मुक्तिका
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'सलिल' को दे प्यास अपनी, चैन से सो जाइए.
नर्मदा है नेह की, फसलें यहाँ बो जाइए.
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चंद्रमा में चाँदनी भी और धब्बे-दाग भी.
चंद्रमा में चाँदनी भी और धब्बे-दाग भी.
चन्दनी अनुभूतियों से पीर सब धो जाइए.
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होश में जब तक रहे, मैं-तुम न हम हो पाए थे.
होश में जब तक रहे, मैं-तुम न हम हो पाए थे.
भुला दुनिया मस्त हो, मस्ती में खुद खो जाइए.
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खुदा बनने था चला, इंसा न बन पाया 'सलिल'.
खुदा बनने था चला, इंसा न बन पाया 'सलिल'.
खुदाया अब आप ही, इंसान बन दिखलाइए.
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एक उँगली उठाता है, जब भी गैरों पर सलिल'
एक उँगली उठाता है, जब भी गैरों पर सलिल'
तीन उँगली चीखती हैं, खुद सुधर कर आइए.
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salil.sanjiv@gmail.com
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