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रविवार, 19 अप्रैल 2015

dwipadiyaan: sanjiv

द्विपदियाँ
संजीव
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ज्योति जलती तो पतंगे लगाते हैं  हाजरी
टेरता है जब तिमिर तो पतंगा आता नहीं
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हों उपस्थित या जहाँ जो वहीं रचता रहे
सृजन-शाला में रखे, चर्चा करें हम-आप मिल
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हों अगर मतभेद तो मनभेद हम बनने न दें
कार्य सारस्वत करेंगे हम सभी सद्भाव से
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जब मिलें सीखें-सिखायें शारदा आशीष दें
विश्व भाषा हैं सनातन हमारी हिंदी अमर
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