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गुरुवार, 19 नवंबर 2020

दोहा सलिला

दोहा सलिला
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जो बैठा डर भीत हो, उतर न पाया पार
बैठ हाथ पर हाथ धर, खुद से खुद ही हार
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हाथों के छाले लिखें, कोशिश की तकदीर
नहा पसीने में बने, उन्नति की तस्वीर
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कश्ती कागज़ की भली, अगर उतारे पार
डूबे को तिनका मिले, हारे खुद मझधार
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सच्चे मन से जब करी, कंकर से फ़रियाद
शंकर हो उसने करि, दिल-दुनिया आबाद
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शब्द-सुमन शत गूंथिए, ले भावों की डोर
गीत माल तब ही बने, जब जुड़ जाएँ छोर
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१९-११-२०२० 


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