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शुक्रवार, 14 सितंबर 2012

दोहा सलिला हिंदी प्रातः श्लोक है..... -- संजीव 'सलिल'

दोहा सलिला
हिंदी प्रातः श्लोक है.....
-- संजीव 'सलिल'
*
हिंदी भारत भूमि के, जनगण को वरदान.
हिंदी से ही हिंद का, संभव है उत्थान..
*
संस्कृत की पौत्री प्रखर, प्राकृत-पुत्री शिष्ट.
उर्दू की प्रेमिल बहिन, हिंदी परम विशिष्ट..
*
हिंदी आटा माढ़िये, उर्दू मोयन डाल.
'सलिल' संस्कृत सान दे, पूड़ी बने कमाल..
*
ईंट बनें सब बोलियाँ, गारा भाषा नम्य.
भवन भव्य है हिंद का, हिंदी बसी प्रणम्य..
*
संस्कृत, पाली, प्राकृत, हिंदी उर्दू पाँच.
भाषा-बोली अन्य हैं, स्नेहिल बहने साँच..
*
सब भाषाएँ-बोलियाँ, सरस्वती के रूप.
स्नेह् पले, साहित्य हो, सार्थक सरस अनूप..
*
भाषा-बोली श्रेष्ठ हर, त्याज्य न कोई हेय.
सबसे सबको स्नेह ही, हो जीवन का ध्येय..
*
उपवन में कलरव करें, पंछी नित्य अनेक.
भाषाएँ हैं अलग पर, पलता स्नेह-विवेक..
*
भाषा बोलें कोई भी, किन्तु बोलिए शुद्ध.
दिल से दिल तक जा सके, बनकर प्रेम प्रबुद्ध..
*
मौसी-चाची ले नहीं, सकतीं माँ का स्थान.
सिर-आँखों पर बिठा पर, उनको माँ मत मान..
*
ज्ञान गगन में सोहती, हिंदी बनकर सूर्य.
जनहित के संघर्ष में, है रणभेरी तूर्य..
*
हिंदी सजती भाल पर, भारत माँ के भव्य.
गौरव गाथा राष्ट्र की, जनवाणी यह दिव्य..
*
हिंदी भाषा-व्याकरण, है सटीक अरु शुद्ध.
कर सटीक अभिव्यक्तियाँ, पुजते रहे प्रबुद्ध..
*
हिंदी सबके माँ बसी, राजा प्रजा फकीर.
केशव देव रहीम घन, तुलसी सूर कबीर..
*
हिंदी प्रातः श्लोक है, दोपहरी में गीत.
संध्या वंदन-प्रार्थना, रात्रि प्रिया की प्रीत..
**************
Acharya Sanjiv verma 'Salil'
सलिल.संजीव@जीमेल.कॉम
http://divyanarmada.blogspot.com
http://hindihindi.in



6 टिप्‍पणियां:

sn Sharma ✆ ने कहा…

sn Sharma ✆ द्वारा yahoogroups.com

kavyadhara


आ० आचार्य जी ,
सभी दोहे प्रेरणात्मक| साधुवाद!
विशे -संस्कृत, पाली, प्राकृत, हिंदी उर्दू पाँच.
भाषा-बोली अन्य हैं, स्नेहिल बहने साँच..

सादर
कमल

deepti gupta ✆ द्वारा ने कहा…

दोहा सलिला
हिंदी प्रातः श्लोक है.....
-- संजीव 'सलिल'
*
हिंदी भारत भूमि के, जनगण को वरदान.
हिंदी से ही हिंद का, संभव है उत्थान..
सत्य वचन .
*
संस्कृत की पौत्री प्रखर, प्राकृत-पुत्री शिष्ट.
उर्दू की प्रेमिल बहिन, हिंदी परम विशिष्ट..वाह वाह
*
हिंदी आटा माढ़िये, उर्दू मोयन डाल.
..............क्या बात है
'सलिल' संस्कृत सान दे, पूड़ी बने कमाल..
...........:)) laughing
*
ईंट बनें सब बोलियाँ, गारा भाषा नम्य.
भवन भव्य है हिंद का, हिंदी बसी प्रणम्य..
*
संस्कृत, पाली, प्राकृत, हिंदी उर्दू पाँच.
भाषा-बोली अन्य हैं, स्नेहिल बहने साँच..
*
सब भाषाएँ-बोलियाँ, सरस्वती के रूप.
स्नेह् पले, साहित्य हो, सार्थक सरस अनूप..
*
भाषा-बोली श्रेष्ठ हर, त्याज्य न कोई हेय.
सबसे सबको स्नेह ही, हो जीवन का ध्येय..
*
उपवन में कलरव करें, पंछी नित्य अनेक.
भाषाएँ हैं अलग पर, पलता स्नेह-विवेक..
...............................खूब
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भाषा बोलें कोई भी, किन्तु बोलिए शुद्ध. .............ये हुई न बात
दिल से दिल तक जा सके, बनकर प्रेम प्रबुद्ध..
....................एकदम सच कहा
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मौसी-चाची ले नहीं, सकतीं माँ का स्थान.
.............B-) cool
सिर-आँखों पर बिठा पर, उनको माँ मत मान..
*
ज्ञान गगन में सोहती, हिंदी बनकर सूर्य.
जनहित के संघर्ष में, है रणभेरी तूर्य..
*
हिंदी सजती भाल पर, भारत माँ के भव्य.
गौरव गाथा राष्ट्र की, जनवाणी यह दिव्य.
..........................;;) batting eyelashes
*
हिंदी भाषा-व्याकरण, है सटीक अरु शुद्ध.
कर सटीक अभिव्यक्तियाँ, पुजते रहे प्रबुद्ध..
*
हिंदी सबके माँ बसी, राजा प्रजा फकीर.
...........शायद मन बसी होना था
केशव देव रहीम घन, तुलसी सूर कबीर..
*
हिंदी प्रातः श्लोक है, दोपहरी में गीत.
...........................बहुत सुंदर
संध्या वंदन-प्रार्थना, रात्रि प्रिया की प्रीत..
...........................अतिसुन्दर!
**************

Pratap Singh ✆ ने कहा…

pratapsingh1971@gmail.com द्वारा yahoogroups.com kavyadhara


सुन्दर दोहे! मन को सोहे!

सादर
प्रताप

- sosimadhu@gmail.com ने कहा…

- sosimadhu@gmail.com

सादर सादर सादर सादर नमन।
शेष कुछ कहा नही जाता।
आपकी कृति पर कुछ कहने के लायक नहीं हूँ। प्रणाम ।
मधु

Indira Pratap ✆ ने कहा…

Indira Pratap ✆ द्वारा yahoogroups.com kavyadhara


प्रिय भाई संजीव जी ,
हिंदी दिवस पर इतनी सुन्दर और अपनी भाषाओँ की परंपरा को जोड़ती ऐसी कविता लगता है पहली बार ही पढ़ी है | सरस्वती के वरद पुत्र बने रहें |बड़ी बहिन का आशीष | इति शुभम | दिद्दा
दिद्दा

Divya Narmada ने कहा…

दिद्दा के आशीष में, मिला शारदाशीष.
सलिल भाग्य तेरे खुले, वंदन कर नत शीश..