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सोमवार, 25 फ़रवरी 2013

पीड़ा प्रभु की प्यारी तनया संजीव 'सलिल'

एक रचना :
पीड़ा प्रभु की प्यारी तनया
संजीव 'सलिल'
*
पीड़ा प्रभु की प्यारी तनया, मिले उसी को जो हो लायक.
सुख-ऐश्वर्य भोगता है वह, जिसकी भावी हो क्षय कारक..

कल जोड़ा जो आज खा रहा, सुख-भोगों को ऐसा मानें.
खाते से निकालकर पैसा, रिक्त कर रहे ऐसा जानें..

कष्ट भोगता जो वह करता, आज जमा कुछ कल की खातिर.
अगले जन्म सुकर्म फले, यह जान सहे हर मुश्किल माहिर..

देर मगर अंधेर नहीं है, यह विश्वास रखे जो मन में.
सह पाता वह हँसकर पीड़ा, असहनीय जो होती तन में..
*****

Sanjiv verma 'Salil'
salil.sanjiv@gmail.com
http://divyanarmada.blogspot.com

9 टिप्‍पणियां:

Dr.M.C. Gupta ने कहा…

Dr.M.C. Gupta
सलिल जी,

वाह. क्या ख़याल है--- पीड़ा प्रभु की प्यारी तनया!

चार लाइन पेश हैं--

असलियत दुनिया पे हो जाएगी ज़ाहिर एक दिन
वक़्ते-मुश्किल ये गुज़र जाएगा आखिर एक दिन
ज़ब्र कर माना कि तुझपे ज़ुल्म की भरमार है
हार मानेंगे सितम करने के माहिर एक दिन


--ख़लिश

- tekk.savvy318@gmail.com ने कहा…

- tekk.savvy318@gmail.com

अभिवादन श्रीमान,
I seek to improve my Hindi and understand the meaning of the poetry through the poems composed by wonderful people in this group! Living in Toronto, it's tough to get in touch with people who have time to teach Hindi, so E-kavita and Google translate really helps in this matter! But since Google translate is not accurate, I try to do the editing myself! But I need your help...please let me know if this translation below is successful in representing the meaning of the poem accurately!! And I also need your permission to post this to my blog!!

कड़ा न कंकर सदृश हो,
If did not harden like a gravel!
बन मिट्टी सा नर्म.
Became soft like clay!
काल चक्र नित घूमता,
Period! Eternally Swirling,
कहता कर ले कर्म
Calls, get some Karma
नीवों के पाषाण का, माटी देती साथ.
The stone foundations staying together with soil
धूल फेंकती शिखर पर, लख गर्वोन्नत माथ..
Throwing dust at the peak,_________________________

please do try to fill in the blank

dks poet ekavita ने कहा…

dks poet ekavita

आदरणीय आचार्य जी,
अच्छा लगा ये प्रयोग। बधाई
सादर

धर्मेन्द्र कुमार सिंह ‘सज्जन’

sanjiv verma 'salil' ने कहा…

बन्धुवर
बहुत आभार

- kusumvir@gmail.com ने कहा…

- kusumvir@gmail.com

आदरणीय सलिल जी,
क्या कमाल का लिखते हैं आपl
भाषिक सौन्दर्य के साथ भावों का असीम प्रवाह,

कड़ा न कंकर सदृश हो,
बन मिट्टी सा नर्म.
काल चक्र नित घूमता,
कहता कर ले कर्म.....

. क्या बात, क्या बात, क्या बात ( आपके style में )
सादर,
कुसुम वीर

sanjiv verma 'salil' ने कहा…

कुसुम जी
रचनाकार बिना प्रेरणा के कुछ नहीं रच पाता. आपकी प्रतिक्रियाएं प्रेरणा देती हैं. आभार.

Pranava Bharti ने कहा…

Pranava Bharti द्वारा yahoogroups.com


मैं भी कुसुम जी की नकल कर रही हूँ,कुसुम जी से क्षमा मांगते हुए -------
आपके style में -----क्या बात--क्या बात--क्या बात---!!!!
आपके तो हरेक बंद केलिए
और हरेक छंद के लिए ,
अछान्दस हों,दोहे हों या हों गीत
सबमें एक सी ही मुस्काती प्रीत।
क्या क्या कहें श्रीमान,
आप हैं महान बस महान !
बहुत आदर सहित
प्रणव भारती

sanjiv verma 'salil' ने कहा…

स्नेह भाव ही देखता, है तिनके में सूर्य.

'सलिल' भ्रमर की गूँज है, प्रणव नाद है तूर्य।

आपकी कृपा दृष्टि के प्रति आभारी हूँ।

sanjiv verma 'salil' ने कहा…

नीवों के पाषाण का, माटी देती साथ.
soil accompany the foundation stones.
धूल फेंकती शिखर पर, लख गर्वोन्नत माथ..
Throwing dust at the pride peak,

I think this is proper.