दोहा सलिला:
संजीव
.
फाँसी, गोली, फौज से, देश हुआ आजाद
लाठी लूटे श्रेय हम, कहाँ करें फरियाद?
.
देश बाँट कुर्सी गही, खादी ने रह मौन
बेबस लाठी सिसकती, दूर गयी रह मौन
.
सरहद पर है गडबडी, जमकर हो प्रतिकार
लालबहादुर बनें हम, घुसकर आयें मार
.
पाकी ध्वज फहरा रहे, नापाकी खुदगर्ज़
कुर्सी का लालच बना, लाइलाज सा मर्ज
.
दया न कर सर कुचल दो, देशद्रोह है साँप
कफन दफन को तरसता, देख जाय जग काँप
.
पुलक फलक पर जब टिकी, पलक दिखा आकाश
टिकी जमीं पर कस गये, सुधियों के नव पाश
*
संजीव
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फाँसी, गोली, फौज से, देश हुआ आजाद
लाठी लूटे श्रेय हम, कहाँ करें फरियाद?
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देश बाँट कुर्सी गही, खादी ने रह मौन
बेबस लाठी सिसकती, दूर गयी रह मौन
.
सरहद पर है गडबडी, जमकर हो प्रतिकार
लालबहादुर बनें हम, घुसकर आयें मार
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पाकी ध्वज फहरा रहे, नापाकी खुदगर्ज़
कुर्सी का लालच बना, लाइलाज सा मर्ज
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दया न कर सर कुचल दो, देशद्रोह है साँप
कफन दफन को तरसता, देख जाय जग काँप
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पुलक फलक पर जब टिकी, पलक दिखा आकाश
टिकी जमीं पर कस गये, सुधियों के नव पाश
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