कुल पेज दृश्य

बुधवार, 31 अक्तूबर 2012

यातायात अनुज्ञप्ति प्रणाली और अभियंता:

अभियंता बंधु हेतु विशेष आलेख:
थल-यातायात की अनुज्ञप्ति प्रणाली और अभियंता
अभियंता संजीव वर्मा 'सलिल' तथा अभियंता राकेश राठौड़ 
*
प्रारंभ:
मानव सभ्यता का इतिहास परोक्षतः यातायात संसाधनों के उद्भव तथा प्रबंधन के विकास का इतिहास है। आदि मानव जल, भोजन, साथी, आवास तथा सुरक्षा की तलाश में जिन स्थानों पर बार-बार आया-गया, वहाँ उसके पद-चिन्ह पेड़ की टहनी के आकार में अंकित हो गये जिन्हें पग-दण्डी कहा गया। यह पग-डंडी ही वर्तमान भूतलीय पथों, मार्गों, राजमार्गों, महामार्गों की जननी है। पग-डंडियों का स्वयं तथा अपने समूह के सदस्यों के लिए सतत-सुरक्षित रहकर उपयोग करना, क्षति होने पर पुनः सुरक्षित आवागमन के योग्य बनाना, अन्य समूहों अथवा पशुओं को उन पर आधिपत्य करने से रोकना तथा वर्षाकाल में पग-डंडी मिट जाने पर दुबारा खोजना ही आज के यातायात प्रबंधन एवं यातायात अभियांत्रिकी की शुरुआत थी।
अतीत:
ऋग्वेद-काल (ई.पू. 5000) तक यह नन्हीं शुरुआत पग-डंडी, डगर, पथ, राह, लीक, पंथ, सडक, मार्ग, आदि अनेक नाम धारणकर विशाल वट वृक्ष की तरह जड़ें जमा चुकी थी। हर देश-काल में मनुष्यों-पशुओं का आवागमन तथा सामान का सुरक्षित परिवहन राज्य सत्ता, श्रेष्ठि वर्ग तथा जन सामान्य सभी के लिए साध्य तथा शांतिपूर्ण स्थायित्व हेतु साधन भी रहा। यातायात, आवागमन अथवा परिवन पर स्वामित्व व् नियंत्रण सत्ताधिकार, विकास तथा उन्नति का पर्याय हो गया और आज तक है। इतिहास के पृष्ठ पलटें तो पाएंगे कि श्रेष्ठ यातायात-प्रबंधन के काल को स्वर्ण काल तथा उस काल के शासक को आदर्श शासक कहा गया है। वैदिक, मोहनजोदाड़ो, हड़प्पा, रोम, चीन, ग्रीक, मिस्र अदि महान सभ्यताओं के विकास का एक कारण श्रेष्ठ यातायात प्रबन्धन था। दूसरी ओर नाग, रक्ष, असुर, वानर, ऋक्ष, उलूक, किन्नर, गन्धर्व आदि सभ्यताओं के विनाश और पतन के पीछे एक मुख्य कारण यातायात प्रणाली का विकास न कर पाना था। यहाँ तक कि वर्तमान युद्धों तथा आम चुनावों में भी यातायात-प्रणाली तथा प्रबंधन जय-पराजय का निर्णय करने में प्रमुख भूमिका निभाता है।
विकास के चरण:
ऋग्वेद में महामार्ग, विष्णुपुराण तथा अग्निपुराण आदि ग्रंथों में मार्ग निर्माण प्रविधि-मानकों-प्रबंधन आदि का वर्णन, में अयोध्या, जनकपुरी तथा लंका में नगरीय मार्ग, श्री राम द्वारा सेतुबंध का निर्माण, कृष्ण के समय में मथुरा में रथ दौड़ाने योग्य राज्यमार्ग तथा गोकुल आदि ग्रामों में ग्राम्य सड़क,  राजगीर, पटना में ई.पू. 600 की 7.5 मीटर चौड़ी पत्थर निर्मित सड़क, कौटिल्य के अर्थशास्त्र में सड़कों का विस्तृत उल्लेख, चन्द्रगुप्त मौर्य ई.पू.300, सम्राट अशोक ई.पू. 269, बाबर 1500 ई., शेरशाह सूरी 1540-45 ई. तथा पश्चातवर्ती अनेक शासकों ने मार्ग निर्माण, संधारण तथा प्रबंधन के महत्त्व को समझा। केन्द्रीय लोक निर्माण विभाग (लार्ड डलहौजी द्वारा 1865 में स्थापित), केन्द्रीत सड़क संस्था 1930, भारतीय सड़क कोंग्रेस 1934, परिवहन सलाहकार समिति 1935, नागपुर सड़क योजना 1943, केन्द्रीय सड़क अनुसन्धान संस्था 1950 आदि भारत में सड़क निर्माण तथा यातायात प्रबंधन के क्षेत्र में मील के पत्थर की तरह महत्वपूर्ण है।
यातायात संसाधनों का क्रमिक विकास:
यातायात के प्रकार:
1. थलयान: हाथ गाडी, पशु (बैल, घोडा, भैंसा, हाथी) गाडी, साइकिल, स्कूटर, मोटर साइकिल, कार, ट्रक, बस, टैंक आदि।
2. जलयान: डोंगी, नाव, बज्र, शिकार, जहाज, पनडुब्बी, जलपोत आदि।
3. वायुयान: गुब्बारा, हवाई जहाज, ग्लाइडर, हेलिकोप्टर, रोकेट, अंतरिक्षयान आदि।

थल यातायात के साधन:
1. प्रारम्भिक चरण: पैदल (रेंगना, चलना, दौड़ना, कूदना, फिसलना, तैरना आदि।) 
2. पशु आधारित: घोडा, बैल, भैंस, खच्चर, गधा, शेर, चूहा आदि की सवारी।
3. पक्षी आधारित: मयूर, उल्लू, गरुड़ आदि की सवारी।
4. चक्राधारित: 2 चके- हाथगाड़ी, तांगा, बैलगाड़ी, रथ आदि,  3 चके- हाथगाड़ी, रिक्शा, 4- चके ठेला, कार, ट्रक आदि। 5. बहुचक्र- ट्रोले, ट्रक, टैंकर, रेलगाड़ी आदि।
5. चालनप्रणाली: मनुष्य- स्वयं, हाथठेला, रिक्शा, साइकिल आदि। पशु- स्वयं, तांगा, बैलगाड़ी, रथ आदि।
6. ईंधन चालित: स्कूटर, कार, मोपेड, बस, ट्रक, ऑटोरिक्शा, रेलगाड़ी आदि। 
उक्त में से केवल रेलगाड़ी पटरियों पर चलती है, शेष सभी सड़क पर चलते हैं।
यातायात प्रबन्धन:
यातायात प्रबंधन की दृष्टि से यातायात को निम्नानुसार वर्गीकृत किया जा सकता है-
1. स्वतंत्र / निजी यातायात।
2. स्वायत्त संस्था नियंत्रित यातायात।
3. राज्य शासन नियंत्रित यातायात।
4. केंद्र शासन नियंत्रित यातायात।
5. अंतर्राष्ट्रीय यातायात।
6. अंतरिक्षीय यातायात।
अनुज्ञप्ति (लाइसेंसिंग) प्रणाली-
निरंतर बढ़ते यातायात तथा परिवहन संबंधी गतिविधियों के सुचारू सञ्चालन, सम्यक संपादन, प्रभावी नियंत्रण, समुचित सुरक्षा आदि के प्रबंधन हेतु किसी अधिकारी अथवा संस्था की विधिपूर्वक स्थापना, उसके कर्तव्यों, दायित्वों, अधिकारों एवं कार्य विधि का निर्धारण आवश्यक है। ऐसा प्राधिकारी यातायातीय अराजकता को अवरुद्धकर विधि सम्मत गतिविधियों के सम्यक सञ्चालन हेतु अनुमति-पत्र (अनुज्ञप्ति, लाइसेंस, परवाना, पास, टिकिट, टोकन आदि) देकर अथवा न देकर व्यवस्था कायम करता है। व्यवस्था भंग किये जाने पर सम्बंधित को दंड देने का भी उसे अधिकार होता है। वर्तमान में प्रचलित थल यातायात व्यवस्था में निजी, स्थानीय, प्रांतीय, राष्ट्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अनुज्ञप्ति प्रणाली के स्तर निम्न हैं:
   यातायात का प्रकार        -   अनुज्ञप्ति का अधिकार
1. अन्तरिक्षीय / अंतर्राष्ट्रीय -   अंतर्राष्ट्रीय संगठन, राष्ट्रीय सरकार ।
2. वायु यातायात             -    अंतर्राष्ट्रीय संगठन, राष्ट्रीय सरकार वायुपत्तन प्राधिकरण ।
3. जल यातायात             -    अंतर्राष्ट्रीय संगठन, राष्ट्रीय सरकार- जलपत्तन प्राधिकरण, जिला प्रशासन, ग्राम पंचायत।
4. थल यातायात             -     राष्ट्रीय सरकार, प्रांतीय सरकार, जिला प्रशासन, नगर पालिका / निगम, ग्राम पंचायत, संगठन, व्यक्तिगत।
थल यातायात हेतु विविध स्तरों पर विविध अनुज्ञप्ति प्रदाता अधिकारी निम्नानुसार हैं-
   सड़क हेतु अनुज्ञप्ति का प्रकार              प्राधिकृत अधिकारी                        शैक्षणिक योग्यता
1.सड़क की उपयुक्तता               कार्यपालन यंत्री लोक निर्माण विभाग          सिविल यांत्रिकी  स्नातक
2.वाहन की उपयुक्तता              क्षेत्रीय परिवहन अधिकारी (आर.टी.ओ.)           सामान्य स्नातक
3.चालक की उपयुक्तता             क्षेत्रीय परिवहन अधिकारी (आर.टी.ओ.)           सामान्य स्नातक
4.ईंधन की उपयुक्तता                   खाद्य नियंत्रक / प्रदूषण अधिकारी            सामान्य स्नातक / प्रदूषण यांत्रिकी
5.प्रवेश हेतु अनुमति                राष्ट्रीय, प्रांतीय, जिला प्रशासन, ग्राम              सामान्य स्नातक
                              
            पंचायत, प्राधिकरण, मंडी आदि।
अनुज्ञप्ति प्रणाली के बिना सुव्यवस्थित यातायात प्रणाली की कल्पना भी नहीं की जा सकती हर देश-काल में सर्वाधिक यातायात सड़क-मार्ग से ही होता है किन्तु यातायात प्रबंधन की दृष्टि से सर्वाधिक अव्यवस्था, लापरवाही, कुप्रबंध, अराजकता, भ्रष्टाचार तथा दुर्घटनाएं इसी क्षेत्र में हैं। आश्चर्य तथा दुःख का विषय है कि सड़क यातायात संबंधी अराजकता के मूल कारण की पहचान करने का कोई प्रयास ही अब तक नहीं किया गया, उपाय खोजना तथा निराकरण तो दूर की बात है।
सड़क यातायात प्रबंधन की असफलता का कारण  
वस्तुतः  सड़क यातायात प्रबंधन की असफलता का दोष पंगु और अक्षम अनुज्ञप्ति प्रणाली को है इसे आमूल-चूल बदले बिना सुप्रबंधन संभव ही नहीं है। सड़क निर्माण तथा संधारण प्राविधि, सड़क निर्माण सामग्री का चयन, सड़क की मोती में विविध परतों का निर्धारण, सड़क की भार धारणक्षमता (लोड बिअरिंग केपेसिटी) का अनुमान, तदनुसार वाहनों को आवागमन की अनुमति देना या न देना, वाहन के इंजिन का प्रकार, प्रयोग किया जा रहा ईंधन, ब्रेक प्रणाली तथा उसके द्वारा व्युत्पन्न धक्के (शाक, जर्क, थ्रस्ट) के बल का अनुमान, चकों की संख्या तथा उनके द्वारा सड़क सतह पर डाले जा रहे भार की गणना, गति तथा गतिजनित बलों की गणना, गति-अवरोधकों (स्पीड ब्रेकरों) का स्थान व आकार, मोड़ों तथा घुमावों का निर्धारण, प्रकाश व्यवस्था, संकेत चिन्हों का प्रकार तथा स्थान निर्धारण आदि कार्य पूरी तरह यांत्रिकी एवं तकनीक से सम्बंधित है किन्तु सड़क निर्माण तथा संधारण को छोड़कर शेष कार्य गैर तकनीकी शिक्षा प्राप्त अधिकारियों द्वारा किये जाते हैं। तकनीकी जानकारीविहीन अधिकारियों के हाथों में सञ्चालन तथा नियंत्रण होना ही अव्यवस्था, अराजकता तथा सड़कों के टूटने का कारण है।
क्षेत्रीय परिवहन अधिकारी (आर.टी.ओ.) की वर्तमान कार्य प्रणाली
वर्तमान में सड़क यातायात नियंत्रण पूरी तरह गैर तकनीकी क्षेत्रीय परिवहन अधिकारी (आर.टी.ओ.) तथा यातायात पुलिस के हाथों में है। आर.टी.ओ. ही वाहन-चालन हेतु अनुज्ञप्ति (लाइसेंस) जारी करते हैं जबकि उन्हें वाहन-चालक हेतु आवश्यक तत्वों (तकनीकी शिक्षा ताकि विविध यंत्रों की कार्यविधि समझ सके, देखने की क्षमता ताकि मार्ग संकेत, मार्ग का किनारा, आते-जाते वाहनों की स्थिति व् गति का अनुमान कर सके, मानसिकता ताकि संकेतों और नियमों का पालन करे आदि) की न तो कोई जानकारी होती है, न किसी जानकार से परामर्श लिया जाता है। सर्वविदित है की आर.टी.ओ.कार्यालय दलालों के अड्डे हैं जहाँ धन व्यय कर कोई भी अनुज्ञप्ति प्राप्त कर सकता है। इस प्रणाली को तत्काल पूरी तरह बदलकर तकनीकी रूप से सक्षम बमय जाना आवश्यक है तभी मार्गों का जीवनकाल बढ़ेगा तथा दुर्घटनाएं कम होंगीं।
1.सड़क की उपयुक्तता:
भारत शासन के भूतल मंत्रालय का सड़क प्रकोष्ठ तथा भारतीय सड़क कोंग्रेस सडक निर्माण की प्रविधियों, गुणवत्ता नियंत्रण आदि के मानक निर्धारित करती हैं। केन्द्रीय लोक निर्माण विभाग, सीमा सुरक्षा बल, रेल पथ यांत्रिकी सेवा, सीमा सड़क संगठन, प्रांतीय लोक निर्माण विभाग, राष्ट्रीय राजमार्ग, राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण, सैन्य अभियांत्रिकी सेवा, नगर निगम / पालिका, ग्रामीण यांत्रिकी सेवा, ग्रामीण सड़क प्राधिकरण, नगर विकास प्राधिकरण, सिंचाई विभाग, कृषि उपज मण्डी, ग्राम पंचायत, वन विभाग आदि विविध शासकीय / अर्ध शासकीय संरचनाएं सड़क निर्माण कार्यों में संलग्न हैं। विस्मय है कि अधिकांश सड़क कार्यों का निष्पादन बिना किसी अभियांत्रिकी मार्गदर्शन के कर रहे हैं। संभवतः यह मान लिया गया है सड़क-निर्माण में किसी विशेषज्ञता की आवश्यकता नहीं है तथा कोइ भी यह कार्य कर और करा सकता है। इसका परिणाम गुणवत्ताहीन सड़कों के रूप में सामने है।
यातायात के घनत्व, प्रकार तथा आवृत्ति और उपलब्ध निर्माण सामग्री के आधार पर सड़क का प्रकार जलबंधीय मैकेडम सड़क, डामरी सड़क, सीमेंट कांक्रीट सड़क या  सीमेंट कांक्रीट सड़क तय कर और निर्माण प्रविधि का निर्धारण किया जाता है। यातायात के घनत्व के आधार पर सड़क की चौड़ाई (एक पथीय, दो पथीय, पथीय, चार पथीय या अधिक) का निर्णय किया जाता है। यातायात के घनत्व, चौड़ाई, गति, उपयोग तथा महत्त्व के आधार पर द्रुत महामार्ग, राष्ट्रीय राजमार्ग, प्रांतीय महामार्ग, जिला मार्ग, ग्रामीण मार्ग, पहुँच मार्ग आदि श्रेणी निर्धारित कर तदनुसार निर्माण सामग्री (मिट्टी, मुरम, गिट्टी, डामर मिश्रित गिट्टी, सीमेंट कांक्रीट आदि) की सतह के संदाबन, मोटाई आदि का निर्धारण किया जाता है। गुणवत्ता के लिए सामग्री को विविध परीक्षण कर मानक अनुरूप होने पर ही प्रयोग किया जाता है। सड़क के विविध अंगों (मोटाई, चौड़ाई, ढाल, चढ़ाव, कटाव, भराव, किनाराबंदी (एजिंग), स्कन्ध (बर्म)आदि, संकेत पटल, गति अवरोधक, घर्षण पृष्ठ (विअरिंग कोट), जोड़, फॉर्म वर्क, अधः स्तर (सब ग्रेड), अधः आधार (सब बेस), संदाब (कोम्पैक्शन) आदि के मानकों का पालन आवश्यक है।
2.वाहन की उपयुक्तता:
वाहन कारखानों में निर्माण के समय निर्धारित मानकों का पालन होने पर भी सड़क पर वाहन उतारे जाते समय उसमें कोई त्रुटि तो नहीं है, वाहन के आवागमन के लिए सड़क पर्याप्त मजबूत है या नहीं, सड़क की हालत वाहन के भार सहन करने योग्य है या नहीं देखे बिना ही लाइसेंस जारी कर दिया जाता है। अनुज्ञप्ति अधिकारी तथा वाहन स्वामी / चालाक की अनभिज्ञता के कारण सड़क तथा वाहन दोनों शीघ्र ख़राब होते हैं तथा दुर्घटनाओं में जन-धन की हानि होती है। अनुज्ञप्ति प्रदाय समिति में सिविल तथा मैकेनिकल इंजीनियर हों तो यह स्थिति सुधर सकती है।
3.चालक की उपयुक्तता:
वर्तमान में निर्धारित शुल्क तथा अतिरिक्त राशी का भुगतान कर अनुज्ञप्ति कोई भी प्राप्त कर सकता है। अकुशल चालक दुर्घटनाओं का कारण होता है। चालाक को अनुज्ञप्ति दिए जाने के पूर्व उसे वाहन के विविध हिस्सों तथा यंत्रों के नाम-कार्य विधि-उपयोग करने संबंधी जानकारी, यातायात चिन्हों की समझ, वाहन चालन में दक्षता, नियम पालन की प्रवृत्ति रंगों को देख-पहचानने की क्षमता, एनी वाहनों के हार्न सुन पाने और उस पर प्रतिक्रिया व्यक्त करने की क्षमता, त्वरित निर्णय लेकर क्रियांवित करने की क्षमता का परीक्षण चिकित्सक द्वारा किया जाना जरूरी है।
4.ईंधन की उपयुक्तता: वाहन चालन में जलाये गये ईधन से उत्सर्जित धुआँ तथा इंजिन व वाहन की ध्वनि से क्रमशः धूम्र तथा ध्वनि प्रदूषण होता है। ईंधन की गुणवत्ता की जांच खाद्य अधिकारी / निरीक्षक द्वारा की जाती है जो तकनीक तथा जानकारीविहीन होते हैं। म. प्र. प्रदूषण नियंत्रण मंडल के अनुसार वाहन जनित प्रदूषण की सीमा निम्नानुसार होनी चाहिए-

वाहन की श्रेणी    कार्बन मोनो ऑक्साइड सल्फर डाई ऑक्साइड  हाइड्रोकार्बन   नाइट्रस ऑक्साइड
_______________________________________________________________________
पेट्रोल चलित           3.5 प्रतिशत                0.2प्रतिशत      13.8प्रतिशत       6.0प्रतिशत
_______________________________________________________________________
डीजल चलित           0.2 प्रतिशत                0.1प्रतिशत        0.4प्रतिशत       0.5प्रतिशत
_______________________________________________________________________
यूरो 1 ग्राम/कि.मी.    2.72                          0.97                                      0.97
_______________________________________________________________________
दुष्प्रभाव               रक्तसंचार में बाधा     श्वसन क्रिया में बाधा       नजला
_______________________________________________________________________

5.प्रवेश हेतु अनुमति:
 सड़क, सेतु आदि पर प्रवेश के पूर्व शुल्क संग्रहण से निर्माण लागत वापिस प्राप्त करना अपरिहार्यता के बाद भी न्यूनतम तथा सीमित समय के लिए होता है। लागत तथा संधारण तकनीकी विभाग द्वारा किया जाता है। अतः, वसूली का निर्धारण भी तकनीकी अभियंता द्वारा किया जाना चाहिए। सडक, वाहन, वाहन पर लड़ा भार आदि का सड़क पर पड़नेवाला प्रभाव अभियंता ही जान सकता है। मौसम भी सड़क की भारवहन क्षमता को प्रभावित करता है।
वर्षाकाल तथा हिमपात के समय सड़क के नीचे की सतह गीली तथा नर्म होने से भारवहन क्षमता कम हो जाना स्वाभाविक है।          
सक्षम क्षेत्रीय परिवहन अधिकारी (आर.टी.ओ.) समिति हेतु आवश्यकताएँ
उक्त से स्पष्ट है कि वर्तमान अक्षम क्षेत्रीय परिवहन अधिकारी (आर.टी.ओ.) के स्थान पर निम्नानुसार एक सक्षम-कार्य कुशल अनुज्ञप्ति प्रदाता समिति सड़क, वाहन तथा चालक की जांच करे तथा उपयुक्तता के आधार पर ही यातायात की अनुमति दे। समिति में निम्न का होना अनिवार्य किया जाए-
1. स्नातक सिविल अभियंता:
वाहन चालक अनुज्ञप्ति प्रदाता समिति का प्रमुख एक स्नातक सिविल इंजीनियर हो जो सड़क निर्माण की सामग्री, प्रविधि, मानकों, रूपांकन आदि का जानकर हो ताकि सड़क की मजबूती और भार वहन क्षमता का सही आकलन कर सके। उसे यातायात संकेतों के प्रकार और स्थान, प्रकाश की मात्रा और विद्युत खम्भों के स्थान, गति अवरोधकों के आकार-प्रकार तथा स्थान निर्धारण, पुल-पुलियों की निर्माण विधि, भारवहन क्षमता, भार वितरण, चालित भार से उत्पन्न बेन्डिंग मोमेंट्स, बलों आदि की जानकारी होना आवश्यक है।
2. स्नातक यांत्रिकी अभियंता:
वाहन चालक अनुज्ञप्ति प्रदाता समिति का सदस्य एक स्नातक मेकेनिकल इंजीनियर हो जो वाहन के इंजिन के रूपांकन व कार्य प्रणाली, ईंधन के प्रभाव, उससे उत्पन्न होनेवाले धूम्र-ध्वनि प्रदूषण तथा कम्पनजनित प्रभावों का जानकार हो। वह चढ़ावों-उतारों, आकस्मिक ब्रेक लगाने आदि स्थितियों में वाहन के व्यवहार का पूर्वानुमान कर उपयुक्त होने पर ही वहां को अनुज्ञप्ति दिए जाने की अनुशंसा करे। उसे चालक द्वारा वाहन को संचालित तथा नियंत्रित करने की क्षमता का भी आकलन करना होगा। वह वाहन में उपलब्ध हैड लाइटों, सड़क पर उपलब्ध प्रकाश व्यवस्था आदि का अनुमान कर सड़क पर वाहन के चलने के समय का अनुमान कर तदनुसार निर्देश देगा ताकि प्रकाश का अभाव दुर्घटना का कारण न बने।
3. स्नातक चिकित्सक:
वाहन चलन अनुज्ञप्ति डाटा समिति में तीसरा सदस्य एक स्नातक चिकित्सक हो जो वाहन चालक के देखने-सुनने तथा प्रतिक्रिया करने की क्षमता का आकलन करेगा ताकि वह वाहन चलते समय अपने व अन्य वाहनों की स्थिति, गति आदि अनुमान कर अथवा मार्ग संकेत को देखकर या मार्ग पर कोई आपदा (दुर्घटना, बाढ़ का पानी, अग्नि, दरार आदि) होने की स्थिति में वाहन की गति नियंत्रित कर सके या रोक सके। चिकित्सक को मनोविज्ञान की भी सामान जानकारी होना आवश्यक है ताकि वह चालक को अनुज्ञप्ति की अनुशंसा करने के पूर्व उसमें रंगों व् मार्ग संकेतों को पहचानने, नियम पालन करने, संकटग्रस्त को मदद करने, धैर्य-सहिष्णुता आदि की परख कर सके।
उक्त अनुसार परिवर्तन किये जाने पर ही सडक, वाहन त्तथा पुल-पुलियों की उम्र बढ़ेगी दुर्घटनाएं घटेंगी तथा जन-गन सुरक्षित होगा।
भवन, सड़क, पुल देश की, उन्नति के सोपान,
सतत करें उपयोग पर, रखिये यह भी ध्यान।
रखिये यह भी ध्यान, प्रदूषण फ़ैल न पाए।
वाहन चालन का अधिकार योग्य ही पाए।।
पौधारोपण कर घटाइये, दूषण-संकुल-
'सलिल' कहानी कहें प्रगति की, भवन-सड़क-पुल।।

**********


Acharya Sanjiv verma 'Salil'
D.C.E., B.E., M.A. (Economics, Philosophy), LL-B., Dip. Journalism.
salil.sanjiv@gmail.com
http://divyanarmada.blogspot.com
http://hindihindi.in.divyanarmada
094251 83244 / 0761 2411131
AND
Rakesh Rathaor
B.E., M.E.
Chairman IEI jabalpur Centre.

8 टिप्‍पणियां:

sn Sharma yahoogroups.com ने कहा…

sn Sharma


आ0 आचार्य जी ,
पथ और यातायात पर आपका आलेख अनेक महत्वपूर्ण जानकारियों का भण्डार है
चालक की शैक्षणिक योग्यता आपने सामान्य स्नातक बताई है पर ब्यवहार में
चालक का सामान्य स्नातक होने की अनिवार्यता कहीं देखी नहीं गई । चालक
का कोई प्रशिक्षण कोर्स भी निर्णीत नहीं । ट्रेनिंग प्राइवेट चालकों द्वारा दी जाती
है । इसी प्रकार प्रवेश हेतु अनुमति में ग्राम पंचायत के स्तर पर स्नातक की
व्यवस्था भी मुश्किल लगती है । आलेख पठनीय है ।
सादर
कमल

Indira Pratap ने कहा…

Indira Pratap

sanjiiv bhai,
yatayat sambandhi itnii vistrit jankari isse pahle kabhi ek sath nahiin mili . geography kii vidyarthi hone ke karan mujhe ye lekh bahut ruchikar laga . dhanyvad
didda

- mcdewedy@gmail.com ने कहा…

- mcdewedy@gmail.com
एक अत्यंत ज्ञानवर्धक सामायिक लेख। सलिल जी बधाई स्वीकार करें।
महेश चन्द्र द्विवेदी

Kanu Vankoti ने कहा…

Kanu Vankoti

आदरणीय,
ज्ञानवर्द्धक आलेख हेतु साधुवाद...!
काफी विस्तार और मेहनत से सामग्री प्रस्तुत की है, जो अति सराहनीय है.
सादर,
कनु

dks poet eChintan ने कहा…

dks poet eChintan


आदरणीय सलिल जी,
ये सटीक शब्दों में एक अति आवश्यक लेख है। इसको अत्यधिक साझा किए जाने की जरूरत है।
सादर

धर्मेन्द्र कुमार सिंह ‘सज्जन’

achal verma ने कहा…

achal verma achal, eChintan

file under proper caption.


Achal Verma

Pratap Singh ने कहा…

Pratap Singh द्वारा returns.groups.yahoo.com

आदरणीय आचार्य जी

बहुत ही सुन्दर और सारगर्भित लेख है। आपके साहित्यिक और अभियंत्रण दोनों ही विशिष्टताओं को समेटे हुए यह लेख सिर्फ पढने ही नहीं अपितु अनुकरणीय भी है।

सादर
प्रताप

Sanjiv verma 'Salil' ने कहा…

धन्यवाद। आपका सहयोग सादर प्रार्थनीय है।