मुक्तिका
कोयल कूक कह रही कल रव जैसा था, वैसा मत करना
गौरैया कहती कलरव कर, किलकिल करने से अब डरना
पवन कहे मत धूम्र-वाहनों से मुझको दूषित कर मानव
सलिल कहे निर्मल रहने दे, मलिन न पंकिल मुझको करना
कोरोना बोले मैं जाऊँ अगर रहेगा अनुशासित तू
खुली रहे मधुशाला पीने जाकर बिन मारे मत मरना
साफ-सफाई करो, रहो घर में, मत घर को होटल मानो
जो न चाहते हो तुमसे, व्यवहार न कभी किसी से करना
मेहनतकश को इज्जत दो, भूखा न रहे कोई यह देखो
लोकतंत्र में लोक जगे, जाग्रत हो, ऐसा पथ मिल वरना
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संजीव
१९-५-२०२०
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