात गोपाल की“ और फिर यह तो हिन्दुओं का शास्त्रा पनसारी की दुकान है और अक्षर कल्प वृक्ष है इस में तो सब जात की उत्तमता निकल सकती है पर दक्षिणा आप को बाएं हाथ से रख देनी पडे़गी फिर क्या है फिर तो ”सबै जात गोपाल की“।
क्ष. : भला महाराज जो चमार कुछ बनना चाहे तो उसको भी आप बना दीजिएगा।
पं. : क्या बनना चाहै?
क्ष. : कहिये ब्राह्मण।
पं. : हां, चमार तो ब्राह्मण हुई है इस में क्या संदेह है, ईश्वर के चम्र्म से इनकी उत्पत्ति है, इन को यह दंड नहीं होता। चर्म का अर्थ ढाल है इससे ये दंड रोक लेते हैं। चमार में तीन अक्षर हैं ‘च’ चारों वेद ‘म’ महाभारत ‘र’ रामायण जो इन तीनों को पढ़ावे वह चमार। पद्मपुराण में लिखा है। इन चर्मकारों ने एक बेर बड़ा यज्ञ किया था, उसी यज्ञ में से चर्मण्ववती निकली है। अब कर्म भ्रष्ट होने से अन्त्यज हो गए हैं नहीं तो है असिल में ब्राह्मण, देखो रैदास इन में कैसे भक्त हुए हैं लाओ दक्षिणा लाओ। ‘सवै’
क्ष. : और डोम?
पं. : डोम तो ब्राह्मण क्षत्रिय दोनों कुल के हैं, विश्वामित्र-वशिष्ट वंश के ब्राह्मण डोम हैं और हरिश्चंद्र और वेणु वंश के क्षत्रिय हैं। इस में क्या पूछना है लाओ दक्षिणा ‘सबै जा.’।
क्ष. : और कृपा निधान! मुसलमान।
पं. : मीयाँ तो चारों वर्णों में हैं। बाल्मीकि रामायण में लिखा है जो वर्ण रामायण पढ़े मीयाँ हो जाय।
पठन् द्विजो वाग् ऋषभत्वमीयात्।
ख्यात् क्षत्रियों भूमिपतित्वमीयात् ।।
अल्लहोपनिषत् में इनकी बड़ी महिमा लिखी है। द्वारका में दो भाँति के ब्राह्मण थे जिनको बलदेव जी (मुशली) मानते थे। उनका नाम मुशलिमान्य हुआ और जिन्हें श्रीकृष्ण मानते उनका नाम कृष्णमान्य हुआ। अब इन दोनों शब्दों का अपभ्रंश मुसलमान और कृस्तान हो गया।
क्ष. : तो क्या आप के मत से कृस्तान भी ब्राह्मण हैं?
पं. : हई हैं इसमें क्या पूछना है-ईशावास उपनिषत् में लिखा है कि सब जगत ईसाई है।
क्ष. : और जैनी?
पं. : बड़े भारी ब्राह्मण हैं। ”अहैन्नित्यपि जैनशासनरता“ जैन इनका नाम तब से पड़ा जब से राजा अलर्क की सभा में इन्हें कोई जै न कर सका!
क्ष. : और बौद्ध?
पं. : बुद्धि वाले अर्थात् ब्राह्मण।
क्ष. : और धोबी?
पं. : अच्छे खासे ब्राह्मण जयदेव के जमाने तक धोबी ब्राह्मण होते थे। ‘धोई कविः क्षमापतिः’। ये शीतला के रज से हुए हैं इससे इनका नाम रजक पड़ा।
क्ष. : और कलवार?
पं. : क्षत्री हैं, शुद्ध शब्द कुलवर है, भट्टी कवि इसी जाति में था।
क्ष. : और महाराज जी कुंहार?
पं. : ब्राह्मण, घटखप्र्पर कवि था।
क्ष. : और हां, हां, वैश्या?
पं. : क्षत्रियानी-रामजनी, और कुछ बनियानी अर्थात् वेश्या।
क्ष. : अहीर?
पं. : वैश्य-नंदादिकों के बालकों का द्विजाति संस्कार होता था। ”कुरु द्विजाति संस्कारं स्वस्तिवाचनपूर्वकं“ भागवत में लिखा है।
क्ष. : भुंइहार?
पं. : ब्राह्मण।
क्ष. : ढूसर?
पं. : ब्राह्मण, भृगुवंश के, ज्वालाप्रसाद पंडित का शास्त्रार्थ पढ़ लीजिए।
क्ष. : जाठ?
पं. : जाठर क्षत्रिय।
क्ष. : और कोल?
पं. : कोल ब्राह्मण।
क्ष. : धरिकार?
पं. : क्षत्रिय शुद्ध शब्द धर्यकार है।
क्ष. : और कुनबी और भर और पासी?
पं. : तीनों ब्राह्मण वंश में हैं, भरद्वाज से भर, कन्व से कुनबी, पराशर के पासी।
क्ष. : भला महाराज नीचों को तो आपने उत्तम बना दिया अब कहिए उत्तमों को भी नीच बना सकते हैं?
पं. : ऊँच नीच क्या, सब ब्रह्म है, आप दक्षिणा दिए चलिए सब कुछ होता चलेगा।
क्ष. : दक्षिणा मैं दूंगा, आप इस विषय में भी कुछ परीक्षा दीजिए।
पं. : पूछिए मैं अवश्य कहूंगा।
क्ष. : कहिए अगरवाले और खत्री?
पं. : दोनों बढ़ई हैं, जो बढ़िया अगर चंदन का काम बनाते थे उनकी संज्ञा अगरवाले हुई और जो खाट बीनते थे वे खत्री हुए या खेत अगोरने वाले खत्री कहलाए।
क्ष. : और महाराज नागर गुजराती?
पं. : सपेरे और तैली, नाग पकड़ने से नागर और गुल जलाने से गुजराती।
क्ष. : और महाराज भुंइहार और भाटिये और रोडे?
पं. : तीनों शूद्र, भुजा से भुंइहार, भट्टी रखने वाले भाटिये, रोड़ा ढोने वाले रोडे़।
क्ष. : (हाथ जोड़कर) महाराज आप धन्य हौ। लक्ष्मी वा सरस्वती जो चाहैं सो करैं। चलिए दक्षिणा लीजिये।
पं. : चलौ इस सब का फल तो यही था।
(दोनों गए)
***
कायस्थ विमर्श :
इतिहास के पन्नो से , कायस्थ सेन वंश जिन्हें गौर(पश्चिमी क्षेत्रो में ) या गौंड(पूर्वी क्षेत्रो )में कहा जाता है ।
रामपाल के शासनकाल में १०९७ ई. से १०९८ ई. तक में ही तिरहुत में कर्नाट राज्य का उदय हो गया । कर्नाट राज्य का संस्थापक नान्यदेव था । नन्यदेव एक महान शासक था । उनका पुत्र गंगदेव एक योग्य शासक बना ।
नान्यदेव ने कर्नाट की राजधानी सिमरॉवगढ़ बनाई । कर्नाट शासकों का इस वंश का मिथिला का स्वर्ण युग भी कहा जाता है ।
वैन वार वंश के शासन तक मिथिला में स्थिरता और प्रगति हुई । नान्यदेव के साथ सेन वंश राजाओं से युद्ध होता रहता था ।
सामन्त सेन सेन वंश का संस्थापक था । विजय सेन, बल्लाल्सेन, लक्ष्मण सेन आदि शासक बने । सेन वंश के शासकों ने बंगाल और बिहार पर शासन किया । विजय सेन शैव धर्मानुयायी था । उसने बंगाल के देवपाड़ा में एक झील का निर्माण करवाया । वह एक लेखक भी थे जिसने ‘दान सागर’ और ‘अद्‍भुत सागर’ दो ग्रन्थों की रचना की ।
लक्ष्मण सेन सेन वंश का अन्तिम शासक था । हल्लायुद्ध इसका प्रसिद्ध मन्त्री एवं न्यायाधीश था । गीत गोविन्द के रचयिता जयदेव भी लक्ष्मण सेन शासक के दरबारी कवि थे । लक्ष्मण सेन वैष्णव धर्मानुयायी था ।
सेन राजाओं ने अपना साम्राज्य विस्तार क्रम में ११६० ई. में गया के शासक गोविन्दपाल से युद्ध हुआ । ११२४ ई. में गहड़वाल शासक गोविन्द पाल ने मनेर तक अभियान चलाया ।
जयचन्द्र ने ११७५-७६ ई. में पटना और ११८३ ई. के मध्य गया को अपने राज्य में सम्मिलित कर लिया ।
कर्नाट वंश के शासक नरसिंह देव बंगाल के शासक से परेशान होकर उसने तुर्की का सहयोग लिया ।
उसी समय बख्तियार खिलजी भी बिहार आया और नरदेव सिंह को धन देकर उसे सन्तुष्ट कर लिया और नरदेव सिंह का साम्राज्य तिरहुत से दरभंगा क्षेत्र तक फैल गया ।
कर्नाट वंश के शासक ने सामान्य रूप से दिल्ली सल्तनत के प्रान्तपति नियुक्‍त किये गये
बिहार और बंगाल पर गयासुद्दीन तुगलक ने १३२४-२५ ई. में आधिपत्य कर लिया । उस समय तिरहुत का शासक हरिसिंह था । वह तुर्क सेना से हार मानकर नेपाल की तराई में जा छिपा । इस प्रकार उत्तरी और पूर्व मध्य बिहार से कर्नाट वंश १३७८ ई. में समाप्त हो गया ।
आदित्य सेन- माधवगुप्त की मृत्यु ६५० ई. के बाद उसका पुत्र आदित्य सेन मगध की गद्दी पर बैठा । वह एक वीर योद्धा और कुशल प्रशासक था ।
अफसढ़ और शाहपुर के लेखों से मगध पर उसका आधिपत्य प्रंआनित होता है ।
मंदार पर्वत में लेख के अंग राज्य पर आदित्य सेन के अधिकार का उल्लेख है । उसने तीन अश्‍वमेध यज्ञ किये थे ।
मंदार पर्वत पर स्थित शिलालेख से पता चलता है कि चोल राज्य की विजय की थी ।
आदित्य सेन के राज्य में उत्तर प्रदेश के आगरा और अवध के अन्तर्गत एक विस्तृत साम्राज्य स्थापित करने वाला प्रथम शासक था ।
उसने अपने पूर्वगामी गुप्त सम्राटों की परम्परा का पुनरूज्जीवन किया । उसके शासनकाल में चीनी राजदूत वांग यूएन त्से ने दो बार भारत की यात्रा की ।
कोरियन बौद्ध यात्री के अनुसार उसने बोधगया में एक बौद्ध मन्दिर बनवाया था ।
आदित्य सेन ने ६७५ ई. तक शासन किया था ।
आदित्य सेन के उत्तराधिकारी तथा उत्तर गुप्तों का विनाश-
आदित्य सेन की ६७५ ई. में मृत्यु के बाद उसका पुत्र देवगुप्त द्वितीय हुआ । उसने भी परम भट्टारक महाधिराज की उपाधि धारण की । चालुक्य लेखों के अनुसार उसे सकलोत्तर पथनाथ कहा गया है ।
इसके बाद विष्णुगुप्त तथा फिर जीवितगुप्त द्वितीय राजा बने ।
जीवितगुप्त द्वितीय का काल लगभग ७२५ ई. माना जाता है । जीवितगुप्त द्वितीय का वध कन्‍नौज नरेश यशोवर्मन ने किया ।

जीवितगुप्त की मृत्यु के बाद उत्तर गुप्तों के मगध साम्राज्य का अन्त हो गया ।

***
मुक्तिका
*
यहीं कहीं था, कहाँ खो गया पटवारी जी?
जगते-जगते भाग्य सो गया पटवारी जी..

गैल-कुआँ घीसूका, कब्जा ठाकुर का है.
फसल बैर की, लोभ बो गया पटवारी जी..

मुखिया की मोंड़ी के भारी पाँव हुए तो.
बोझा किसका?, कौन ढो गया पटवारी जी..

कलम तुम्हारी जादू करती मान गये हम.
हरा चरोखर, खेत हो गया पटवारी जी..

नक्शा-खसरा-नकल न पायी पैर घिस गये.
कुल-कलंक सब टका धो गया पटवारी जी..

मुट्ठी गरम करो लेकिन फिर दाल गला दो.
स्वार्थ सधा, ईमान तो गया पटवारी जी..

कोशिश के धागे में आशाओं का मोती.
'सलिल' सिफारिश-हाथ पो गया पटवारी जी..

***
मुक्तिका
*

आँखों जैसी गहरी झील.
सकी नहीं लहरों को लील..

पर्यावरण प्रदूषण की
ठुके नहीं छाती में कील..

समय-डाकिया महलों को
कुर्की-नोटिस कर तामील..

मिष्ठानों का लोभ तजो.
खाओ बताशे के संग खील..

जनहित-चुहिया भोज्य बनी.
भोग लगायें नेता-चील..

लोकतंत्र की उड़ी पतंग.
थोड़े ठुमके, थोड़ी ढील..

पोशाकों की फ़िक्र न कर.
हो न इरादा गर तब्दील..

छोटा मान न कदमों को
नाप गये हैं अनगिन मील..

सूरज जाए खेतों में.
'सलिल' कुटी में हो कंदील..
१२-२-२०११
***





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