मुक्तक:
संजीव
यहाँ प्रयुक्त छंद को पहचानिए, उसके लक्षण बताइए और उस छंद में कुछ रचिए:
.
माता की जयजयकार करें, निज उर में मोद-उमंग भरें
आ जाए काल तनिक न डरें, जन-जन का भय-संत्रास हरें
फागुन में भी मधुमास वरें, श्रम पूजें स्वेद बिंदु घहरें-
करतल पर ले निज शीश लड़ें, कब्रों में अरि-सर-मुंड भरें
.
आतंकवाद से टकरायें, दुश्मन न एक भी बच पायें
'बम-बम भोले' जयनाद सुनें, अरि-सैन्य दहलकर थर्रायें
जय काली! जय खप्परवाली!!, जय रुंड-मुंड मालावाली!
योगिनियों सहित आयें मैया!, अरि-रक्त-पान कर हर्षायें
.
नेता सत्ता का मोह तजें, जनसेवक बनकर तार-तरें
या घर जाकर प्रभु-नाम भजें, चर चुके बहुत मत देश चरें
जो कामचोर बिन मौत मरें, रिश्वत से जन हो दूर डरें
व्यवसायी-धनपति वृक्ष बनें, जा दीन-हीन के निकट झरें
.
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संजीव
यहाँ प्रयुक्त छंद को पहचानिए, उसके लक्षण बताइए और उस छंद में कुछ रचिए:
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माता की जयजयकार करें, निज उर में मोद-उमंग भरें
आ जाए काल तनिक न डरें, जन-जन का भय-संत्रास हरें
फागुन में भी मधुमास वरें, श्रम पूजें स्वेद बिंदु घहरें-
करतल पर ले निज शीश लड़ें, कब्रों में अरि-सर-मुंड भरें
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आतंकवाद से टकरायें, दुश्मन न एक भी बच पायें
'बम-बम भोले' जयनाद सुनें, अरि-सैन्य दहलकर थर्रायें
जय काली! जय खप्परवाली!!, जय रुंड-मुंड मालावाली!
योगिनियों सहित आयें मैया!, अरि-रक्त-पान कर हर्षायें
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नेता सत्ता का मोह तजें, जनसेवक बनकर तार-तरें
या घर जाकर प्रभु-नाम भजें, चर चुके बहुत मत देश चरें
जो कामचोर बिन मौत मरें, रिश्वत से जन हो दूर डरें
व्यवसायी-धनपति वृक्ष बनें, जा दीन-हीन के निकट झरें
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