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सोमवार, 8 अक्तूबर 2012

काव्य सेतु: English Poem: God give us men Poet: HOLLAND

काव्य सेतु:
मनुष्य की अनुभूतियाँ और भावनाएँ सनातन होती हैं. मधु गुप्ता जी आंग्ल कवि हालैंड की एक रचना प्रस्तुत कर रही हैं जिसके अनुवाद सत्यनारायण शर्मा 'कमल' जी तथा प्रणव भारती जी ने किये हैं.
English Poem: God give us men
Poet: HOLLAND 

(The following is the poem written by Holland and quite some time back. I had copied it from my father's diary, see how relevant it is even today)
*
God give us men , a time like this demands,
Strong minds , great hearts 
True faith and ready hands 
men whom the lust of office does not kill 
men whom the spoils of office cannot buy ,
men who passes opinion and have a will ,
men who have honour and will not lie ,
men who can stand before a demagogue,
and damn his treacherous flatteries without winking ,
Tall men, Sun crowned,
who live above the fog ,
In public duty and  in   private  thinking,
For while the rabble with their thumb- worn creeds ,
Their large professions and their little deeds ,
Mingle in selfish strife ,
Lo ! the freedom weeps ,
Wrong rules the land 
And waiting justice sleeps .
                                                  sent by- Madhu Gupta <madhuvmsd@gmail.com>
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काव्य अनुवाद: सत्यनारायण शर्मा 'कमल'
*
 हे  प्रभु .

           हमें वे लोग दो,
           जो आज के हालात में प्रासंगिक हों
           जिनके  मस्तिष्क पुष्ट हों    
           और  ह्रदय  विशाल हों  
           सच्ची आस्था हो हाथ कर्मठ हों
           लोग जो सत्ता के पीछे दीवाने न हों 
           जिनको पद-लोलुपता और लालच न व्यापे   
           जिनका अन्तःकरण  शुद्ध हो
           विचार परिपक्व हों
           जिनमें आत्मसम्मान हो , मिथ्यावादी न हों
           चाटुकारों से प्रभावित न हों
           चमचागीरी को सख्ती से नकार सकें
           उच्चादर्शों वाले जो तेजस्वी हों
           जो विषमता, असमंजस से दूर रहें  
           स्पष्ट सोच वाले लोकोपयोगी हों
           जो भ्रष्ट परिवेश को सख्ती से बदल सकें 
           जिसमें जमे बड़े पदाधिकारी अकर्मण्य हैं 
           स्वार्थ में लिप्त हैं    
           जहाँ स्वतंत्रता विलाप कर रही है
           जहाँ भ्रष्टाचरण अनाचरण का शासन पल रहा  है 
           जहां न्याय सो गया है  विश्वास खो गया है
           ( हे प्रभु ऐसी भ्रष्ट व्यवस्था को बदलने वाली
           सशक्त सक्षम लोक-शक्ति  दो )
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काव्य अनुवाद: प्रणव भारती 
*
हे प्रभु ! तुम दो हमें ऐसे मानव यहाँ,
 हों मस्तिष्क विकसित जिनके ,मन में करूणा ,स्नेह अपार ,
 सत्य,विश्वास सदा सँग जिनके कर्मठ होवें,उच्च विचार ,
 जिसके मन न लोभ हो ,पद - लालच का  न मन भार  ,
 लक्ष्य सदा सीधा हो उनका,कोई न हो सके खरीदार ,
 इच्छा-शक्ति जिनकी हो ,आत्मसम्मान से हों भरपूर,
 कितना  भ़ी हो महान कोई,या फिर निंदा से मगरूर ,
 पलक तलक न झपके वे , खड़े हों दृढ़ता से भरपूर ,
 हों सुदृढ़ इरादे जिनके,तेज भरा हो जिनके मन,
 अन्धकार से दूर रहें जो,कर्तव्यों में सदा निमग्न,
 ऊंच-नीच जिनके मन न हों,पंथों का न कोई भेद,  
 स्वार्थों में जो कभी न डूबें,सबमें फैलाएं जो नेह,
 देखो !आँसू बहा रही आज़ादी आज यहाँ पड़ी,
 भ्रष्ट ,स्वार्थी लोगों ने करी व्यवस्था गलत खड़ी ,
 न्याय सो गया चादर ओढ़े,हैं प्रतीक्षा में सब लोग,
 ले आओ उनको प्रभु मेरे, बचे लोग न बन पाएं भोग!!
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