मुक्तिका:
संजीव
.
चूक जाओ न, जीत जाने से
कुछ न पाओगे दिल दुखाने से
.
काश! खामोश हो गये होते
रार बढ़ती रही बढ़ाने से
.
बावफा थे, न बेवफा होते
बात बनती है, मिल बनाने से
.
घर की घर में रहे तो बेहतर है
कौन छोड़े हँसी उड़ाने से?
.
ये सियासत है, गैर से बचना
आजमाओ न आजमाने से
.
जिसने तुमको चुना नहीं बेबस
आयेगा फिर न वो बुलाने से
.
घाव कैसा हो, भर ही जाता है
दूरियाँ मिटती हैं भुलाने से
.
संजीव
.
चूक जाओ न, जीत जाने से
कुछ न पाओगे दिल दुखाने से
.
काश! खामोश हो गये होते
रार बढ़ती रही बढ़ाने से
.
बावफा थे, न बेवफा होते
बात बनती है, मिल बनाने से
.
घर की घर में रहे तो बेहतर है
कौन छोड़े हँसी उड़ाने से?
.
ये सियासत है, गैर से बचना
आजमाओ न आजमाने से
.
जिसने तुमको चुना नहीं बेबस
आयेगा फिर न वो बुलाने से
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घाव कैसा हो, भर ही जाता है
दूरियाँ मिटती हैं भुलाने से
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