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रविवार, 9 सितंबर 2012

दोहा सलिला: गले मिले दोहा यमक संजीव 'सलिल'

दोहा सलिला:
गले मिले दोहा यमक
संजीव 'सलिल'
*
जीना मुश्किल हो रहा, जी ना कहते आप.
जीना चढ़िए आस का, प्यास सके ना व्याप..

पान मान का लीजिए, मानदान श्रीमान.
कन्या को वर-दान दें, जीवन हो वरदान..

रखा सिया ने लब सिला, रजक मूढ़-वाचाल.
जन-प्रतिनिधि के पाप से, अवध-ग्रास गया काल..

अवध अ-वध-पथ-च्युत हुआ, सच का वध अक्षम्य.
रम्य राम निन्दित हुए, सीता जननि प्रणम्य..

खो-खो कर ईमान- सच, खुद से खुद ही हार.
खो-खो खेलें झूठ संग, मानव-मति बलिहार..

मत ललचा आकाश यूं, बाँहों में आ काश.
गले दामिनी के लागून, तोड़ देह का पाश..

कंठ कर रहे तर लिये, अपने मन में आस.
तर जाएँ भव-समुद से,  ले अधरों पर आस..

अधिक न ढीला छोड़ या, मत कस तार-सितार.
राग और वैराग का, सके समन्वय तार..

तारा दिप दिप दमकता, अगर न तारानाथ.
तारा तारानाथ को, रवि ने किया सनाथ.. 



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