दोहा मुक्तिका सलिला:
संजीव 'सलिल'
*
चाँद २
पिता सूर्य का लाड़ पा, मुस्काता है चाँद.
भू माँ की परिक्रमा कर, वर पाता है चाँद....
नभ बब्बा के बाहु का, देख अमित विस्तार.
दिशा दादियों से लिपट, चकराता है चाँद..
सुघड़ बहुरिया चाँदनी, अँगना लीपे रोज.
नभगंगा में स्नान कर, तर जाता है चाँद..
दे प्राची का द्वार जब, थपक अरुणिमा खोल.
रूप अनिर्वचनीय लख. यश गाता है चाँद..
प्रति पल राग-विरागमय, भोगी-योगी संत?
रखकर देह विदेह हो, सिखलाता है चाँद..
निशा, उषा, संध्या पुलक, राखी देतीं बाँध.
बहनों का वात्सल्य पा, तर जाता है चाँद..
छाया साली रंग रही, श्वेत चन्द्र को श्याम.
कोमल कर स्पर्श से, सिहराता है चाँद..
घटे-बढ़े, बढ़कर घटे,रह निस्पृह-निष्काम.
गिर-उठ, बढ़, रुक-चुक नहीं, बतलाता है चाँद..
सुत तारों की दीप्ति लख, वंश-बेल पर मुग्ध.
काल-कथाएँ अकथ कह, बतियाता है चाँद..
बिना लिये परिशामिक, श्रम करता बेदाम.
'सलिल'-धार में ताप तज, हर्षाता है चाँद..
*
संजीव 'सलिल'
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चाँद २
पिता सूर्य का लाड़ पा, मुस्काता है चाँद.
भू माँ की परिक्रमा कर, वर पाता है चाँद....
नभ बब्बा के बाहु का, देख अमित विस्तार.
दिशा दादियों से लिपट, चकराता है चाँद..
सुघड़ बहुरिया चाँदनी, अँगना लीपे रोज.
नभगंगा में स्नान कर, तर जाता है चाँद..
दे प्राची का द्वार जब, थपक अरुणिमा खोल.
रूप अनिर्वचनीय लख. यश गाता है चाँद..
प्रति पल राग-विरागमय, भोगी-योगी संत?
रखकर देह विदेह हो, सिखलाता है चाँद..
निशा, उषा, संध्या पुलक, राखी देतीं बाँध.
बहनों का वात्सल्य पा, तर जाता है चाँद..
छाया साली रंग रही, श्वेत चन्द्र को श्याम.
कोमल कर स्पर्श से, सिहराता है चाँद..
घटे-बढ़े, बढ़कर घटे,रह निस्पृह-निष्काम.
गिर-उठ, बढ़, रुक-चुक नहीं, बतलाता है चाँद..
सुत तारों की दीप्ति लख, वंश-बेल पर मुग्ध.
काल-कथाएँ अकथ कह, बतियाता है चाँद..
बिना लिये परिशामिक, श्रम करता बेदाम.
'सलिल'-धार में ताप तज, हर्षाता है चाँद..
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