कविता
संजीव 'सलिल'
*
युग को सच्चाई का दर्पण, हर युग में दिखाती चले कविता.
दिल की दुनिया में पलती रहे, नव युग को बनाती पले कविता..
सूरज की किरणों संग जागे, शशि-किरणों संग ढले कविता.
योगी, सौतन, बलिदानी में, बन मन की ज्वाल जले कविता.
*
दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें