मुक्तिका:
*
बन गयी हैं दूरियाँ, नज़दीकियाँ बरसात में.
हो गये दो एक, क्या जादू हुआ बरसात में..
आसमां का प्यार लाई जमीं तक हर बूँद है.
हरी चूनर ओढ़ भू, दुल्हन बनीं बरसात में..
तरुण बादल-बिजुरिया, बारात में मिल नाचते.
कुदरती टी.वी. का शो है, नुमाया बरसात में..
डालियाँ-पत्ते बजाते बैंड, झूमे है हवा.
आ गयीं बरसातियाँ छत्ते लिये बरसात में..
बाँह उनकी राह देखे चाह में जो हैं बसे.
डाह हो या दाह, बहकर गुम हुई बरसात में..
चू रहीं कवितायेँ-गज़लें, छत से- हम कैसे बचें?
छंद की बौछार लायीं, खिड़कियाँ बरसात में..
राज-नर्गिस याद आते, भुलाये ना भूलते.
बन गये युग की धरोहर, काम कर बरसात में..
बाँध,झीलें, नदी विधवा नार सी श्री हीन थीं.
पा 'सलिल' सधवा सुहागन, हो गयीं बरसात में..
मुई ई कविता! उड़ाती नींद, सपने तोड़कर.
फिर सजाती नित नये सपने 'सलिल' बरसात में..
*
Acharya Sanjiv Salil
http://divyanarmada.blogspot.com
बरसात में
संजीव 'सलिल'*
बन गयी हैं दूरियाँ, नज़दीकियाँ बरसात में.
हो गये दो एक, क्या जादू हुआ बरसात में..
आसमां का प्यार लाई जमीं तक हर बूँद है.
हरी चूनर ओढ़ भू, दुल्हन बनीं बरसात में..
तरुण बादल-बिजुरिया, बारात में मिल नाचते.
कुदरती टी.वी. का शो है, नुमाया बरसात में..
डालियाँ-पत्ते बजाते बैंड, झूमे है हवा.
आ गयीं बरसातियाँ छत्ते लिये बरसात में..
बाँह उनकी राह देखे चाह में जो हैं बसे.
डाह हो या दाह, बहकर गुम हुई बरसात में..
चू रहीं कवितायेँ-गज़लें, छत से- हम कैसे बचें?
छंद की बौछार लायीं, खिड़कियाँ बरसात में..
राज-नर्गिस याद आते, भुलाये ना भूलते.
बन गये युग की धरोहर, काम कर बरसात में..
बाँध,झीलें, नदी विधवा नार सी श्री हीन थीं.
पा 'सलिल' सधवा सुहागन, हो गयीं बरसात में..
मुई ई कविता! उड़ाती नींद, सपने तोड़कर.
फिर सजाती नित नये सपने 'सलिल' बरसात में..
*
Acharya Sanjiv Salil
http://divyanarmada.blogspot.com
4 टिप्पणियां:
आदरणीय आचार्य जी,
आपकी बरसात की बौछार हमें भी भिगो गयीI
साधुवाद
सादर संतोष भाऊवाला
आ० आचार्य जी,
बरसात में मुक्तिका की सुन्दर फुहारें ! बधाई !
विशेष-
बांह उनकी राह देखे चाह में जो हैं बसे
डाह हो या दाह, बह कर गुम हुई बरसात में
और
चू रहीं कवितायेँ-गज़लें, छत से- हम कैसे बचें?
छंद की बौछार लायीं, खिड़कियाँ बरसात में..
सादर
कमल
bahut khoob achryaji
आदरणीय सलिल जी
ई कविता पर हो रही बरसात का पूरा आनंद मुक्तिका में आया।
मुक्तिका अच्छी बन पड़ी है, बधाई।
सन्तोष कुमार सिंह
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