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सोमवार, 18 जुलाई 2011

कविता : -- संजीव 'सलिल'

कविता
संजीव 'सलिल'
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युग को सच्चाई का दर्पण, हर युग में दिखाती चले कविता.
दिल की दुनिया में पलती रहे, नव युग को बनाती पले कविता..
सूरज की किरणों संग जागे, शशि-किरणों संग ढले कविता.
योगी, सौतन, बलिदानी में, बन मन की ज्वाल जले कविता.
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