रोला
बाँस
संजीव
.
हरे-भरे थे बाँस, वनों में अब दुर्लभ हैं
नहीं चैन की साँस, घरों में रही सुलभ है
बाँस हमारे काम, हमेशा ही आते हैं
हम उनको दें काट, आप भी दुःख पाते हैं
बाँस
संजीव
.
हरे-भरे थे बाँस, वनों में अब दुर्लभ हैं
नहीं चैन की साँस, घरों में रही सुलभ है
बाँस हमारे काम, हमेशा ही आते हैं
हम उनको दें काट, आप भी दुःख पाते हैं
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें