मुक्तिका
सुभद्रा
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वीरों का कैसा हो बसंत तुमने हमको बतलाया था।
बुंदेली मर्दानी का यश दस दिश में गुंजाया था।।
'बिखरे मोती', 'सीधे सादे चित्र', 'मुकुल' हैं कालजयी।
'उन्मादिनी', 'त्रिधारा' से सम्मान अपरिमित पाया था।।
रामनाथ सिंह सुता, लक्ष्मण सिंह भार्या तेजस्वी थीं।
महीयसी से बहनापा भी तुमने खूब निभाया था।।
यह 'कदंब का पेड़' देश के बच्चों को प्रिय सदा रही।
'मिला तेज से तेज' धन्य वह जिसने दर्शन पाया था।।
'माखन दादा' का आशीष मिला तुमने आकाश छुआ।
सत्याग्रह-कारागृह को नव भारत तीर्थ बनाया था।।
देश स्वतंत्र कराया तुमने, करती रहीं लोक कल्याण।
है दुर्भाग्य हमारा, प्रभु ने तुमको शीघ्र बुलाया था।।
जाकर भी तुम गयी नहीं हो; हम सबमें तुम ज़िंदा हो।
आजादी के महायज्ञ को तुमने सफल बनाया था।।
जबलपुर की जान सुभद्रा, हिन्दुस्तां की शान थीं।
दर्शन हुए न लेकिन तुमको सदा साथ ही पाया था।।
१५-२-२०२२
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