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बुधवार, 19 सितंबर 2012

हास्य सलिला: उमर क़ैद संजीव 'सलिल'



हास्य सलिला:

उमर क़ैद

संजीव 'सलिल'



नोटिस पाकर कचहरी पहुँचे चुप दम साध.
जज बोलीं: 'दिल चुराया, है चोरी अपराध..'

हाथ जोड़ उत्तर दिया, 'क्षमा करें सरकार!.
दिल देकर ही दिल लिया, किया महज व्यापार..'

'बेजा कब्जा कर बसे, दिल में छीना चैन.
रात स्वप्न में आ किया, बरबस ही बेचैन..

लाख़ करो इनकार तुम, हम मानें इकरार.
करो जुर्म स्वीकार- अब, बंद करो तकरार..'

'देख अदा लत लग गयी, किया न कोई गुनाह.
बैठ अदालत में भरें, हम दिल थामे आह..'

'नहीं जमानत मिलेगी, सात पड़ेंगे फंद.
उम्र क़ैद की अमानत, मिली- बोलती बंद..

***


Acharya Sanjiv verma 'Salil'
salil.sanjiv@gmail.com
http://divyanarmada.blogspot.com
http://hindihindi.in.divyanarmada




8 टिप्‍पणियां:

deepti gupta ✆ द्वारा yahoogroups.com ने कहा…

deepti gupta ✆ द्वारा yahoogroups.com

kavyadhara


बहुत ही बढ़िया दोहे संजीव जी! कमाल!

देख अदा लत लग गयी, किया न कोई गुनाह. :)) laughing
बैठ अदालत में भरें, हम दिल थामे आह..' :)) laughing

ढेर सराहना स्वीकारें
सादर,
दीप्ति

sn Sharma ✆kavyadhara, ने कहा…

sn Sharma ✆kavyadhara,

आ० आचार्य जी के हास्य दोहों पर उसी पेज पर प्रतिक्रिया हेतु Reply को बार बार पीटने पर मेरा लैपटाप नहीं खुला तो अलग पेज पर ही उनकेसुन्दर दोहों की सराहना करते हुए उसी के आगे की कथा स्वरुप अर्पित -

उम्र-कैद की पा सज़ा रहें कैद ता उम्र
छुट्टा चरने का मज़ा सभी हो गया धुम्र
* * *
तभी सात फेरे पड़े पंडित बोले छन्द
आँख लड़ाना मना है ताकझाँक सब बंद
* * *
मैंने पूछा मुंहजली, क्या तेरा अपराध
बोल न तूने क्यों लिये फेरे पूरे सात
* * *
वह बोली मैं क्या करुँ फूट गए थे भाग
आ पहुंचा जो द्वार पर लिये अदालत साथ
* * *
जनम कैद अब जो मिली पिया भुगत लो पाप
मैं भी तज जाऊं कहाँ तुम अनाथ के नाथ
* * * *
कमल

Indira Pratap ✆ yahoogroups.com ने कहा…

Indira Pratap ✆ yahoogroups.com kavyadhara


kamal dada our bhai salilji ,
hasya dohon kii nok jhonk ,dil khush kar gai . hasya bina sab ras adhuure hain:

deepti gupta ✆ ने कहा…

deepti gupta ✆ द्वारा yahoogroups.com

kavyadhara



:)) laughing =)) rolling on the floor :)) laughing
जनम कैद अब जो मिली पिया भुगत लो पाप ............................खूब
मैं भी तज जाऊं कहाँ , तुम अनाथ के नाथ ..................वाह दादा
बोल न तूने क्यों लिये फेरे पूरे सात ............................. :)) laughing क्या प्रश्न है ?

दादा, आपने तो काका हाथरसी को भी पीछे छोड़ दिया! मनोरंजक दोहों के लिए ढेर साधुवाद!

सादर,
दीप्ति

- kanuvankoti@yahoo.com ने कहा…

- kanuvankoti@yahoo.com

Excellent!

बेनामी ने कहा…

Kanu Vankoti



आदरणीय संजीव भाई,

आपकी कविता ने मेरा खासा मनोरंजन किया. उम्रकैद की सज़ा बड़ी सख्त हैं, न बने तो फिर अदालत में जाओ....:)) laughingहास्य से लबरेज कविता पढवाने के लिए आपका धन्यवाद,
सादर,
कनु

Lalit Walia ✆ kavyadhara ने कहा…

Lalit Walia ✆ kavyadhara


'देख अदा लत लग गयी, किया न कोई गुनाह. =D> applause =D> applause =D> applause

बैठ अदालत में भरें, हम दिल थामे आह..'

- mcdewedy@gmail.com ने कहा…

- mcdewedy@gmail.com

जय हो ऐसी अदालत की और उसकी रचयिता की. बधाई सलिल जी.

महेश चन्द्र द्विवेदी