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शुक्रवार, 1 अगस्त 2014

Lekh: kayasthon ka mahaaparv naag panchami -sanjiv

विचारोत्तेजक लेख:
कायस्थों का महापर्व नागपंचमी
संजीव
*
कायस्थोंके उद्भव की पौराणिक कथाके अनुसार उनके मूल पुरुष श्री चित्रगुप्तके २ विवाह सूर्य ऋषिकी कन्या नंदिनी और नागराजकी कन्या इरावती  हुए थे। सूर्य ऋषि हिमालय की तराईके निवासी और आर्य ब्राम्हण थे जबकि नागराज अनार्य और वनवासी थे। इसके अनुसार चित्रगुप्त जी ब्राम्हणों तथा आदिवासियों दोनों के जामाता और पूज्य हुए। इसी कथा में चित्रगुप्त जी के १२ पुत्रों  नागराज वासुकि की १२ कन्याओं से साथ किये जाने का वर्णन है जिनसे कायस्थों की १२ उपजातियों का श्री गणेश हुआ।  पुत्रों को एक ही वंश में ब्याहना और अगली पीढ़ी में कोई ब्राम्हण कन्या न आना दर्शाता है कि वनवासी नागों से संबंध को ब्राम्हणों ने नहीं स्वीकारा। 

इससे यह भी स्पष्ट है कि नागों के साथ कायस्थॉ का निकट संबंध (ननिहाल) है। आर्यों के पूर्व नाग संस्कृति सत्ता में थी। नागों को विष्णु ने छ्ल से हराया। नाग राजा का वेश धारण कर रानी का सतीत्व भंग कर नाग राजा के प्राण हरने, राम, कृष्ण (कालिया नाग प्रसंग) तथा पान्ड्वों द्वारा नाग राजाओं और प्रजा का वध करने, उनकी जमीन छीनने,  तक्षक द्वारा दुर्योधन की सहायता करने, जन्मेजय द्वारा नागों का कत्लेआम किये जाने, नागराज तक्षक द्वारा फल की टोकनी में घुसकर उसे मारने के प्रसंग सर्व ज्ञात हैं। महाभारत में अंगराज कर्ण हमेशा कुरु राज्य सभा में देखे जाते हैं तब उनके अंग देश का राज्य संचालन कौन करता था? वास्तव में कायस्थ ही उनका राज-काज इतनी दक्षता से देखते रहे कि वे निश्चिन्त रह सके। कर्ण के रपतिनिधि के नाते वे भी कर्ण या 'करण कायस्थ' (कार्यस्थ = कर्ण के राज्य कार्य पर स्थित) कहे गये और आज भी 'करण' कहे जाते हैं।

दमन की यह सब घटनायें कायस्थों के ननिहाल पक्ष के साथ घटीं तो क्या कायस्थों पर इसका कोई असर नहीं हुआ? वास्तव में नागों और आर्यों के साथ समानता के आधार पर संबंध स्थापित करने का प्रयास आर्यों को नहीं भाया और उन्होंने नागों के साथ उनके संबंधियों के नाते कायस्थों को भी नष्ट किया। महाभारत युद्ध में कौरव और पांडव दोनों पक्षों से कायस्थ नरेश लड़े और नष्ट हुए। बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना.... कायस्थ राजा और उनकी सेनाएं मारी गयीं सिर्फ वृद्ध, महिलाऐं, बच्चे और आम जान बचे। सत्ता काल में जिन्हें रोक वे बदला लेने पर उतर आये तो कायस्थ परिवार संरक्षण के अभाव में भागे और सुदूर बसे।

कालान्तर में शान्ति स्थापना के प्रयासों में  असंतोष को शांत करने के लिए पंचमी पर नागों का पूजनकर उन्हें मान्यता तो दी गयी किन्तु ब्राम्हण को सर्वोच्च मानने की मनुवादी मानसिकता ने आजतक कार्य  पर जाति का निर्धारण करने के सिद्धांत को लोकाचार और परंपरा नहीं बनने दिया । श्री कृष्ण को विष्णु का अवतार मानने के बाद भी गीता में उनका वचन 'चातुर्वर्ण्य मया सृष्टं गुण कर्म विभागष:' को कार्य रूप में नहीं  आने दिया गया तथा ब्राम्हण आज भी श्रेष्ठता का निराधार दावा करते हैं। प्रतिक्रिया स्वरूप सेवाकार्य में जुटे वर्ग एकत्र होकर आरक्षण की माँग करते हैं।

कायस्थों को सनातन सत्य को समझना होगा तथा आदिवासियों से अपने मूल संबंध को स्मरण और पुनर्स्थापित कर खुद को मजबूत बनाना होगा। कायस्थ और आदिवासी समाज मिलकर कार्य करें तो जन्मना ब्राम्हणवाद और छद्म श्रेष्ठता की नींव धसक सकती है। कायस्थ और आदिवासी एक होकर राजनीति में प्रमुखता पा सकते हैं। जिस देश में गाय काटने और पशु-पक्षियों के मांस को खुले आम लटकाकर भेचने पर प्रतिबन्ध नहीं है वहीं नागपंचमी के दिन सर्प-पूजन कराकर जनगण के मन से सर्पों के प्रति भय दूर करनेमें मददगार सपेरों को सर्प पर अत्याचार का अपराधी करार दिया जाए यह कितना न्यायोचित है?

सभी सनातनधर्मी योग्यता वृद्धि हेतु समान अवसर पायें, अर्जित योग्यतानुसार आजीविका पायें तथा पारस्परिक पसंद के आधार पर विवाह संबंध में बँधने का अवसर पा सकें तो एक समरस समाज का निर्माण हो सकेगा। इसके लिए कायस्थों को अज्ञानता के घेरे से बाहर आकर सत्य को समझना और खुद को बदलना होगा। 

नागों  संबंध की कथा पढ़ने मात्र से कुछ नहीं होगा। कथा के पीछे का सत्य जानना और मानना होगा। संबंधों को फिर जोड़ना होगा। नागपंचमी के समाप्त होते पर्व को कायस्थ अपना राष्ट्रीय पर्व बना लें तो आदिवासियों और सवर्णों के बीच नया सेतु बन सकेगा। 

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3 टिप्‍पणियां:

abhilasha ने कहा…

Kya mai ise apne Facebook Wall pe daal sakti HOON?

sanjiv verma 'salil' ने कहा…

प्रिय अभिलाषा जी
वन्दे भारत भारती
आप इसे अपनी वाल पर अवश्य लगाइए.

Satish Saxena ने कहा…

Satish Saxena

मुझे लगता है यह नयी अवधारणा है , फिर भी यह जानकारी अच्छी लगी ! मंगलकामनाएं आपको !