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शुक्रवार, 15 फ़रवरी 2013

छंद सलिला- हरिगीतिका: संजीव 'सलिल'

छंद सलिला-
हरिगीतिका:

संजीव 'सलिल'
( छंद विधान: हरिगीतिका X 4 = 11212 की चार बार आवृत्ति)
*

       भिखारीदास ने छन्दार्णव में गीतिका नाम से 'चार सगुण धुज गीतिका' कहकर हरिगीतिका का वर्णन किया है।
छंद विधान:
० १. हरिगीतिका २८ मात्रा का ४ समपाद मात्रिक छंद है।
० २. हरिगीतिका में हर पद के अंत में लघु-गुरु ( छब्बीसवी लघु, सत्ताइसवी-अट्ठाइसवी गुरु ) अनिवार्य है।
० ३. हरिगीतिका में १६-१२ या १४-१४ पर यति का प्रावधान है।
० ४. सामान्यतः दो-दो पदों में समान तुक होती है किन्तु चारों पदों में समान तुक, प्रथम-तृतीय-चतुर्थ पद              में समान तुक भी हरिगीतिका में देखी गयी है।
०५. काव्य प्रभाकरकार जगन्नाथ प्रसाद 'भानु' के अनुसार हर सतकल अर्थात चरण में (11212) पाँचवी,               बारहवीं, उन्नीसवीं तथा छब्बीसवीं मात्रा लघु होना चाहिए।  कविगण लघु को आगे-पीछे के अक्षर से               मिलकर दीर्घ करने की तथा हर सातवीं मात्रा के पश्चात् चरण पूर्ण होने के स्थान पर पूर्व के चरण का               अंतिम दीर्घ अक्षर अगले चरण के पहले अक्षर या अधिक अक्षरों से संयुक्त होकर शब्द में प्रयोग करने             की छूट लेते रहे हैं किन्तु चतुर्थ चरण की पाँचवी मात्रा का लघु होना आवश्यक है।
*
उदाहरण:
०१. निज गिरा पावन कर कारन, राम ज तुलसी ह्यो. (रामचरित मानस)
      (यति १६-१२ पर, ५वी मात्रा दीर्घ, १२ वी, १९ वी, २६ वी मात्राएँ लघु)
०२. दुन्दुभी जय धुनि वे धुनि, नभ नग कौतूहल ले. (रामचरित मानस) 
      (यति १४-१४ पर, ५वी मात्रा दीर्घ, १२ वी, १९ वी, २६ वी मात्राएँ लघु)    
०३. अति किधौं सरित सुदे मेरी, करी दिवि खेलति ली। (रामचंद्रिका)
      (यति १६-१२ पर, ५वी-१९ वी मात्रा दीर्घ, १२ वी, २६ वी मात्राएँ लघु)
०४. जननिहि हुरि मिलि चलीं उचित असी सब काहू ई। (रामचरित मानस)
      (यति १६-१२ पर, १२ वी, २६ वी मात्राएँ दीर्घ, ५ वी, १९ वी मात्राएँ लघु)
०५. करुना निधान सुजा सील सने जानत रारो। (रामचरित मानस)
      (यति १६-१२ पर, ५ वी, १२ वी, १९ वी, २६ वी मात्राएँ लघु)
०६. इहि के ह्रदय बस जाकी जानकी उर मम बा है। (रामचरित मानस)
      (यति १६-१२ पर, ५ वी, १२ वी,  २६ वी मात्राएँ लघु, १९ वी मात्रा दीर्घ)
०७. तब तासु छबि मद छक्यो अर्जुन हत्यो ऋषि जमदग्नि जू।(रामचरित मानस)
      (यति १६-१२ पर, ५ वी, २६ वी मात्राएँ लघु, १२ वी,  १९ वी मात्राएँ दीर्घ)
०८. तब तासु छबि मद छक्यो अर्जुन हत्यो ऋषि जमदग्नि जू।(रामचंद्रिका)
      (यति १६-१२ पर, ५ वी, २६ वी मात्राएँ लघु, १२ वी,  १९ वी मात्राएँ दीर्घ)
०९. जिसको निज / गौरव था / निज दे का / अभिमा है।
      वह नर हीं / नर-पशु निरा / है और मृक समा है। (मैथिलीशरण गुप्त )
      (यति १६-१२ पर, ५ वी, १२ वी,  १९ वी, २६ वी मात्राएँ लघु)
१०. जब ज्ञान दें / गुरु तभी  नर/ निज स्वार्थ से/ मुँह मोड़ता।
      तब आत्म को / परमात्म से / आध्यात्म भी / है जोड़ता।।(संजीव 'सलिल')
   
अभिनव प्रयोग:
हरिगीतिका मुक्तक:
संजीव 'सलिल'
      पथ कर वरण, धर कर चरण, थक मत चला, चल सफल हो.
      श्रम-स्वेद अपना नित बहा कर, नव सृजन की फसल बो..
      संचय न तेरा साध्य, कर संचय न मन की शांति खो-
      निर्मल रहे चादर, मलिन हो तो 'सलिल' चुपचाप धो..
      *
      करता नहीं, यदि देश-भाषा-धर्म का, सम्मान तू.
      धन-सम्पदा, पर कर रहा, नाहक अगर, अभिमान तू..
      अभिशाप जीवन बने तेरा, खो रहा वरदान तू-
      मन से असुर, है तू भले, ही जन्म से इंसान तू..
      *
      करनी रही, जैसी मिले, परिणाम वैसा ही सदा.
      कर लोभ तूने ही बुलाई शीश अपने आपदा..
      संयम-नियम, सुविचार से ही शांति मिलती है 'सलिल'-
      निस्वार्थ करते प्रेम जो, पाते वही श्री-संपदा..
      *
      धन तो नहीं, आराध्य साधन मात्र है, सुख-शांति का.
      अति भोग सत्ता लोभ से, हो नाश पथ तज भ्रान्ति का..
      संयम-नियम, श्रम-त्याग वर, संतोष कर, चलते रहो-
      तन तो नहीं, है परम सत्ता उपकरण, शुचि क्रांति का..
      *
      करवट बदल ऋतुराज जागा विहँस अगवानी करो.
      मत वृक्ष काटो, खोद पर्वत, नहीं मनमानी करो..
      ओजोन है क्षतिग्रस्त पौधे लगा हरियाली करो.
      पर्यावरण दूषित सुधारो अब न नादानी करो..
      *

Sanjiv verma 'Salil'
salil.sanjiv@gmail.com
http://divyanarmada.blogspot.com



7 टिप्‍पणियां:

sn Sharma ने कहा…

sn Sharma

आ० आचार्य जी,
अति सुन्दर छंद । प्रेरणादायक ,उपदेशक , उद्देश्य-परक
सादर
कमल

dks poet ekavita ने कहा…

dks poet

आदरणीय सलिल जी,
खूब निबाहे हैं आपने हरिगीतिका छंद।
बधाई स्वीकारें।
सादर

धर्मेन्द्र कुमार सिंह ‘सज्जन’

Kusum Vir ने कहा…

Kusum Vir

आदरणीय सलिल जी,
अद्भुत है आपकी यह रचना !
आपकी कविता में असीम भाषिक सौन्दर्य के साथ जीवन का गहन चिंतन गुंथा है,
जो मंत्रमुग्ध कर गया I
हार्दिक बधाई I
सादर,
कुसुम वीर

Shriprakash Shukla ने कहा…

Shriprakash Shukla द्वारा yahoogroups.com

आदरणीय आचार्य जी ,
इस अनुपम रचना की प्रशस्ति में शब्द नहीं जुटा पा रहा हूँ ।
इस रचना में काव्य विधा के काव्य पक्ष और भाव पक्ष दोनोंही सम्पूर्ण रूप से विद्यमानहैं । जीवन जीने की कला का सही मार्ग प्रदर्शित करती हुयी, सामजिक सरोकारों को संबोधित करती एक अनुपम प्रेरक रचना है ।

अनेकानेक बधाईयाँ स्वीकार करें ।
सादर
श्रीप्रकाश शुक्ल

achal verma 1:30 am (0 मिनट पहले) ekavita Shree Salil jee, करनी रही, जैसी मिले, परिणाम वैसा ही सदा. कर लोभ तूने ही बुलाई शीश अपने आपदा.. संयम-नियम, सुविचार से ही शांति मिलती है 'सलिल' निस्वार्थ करते प्रेम जो, पाते वही श्री-संपदा.. *नास्ति बुद्धिरयुक्त्स्य नचायुक्तस्य भावना न चाभावयतह शन्तिर्शान्त्स्य कुतह सुखम ॥२-६६॥ प्रेरणा का श्रोत वो है भावना का श्रोत भी शान्ति तब हो मन में वो हो जग न भर दे गंदगी शान्ति बिन हो चैन कैसे चैन बिन आनंद कब है ठान लो बस मन से करनी है उसीकी बन्दगी ॥ इसी भाव को आपने बहुत सरल शब्दों में इस रचना के माध्यम से हमें बताया जिसे पढकर बहुत आनन्द आया । ने कहा…

achal verma

Shree Salil jee,
करनी रही, जैसी मिले, परिणाम वैसा ही सदा.
कर लोभ तूने ही बुलाई शीश अपने आपदा..
संयम-नियम, सुविचार से ही शांति मिलती है 'सलिल'
निस्वार्थ करते प्रेम जो, पाते वही श्री-संपदा..


*नास्ति बुद्धिरयुक्त्स्य नचायुक्तस्य भावना
न चाभावयतह शन्तिर्शान्त्स्य कुतह सुखम ॥२-६६॥

प्रेरणा का श्रोत वो है भावना का श्रोत भी
शान्ति तब हो मन में वो हो जग न भर दे गंदगी
शान्ति बिन हो चैन कैसे चैन बिन आनंद कब है
ठान लो बस मन से करनी है उसीकी बन्दगी ॥
इसी भाव को आपने बहुत सरल शब्दों में इस रचना
के माध्यम से हमें बताया जिसे पढकर बहुत आनन्द आया ।

Tomar Mahipal ने कहा…

Tomar Mahipal द्वारा yahoogroups.com


अद्भुत ,अद्भुत ,अद्भुत -
सामाजिक सरोकार ,
काव्य निर्झर ,निराकार ,
साकार ,देहिक ,देविक ,
परोपकार बस परोपकार ।
न कोई अहं न कोई दावा ,
इसे कहते हैं ,
"आचार्यम 'सलिला' प्रवाहा "।

हार्दिक बधाई और साधुवाद ।

सादर ,

महिपाल , फरवरी , 15 ,ईसा वर्ष 2013

sanjiv verma 'salil' ने कहा…

आत्मीय महिपाल जी, अचल जी, कुसुम जी, श्री प्रकाश जी, सज्जन जी, कमल जी
हरिगीतिका को जो सराहें, कृपा हरि की पा सकें.
हरि को नमन कर वंदना के गीत मनहर गा सकें..