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शुक्रवार, 17 अप्रैल 2015

navgeet: sanjiv

नवगीत:
संजीव
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राजा को गद्दी से काम
.
लोकतंत्र का अनुष्ठान हर
प्रजातंत्र का चिर विधान हर
जय-जय-जय जनतंत्र सुहावन
दल खातिर है प्रावधान हर
दाल दले जन की छाती पर
भोर, दुपहरी या हो शाम
.
मिली पटकनी मगर न चेते
केर-बेर मिल नौका खेते
फहर रहा ध्वज देशद्रोह का
देशभक्त की गर्दन रेते
हाथ मिलाया बाँट सिंहासन
नाम मुफ्त में है बदनाम
.
हों शहीद सैनिक तो क्या गम?
बनी रहे सरकार, आँख नम
गीदड़ भभकी सुना पडोसी
सीमा में घुस, करें नाक-दम
रंग बदलता देखें पल-पल
गिरगिट हो नत करे प्रणाम
.
हर दिन नारा नया  गुंजायें
हर अवसर को तुरत भुनायें
पर उपदेश कुशल बहुतेरे
दल से देश न ऊपर पायें
सकल देश के नेता हैं पर
दल हित साधें नित्य तमाम
.
दल का नहीं, देश का नेता
जो है, क्यों वह ताना देता?
सब हों उसके लिये समान
हँस सम्मान सभी से लेता
हो उदार समभावी सबके
बना न क्यों दे बिगड़े काम?
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