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गुरुवार, 1 जनवरी 2015

navgeet 2014

२०१४ का अंतिम नवगीत:
कब आया, कब गया
साल यह
.
रोजी-रोटी रहे खोजते
बीत गया
जीवन का घट भरते-भरते
रीत गया
रो-रो थक, फिर हँसा
साल यह
.
आये अच्छे दिन कब कैसे?
खोज रहे
मतदाता-हित नेतागण को
भोज रहे
छल-बल कर ढल गया
साल यह
.
मत रो रोना, चैन न खोना
धीरज धर 
सुख-दुःख साथी, धूप-छाँव सम
निशि-वासर
सपना बनकर पला
साल यह
.
३१.१२. २०१४, २३.५५

3 टिप्‍पणियां:

Shikha Gupta shikhagupta2111@gmail.com ने कहा…

Shikha Gupta
shikhagupta2111@gmail.com

बहुत सुंदर नव-गीत …

शब्द व्यंजना shabdvyanjana@gmail.com ने कहा…

शब्द व्यंजना
shabdvyanjana@gmail.com
www.shabdvyanjana.com

आपके ये दो नवगीत पत्रिका के जनवरी अंक में सम्मिलित कर रहे हैं.

sanjiv ने कहा…

अवश्यं कीजिए. धन्यवाद। मेरा पता: संजीव वर्मा 'सलिल', समन्वयम, २०४ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१ , ९४२५१ ८३२४४