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सोमवार, 2 नवंबर 2020

लघुकथा सुरेश शर्मा

लघुकथा 
सुरेश शर्मा 
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बूढा दुबला-पतला शरीर साइकिल रिक्‍शा चलाते हुए भी हांफ रहा था तो कभी कंधे पर लटके अंगोछे से पसीना पोंछ रहा था। जैसे ही पैडल पर उसके पांव का दबाव पड़ता,घटने के नीचें की नसें उभर उठती थी।
बाबा, इस उम्र में रिक्‍शा ढा रहे हो। देखभाल के लिए कोई बेटा-बेटी नहीं क्‍या ․․․․․? सहानुभति दर्शाते हुए मैंने पूछा।
भगवान की कृपा से एक हट्‌टा-ट्‌टा जवान बेटा है साब,पैडल रोककर उसने जवाब दिया, मगर भूल हमसे हो गयी। उसे कालेज की पढाई करवा कर डिग्री दिलवा दी। अब वह गली-गली में डिग्री ढोता फिर रहा है और मैं उसे ढो रहा हूँ।
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