कुल पेज दृश्य

सोमवार, 1 नवंबर 2021

दोहा सलिला

दोहा सलिला 
*
अमित ऊर्जा-पूर्ण जो, होता वही अशोक
दस दिश पाता प्रीति-यश, सका न कोई रोक
*
कतरा-कतरा दर्द की, करे अर्चना कौन?
बात राज की जानकर, समय हुआ क्यों मौन?
*
एक नयन में अश्रु बिंदु है, दूजा जलता दीप 
इस कोरोना काल में, मुक्ता दुःख दिल सीप 
*
गर्व पर्व पर हम करें, सबका हो उत्कर्ष  
पर्व गर्व हम पर करे, दें औरों को हर्ष 
*
श्रमजीवी के अधर पर, जब छाए मुस्कान 
तभी समझना पर्व को, सके तनिक पहचान  
*
झोपड़-झुग्गी भी सके, जब लछमी को पूज 
तभी भवन में निरापद, होगी भाई दूज 

कोई टिप्पणी नहीं: