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मंगलवार, 25 सितंबर 2012

धरोहर : ४. स्व. सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला'

धरोहर :
इस स्तम्भ में विश्व की किसी भी भाषा की श्रेष्ठ मूल रचना देवनागरी लिपि में, हिंदी अनुवाद, रचनाकार का परिचय व चित्र, रचना की श्रेष्ठता का आधार जिस कारण पसंद है. संभव हो तो रचनाकार की जन्म-निधन तिथियाँ व कृति सूची दीजिए. धरोहर में सुमित्रा नंदन पंत, मैथिलीशरण गुप्त तथा नागार्जुन के पश्चात् अब आनंद लें सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला जी की रचनाओं का।
४.स्व. सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला'



     निराला जी - गिरिजा कुमार माथुर



बाँधो न नाव...
*
बाँधो न नाव इस ठांव बंधु!
पूछेगा सारा गाँव बंधु!!

वह घाट वही जिस पर हँसकर,
वह कभी नहाती थी धँसकर,
आँखें रह जाती थीं फँसकर,
कँपते थे दोनों पाँव बंधु!

बाँधो न नाव इस ठांव बंधु!
पूछेगा सारा गाँव बंधु!!
*
वह हँसी बहुत कुछ कहती थी,
फिर भी अपने में रहती थी,
सबकी घुटती थी, सहती थी,
देती थी सबके दाँव बंधु!

बाँधो न नाव इस ठांव बंधु!
पूछेगा सारा गाँव बंधु!!
*

*

*

*

3 टिप्‍पणियां:

deepti gupta ✆ yahoogroups.com ने कहा…

deepti gupta ✆ द्वारा yahoogroups.com

kavyadhara


निराला मेरे प्रिय कवियों में से हैं ! सुन्दर प्रस्तुति हेतु बधाई !
सादर,
दीप्ति

Pratap Singh ✆ ने कहा…

pratapsingh1971@gmail.com द्वारा yahoogroups.com kavyadhara


निराला की यह कविता बहुत ही सुन्दर है.
भूलवश लगता है टाइपिंग की त्रुटि के कारण निम्न अनुच्छेद में कुछ पंक्तियाँ गलत लिख गई हैं --


वह हँसी बहुत कुछ कहती थी,
फिर भी अपने में रहती थी,
पचकी घुटती थी, बहती थी,
देती थी बचके दाँव बंधु!

सही पंक्तियाँ हैं --

वह हँसी बहुत कुछ कहती थी,
फिर भी अपने में रहती थी,
सबकी सुनती थी, सहती थी
देती थी सबके दांव बंधु !

सादर
प्रताप

sanjiv verma salil ✆ ने कहा…

sanjiv verma salil ✆ salil.sanjiv@gmail.com kavyadhara

प्रताप जी स्मृति भ्रम को सुधारने हेतु आभार.