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शनिवार, 22 सितंबर 2012

जोहानसबर्ग में नौवां विश्व हिन्दी सम्मेलन 2012 विवेक रंजन श्रीवास्तव


नौवां विश्व हिन्दी सम्मेलन 2012 जोहानसबर्ग
विवेक रंजन श्रीवास्तव


बैरिस्टर मोहनदास को  महात्मा गांधी बना देनेवाले  दक्षिण अफ्रीका के जोहानसबर्ग शहर में नौवां विश्व हिन्दी सम्मेलन 22 से 24 सितंबर २०१२ को सैंडटन कन्वेशन सेन्टर में आयोजित है जिसे विश्व हिन्दी सम्मेलन के तीन दिनों के लिए 'गांधी ग्राम' का नाम दिया जाएगा। हिन्दी ३० से अधिक देशों  में ८० करोड़ लोगों की भाषा  है. सम्मेलन का उद्घाटन भारत और दक्षिण अफ्रीका संयुक्त रूप से करेंगे। सरकारी रूप से आयोजित होनेवाला हिन्दी पर केंद्रित यह महत्वपूर्ण आयोजन है।. सम्मेलन हर चौथे वर्ष आयोजित किया जाता है।

सम्मेलन में विश्व के विविध देशों से गैर हिन्दी भाषी ‘हिन्दी विद्वानों’ सहित लगभग 700 प्रतिनिधि सम्मिलित होना संभावित है। इनमें से तकरीबन 400 प्रतिनिधि खुद के खर्च पर इस सम्मेलन में भाग लेंगे जो उनके हिन्दी प्रेम को दर्शाता है।

पहला विश्व हिन्दी सम्मेलन राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, वर्धा के सहयोग से  1975 में नागपुर में संपन्न हुआ था जिसमें विनोबाजी ने हिन्दी को विश्व स्तर पर प्रतिष्ठित किये जाने हेतु संदेश भेजा था। उसके बाद मॉरीशस, ट्रिनिदाद एवं टोबैको, लंदन, सूरीनाम में ऐसे सम्मेलन हुए।  इनमें से कम से कम चार सम्मेलनों में संयुक्त राष्ट्र संघ में हिन्दी को आधिकारिक भाषा के रूप स्थान दिलाया जाने संबंधी प्रस्ताव पारित हुए पर आज भी हिन्दी को यह स्थान दिलाया नहीं जा सका है।

भाषा की अस्मिता और हिंदी का वैश्विक संदर्भ ९ वें सम्मेलन की मुख्य विषय-वस्तु है। सम्मेलन में नौ शास्त्रीय विवेचन सत्र व सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन होगा तथा प्रर्दशनियां लगाई जाएंगी।  गांधी स्मृति एवं दर्शन समिति की ओर से महात्मा गांधी की लिखी पुस्तकों की प्रदर्शनी भी लगाई जाएगी। सम्मेलन स्थल का नाम गांधीग्राम रखा गया है  और विभिन्न सत्र  शांति, सत्य, अहिंसा,नीति और न्याय- नेलसन मंडेला सभागार सहित अन्य सभागारों में संपन्न होंगे। 

वैश्विक स्तर पर भारत की राजभाषा हिंदी के प्रति जागरुकता पैदा करने, हिन्दी की विकास यात्रा का मूल्यांकन करने, हिन्दी साहित्य के प्रति सरोकारों को मजबूत करने, लेखक-पाठक का रिश्ता प्रगाढ़ करने व जीवन के विवि‍ध क्षेत्रों में हिन्दी के प्रयोग को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से 1975 से विश्व हिन्दी सम्मेलनों की श्रृंखला आरंभ हुई है। हिन्दी को वैश्विक सम्मान दिलाने की इस परिकल्पना को सबसे पहले पूर्व प्रधानमन्त्री स्व.श्रीमती इंदिरा गांधी ने मूर्त रूप दिया। यह सम्मेलन प्रवासी भारतीयों के ‍लिए बेहद भावनात्मक आयोजन होता है। क्योंकि ‍भारत से बाहर रहकर हिन्दी के प्रचार-प्रसार में वे जिस समर्पण और स्नेह से भूमिका निभाते हैं उसकी मान्यता और प्रतिसाद उन्हें इसी सम्मेलन में मिलता है।

पहला विश्व हिन्दी सम्मेलन 1975

पहला विश्व हिन्दी सम्मेलन राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, वर्धा के तत्वावधान में 10 जनवरी से 14 जनवरी 1975 तक नागपुर में आयोजित किया गया था। राष्ट्रीय आयोजन समिति के अध्यक्ष उपराष्ट्रपति श्री बी.डी. जत्ती थे। पहले विश्व हिन्दी सम्मेलन का बोधवाक्य था- 'वसुधैव कुटुंबकम'। इस सम्मेलन में 30 देशों के कुल 122 प्रतिनिधियों ने भाग लिया।  सम्मेलन में हिन्दी भाषा के लिए पारित किए गए विचार थे-

1- संयुक्त राष्ट्र संघ में हिन्दी को आधिकारिक भाषा के रूप में स्थान दिया जाए।
2- वर्धा में विश्व हिन्दी विद्यापीठ की स्थापना हो।
3- विश्व हिन्दी सम्मेलनों को स्थायित्व प्रदान करने के लिए अत्यंत विचारपूर्वक योजना निर्माण की जाए।

दूसरा विश्व हिन्दी सम्मेलन 1976

दूसरे विश्व हिन्दी सम्मेलन का आयोजन मॉरीशस की राजधानी पोर्ट लुई में हुआ। 28 अगस्त से 30 अगस्त 1976 तक चले इस विश्व सम्मेलन के आयोजक मॉरीशस के प्रधानमंत्री डॉ शिवसागर रामगुलाम थे। सम्मेलन में भारत से केबिनेट मंत्री डॉ. कर्ण सिंह के नेतृत्व में 23 सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल ने भाग लिया। भारत के अतिरिक्त सम्मेलन में 17 देशों के 181 प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया।

तीसरा विश्व हिन्दी सम्मेलन 1983

तृतीय विश्व हिन्दी सम्मेलन भारत की राजधानी दिल्ली में 28 अक्टूबर से 30 अक्टूबर 1983 तक विश्व ख्यात छायावादी कवयित्री महीयसी महादेवी वर्मा के मुख्यातिथ्य में संपन्न हुआ था। इस सम्मेलन की राष्ट्रीय आयोजन समिति के अध्यक्ष तत्कालीन लोकसभा अध्यक्ष डॉ. बलराम जाखड़ थे। 'भारत के सरकारी कार्यालयों में हिन्दी के कामकाज की स्थिति उस रथ जैसी है जिसमें घोड़े आगे की बजाय पीछे जोत दिए गए हों।' उक्त विचार हिन्दी की सुप्रसिद्ध संवेदनशील कवियत्री महादेवी वर्मा ने तीसरे विश्व हिन्दी सम्मेलन के समापन अवसर पर व्यक्त किए थे। सम्मेलन में कुल 6,566 प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया जिनमें विदेशों से आए 260 प्रतिनिधि शामिल थे।

चौथा विश्व हिन्दी सम्मेलन 1993

चौथे विश्व हिन्दी सम्मेलन का आयोजन 2 दिसंबर से 4 दिसंबर 1993 तक पुन: 17 साल बाद मॉरीशस की राजधानी पोर्ट लुई में आयोजित किया गया। आयोजन की जिम्मेदारी मॉरीशस के कला, संस्कृति मंत्री मुक्तेश्वर चुनी ने निभाई थी। भारत के प्रतिनिधिमंडल के नेता थे मधुकर राव चौधरी। तत्कालीन गृह राज्यमंत्री श्री रामलाल राही प्रतिनिधिमंडल के उपनेता थे। इसमें 200 विदेशी प्रतिनिधियों ने भाग लिया।

पांचवां विश्व हिन्दी सम्मेलन 1996

पांचवां विश्व हिन्दी सम्मेलन त्रिनिदाद एवं टोबेगो की राजधानी पोर्ट ऑफ स्पेन में 4 अप्रैल से 8 अप्रैल 1996 तक में आयोजित हुआ। इस सम्मेलन में भाग लेने वाले 17 सदस्यीय भारतीय प्रतिनिधिमंडल के नेता अरुणाचल प्रदेश के राज्यपाल श्री माता प्रसाद थे। सम्मेलन का केन्द्रीय विषय थे- 'प्रवासी भारतीय और हिन्दी, हिन्दी भाषा और साहित्य का विकास, कैरेबियाई द्वीपों में हिन्दी की स्थिति एवं कप्यूटर युग में हिन्दी की उपादेयता'। अन्य देशों के 257 प्रतिनिधि इसमें शामिल हुए।

छठा विश्व हिन्दी सम्मेलन 1999

लंदन में 14 सितंबर से 18 सितंबर 1999 तक आयोजित छठे विश्व हिन्दी सम्मेलन के अध्यक्ष थे डॉ. कृष्ण कुमार और संयोजक डॉ.पद्मेश गुप्त। सम्मेलन का केंद्रीय विषय था- 'हिन्दी और भावी पीढ़ी'। विदेश राज्यमन्त्री वसुंधरा राजे के नेतृत्व में भारतीय प्रतिनिधिमंडल ने भाग लिया। प्रतिनिधिमंडल के उपनेता थे प्रसिद्ध साहित्यकार डॉ.विद्यानिवास मिश्र। इस सम्मेलन का ऐतिहासिक महत्त्व है क्योंकि यह संत कबीर की छठी जन्मशती तथा हिन्दी को राजभाषा बनाए जाने के 50वें वर्ष में आयोजित किया गया था। सम्मेलन में 21 देशों के 700 प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया। इनमें भारत से 350 और ब्रिटेन से 250 प्रतिनिधि शामिल हुए।

सातवां विश्व हिन्दी सम्मेलन :

5 जून से 9 जून 2003 तक सुदूर सूरीनाम की राजधानी पारामारिबो में सातवें विश्व हिन्दी सम्मेलन का आयोजन हुआ। 21वीं सदी में आयोजित इस प्रताहम विश्व हिन्दी सम्मेलन के आयोजक थे जानकीप्रसाद सिंह। केन्द्रीय विषय था- 'विश्व हिन्दी: नई शताब्दी की चुनौतियां'। भारतीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व विदेश राज्य मंत्री दिग्विजय सिंह ने किया। भारत के 200 प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया। इसमें 12 से अधिक देशों के हिन्दी विद्वान शामिल हुए।

आठवां विश्व हिन्दी सम्मेलन 2007 

आठवां विश्व हिन्दी सम्मेलन 13 जुलाई से 15 जुलाई 2007 तक संयुक्त राज्य अमेरिका की राजधानी न्यूयॉर्क में हुआ। इस सम्मेलन का केंद्रीय विषय था -विश्व मंच पर हिन्दी। इसका आयोजन भारत सरकार के विदेश मंत्रालय द्वारा किया गया।

नौवां विश्व हिन्दी सम्मेलन 2012

इसी कड़ी में 22 सितंबर से 24 सितंबर 2012 तक, दक्षिण अफ्रीका के शहर जोहांसबर्ग में होने जा रहा है सम्मेलन से हिन्दी प्रेमियों को बहुत आशायें हैं .

वैश्विक स्तर पर हिन्दी सम्मेलनों के आयोजन के समानान्तर प्रयास

हिन्दी प्रेमियो के द्वारा निजी व्यय व व्यक्तिगत प्रयासों से सरकारी आयोजनो के साथ ही समानान्तर प्रयास भी किये जा रहे हैं। इसी कड़ी में दुबई में ६ वाँ अंतरराष्ट्रीय हिन्दी सम्मेलन फरवरी २०१३ में आयोजित किया जा रहा हैजिसमें आप भी स्वयं के व्यय पर भाग ले सकते हैं। निजी स्तर पर ऐसे पांच वैश्विक अंतरराष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन रायपुर, बैंकाक, मारीशस, पटाया और ताशकंद (उज्बेकिस्तान) में नों के सफलतापूर्वक आयोजन के रूप में किये जा चुके हैं। आगामी 6 वाँ अतंरराष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन 12 फरवरी से 19 फरवरी, 2013 तक संयुक्त अरब अमीरात (दुबई, शारजाह, आबूधाबी, अज़मान आदि) में (सृजन-सम्मान, ओएनजीसी-देहरादून, निराला शिक्षण समिति-नागपुर, प्रमोद वर्मा स्मृति संस्थान, अभिव्यक्ति डॉट कॉम, गुरुघासीदास साहित्य एवं संस्कृति अकादमी, छत्तीसगढ़, मिनीमाता फाउंडेशन, छत्तीसगढ) के सहयोग से किया जा रहा है। सम्मेलन में देश-विदेश के हिंदी विद्वान, अध्यापक, लेखक, भाषाविद्, शोधार्थी, संपादक, पत्रकार, टेक्नोक्रेट, बुद्धिजीवी, हिंदीसेवी संस्थाओं के सदस्य, हिन्दी-प्रचारक व हिंदी ब्लागर भाग लेंगे। सम्मेलन का उद्देश्य स्वंयसेवी आधार पर हिंदी-संस्कृति का प्रचार-प्रसार, भाषायी सौहार्द्रता तथा सामूहिक रूप से सांस्कृतिक अध्ययन-पर्यटन सहित एक दूसरे से अपरिचित सृजनरत रचनाकारों के मध्य परस्पर रचनात्मक तादात्म्य के लिए अवसर उपलब्ध कराना है। इस तरह के प्रयास हिन्दी के माध्यम से सरकारी दूत बनकर व्यक्तिगत हित साधने वाले स्वार्थी तत्वों पर एक करारा प्रहार भी हैं और समर्पित हिन्दी प्रेमियों का एक यज्ञ भी।

सम्मेलन में हिंदी का सामर्थ्य (संदर्भः भाषा, शिल्प, संप्रेषण, साहित्य, कथा-साहित्य, कविता, उपन्यास, छंद, लघुकथा, निबंध, ललित निबंध, आलोचना, बाल साहित्य, ग़ज़ल, लघुपत्रिका, समकालीन लेखन, अनुवाद, संस्कृति, वैचारिकी, दलित विमर्श, महिला विमर्श, आदिवासी विमर्श, समकालीन संकट, लोकतंत्र, कलाचिंतन, क्लासिकी, रंगमंच और मंच की भाषा, धर्म, प्रौद्योगिकी, खेल, विज्ञान, अर्थतंत्र, ज्ञान-विज्ञान और रोज़गार, शिक्षा, सिनेमा, पत्रकारिता, वेब पत्रकारिता, नया मीडिया, ब्लॉगिंग, इंटरनेट, उपयोगिता, व्यवहार, विदेश में शिक्षा या प्रचलन आदि के परिप्रेक्ष्य में) आदि विषयों पर अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी / सेमीनार होंगे।

अन्य महत्वपूर्ण आयोजनों में  भारतीयम् (भारतीय लोक संगीत की प्रस्तुति-अहफाज रशीद / चयन-मानस),  कत्थक (प्रस्तुति- चर्चित कोरियोग्राफर श्रीमती चित्रा जांगिड, जयपुर),  स्थानीय नाट्य मंडली द्वारा नाट्य मंचन (संयोजन- पूर्णमा वर्मन),  अंतरराष्ट्रीय कविता-पाठ आबूधाबी (स्थानीय संयोजन- पूर्णिमा वर्मन ), अंतरराष्ट्रीय लघुकथा पाठ, अंतराष्ट्रीय गीत पाठ, कृतियों का विमोचन (सहभागी रचनाकारों की ), चयनित रचनाकार को निराला काव्य सम्मान (51 हजार की राशि ), चयनित कवि को मिनीमाता फाऊंडेशन सम्मान (21 हजार की राशि), चयनित 11 रचनाकारों को सृजनगाथा-2013 सम्मान, नवगीत पोस्टर प्रदर्शनी (संयोजन-पूर्णिमा वर्मन, आबूधाबी), युएई के प्रतिष्ठित रचनाकारों का सम्मान, प्रतिभागी रचनाकारों का अंलकरण आदि भी प्रस्तावित हैं .
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ओ बी ११ , विद्युत मण्डल कालोनी , रामपुर , जबलपुर 

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