कुल पेज दृश्य

सोमवार, 16 नवंबर 2020

दोहा सलिला

दोहा सलिला
*
सुमन न देता अंजुमन, कहता लाओ मोल.
चकित हुआ माली रहा, खाली जेब टटोल.
*
ले-देकर सुलझा रहे, मंदिर-मस्जिद लोग.
प्रभु के पहले लग रहा, भक्तों को ही भोग.
*
मुखड़े को लाइक मिलें, रचना से क्या काम?
भले हुए बदनाम हम, हुआ दूर तक नाम.
*
खटमल बनकर रह रहे, तनिक न होते दूर 
समझ रहे हैं मित्रगण, हमको शायद सूर 
*
रहजन - रहबर रट रहे, राम राम रम राम।
राम रमापति रम रहो, राग - रागिनी राम।।
* 
ललित लता लश्कर लहक, लक्षण लहर ललाम।
लिप्त लड़कपन लजीला, लतिका लगन लगाम।।
*

कोई टिप्पणी नहीं: