दोहा सलिला:
यमक दमकता सूर्य सम
संजीव 'सलिल'
*
खींची-छोड़ी रास तो, लगीं दिखाने रास.
घोड़ी और पतंग का, 'सलिल' नहीं विश्वास..
रास = लगाम/डोर, नृत्य.
मोह न मोहन अब अधिक, सोहन सोह न और.
गह न गहन को कभी भी, अगहन मिले न ठौर..
'रोक न, जाने दे' उसे, था इतना आदेश.
'रोक, न जाने दे' समझ, समझा गया विशेष..
था 'आदेश' विदेश तज, तू अब तो 'आ देश'.
खाया याकि सुना गया, जब पाया संदेश..
आदेश = आज्ञा, देश आ.
संदेश = बंगाली मिठाई, निर्देश. -श्लेष अलंकार.
'खाना' या 'खा ना' कहा, 'आना' या 'आ ना'.
'पा ना' कह 'पाना' दिया, 'गा ना' कह 'गाना'
नाना ने नाना दिये, स्नेह सहित उपहार.
ना-ना कहकर भी करे, हमने हँस स्वीकार..
नाक कटी साबित रही, लेकिन फिर भी नाक.
कान करे नापाक जो, कहलाये वह पाक..
नाग चढ़ा जब नाग पर, नाग उठा फुंफकार.
नाग गरजकर बरसता, होता हाहाकार..
नाग = हाथी, पर्वत, एक प्रकार का साँप, बादल.
नाम अनाम सुनाम हो, किन्तु न हो बदनाम.
हो सकाम-निष्काम पर, 'सलिल' न हो बेकाम..
*
Acharya Sanjiv Salil
http://divyanarmada.blogspot.com
यमक दमकता सूर्य सम
संजीव 'सलिल'
*
खींची-छोड़ी रास तो, लगीं दिखाने रास.
घोड़ी और पतंग का, 'सलिल' नहीं विश्वास..
रास = लगाम/डोर, नृत्य.
मोह न मोहन अब अधिक, सोहन सोह न और.
गह न गहन को कभी भी, अगहन मिले न ठौर..
'रोक न, जाने दे' उसे, था इतना आदेश.
'रोक, न जाने दे' समझ, समझा गया विशेष..
था 'आदेश' विदेश तज, तू अब तो 'आ देश'.
खाया याकि सुना गया, जब पाया संदेश..
आदेश = आज्ञा, देश आ.
संदेश = बंगाली मिठाई, निर्देश. -श्लेष अलंकार.
'खाना' या 'खा ना' कहा, 'आना' या 'आ ना'.
'पा ना' कह 'पाना' दिया, 'गा ना' कह 'गाना'
नाना ने नाना दिये, स्नेह सहित उपहार.
ना-ना कहकर भी करे, हमने हँस स्वीकार..
नाक कटी साबित रही, लेकिन फिर भी नाक.
कान करे नापाक जो, कहलाये वह पाक..
नाग चढ़ा जब नाग पर, नाग उठा फुंफकार.
नाग गरजकर बरसता, होता हाहाकार..
नाग = हाथी, पर्वत, एक प्रकार का साँप, बादल.
नाम अनाम सुनाम हो, किन्तु न हो बदनाम.
हो सकाम-निष्काम पर, 'सलिल' न हो बेकाम..
*
Acharya Sanjiv Salil
http://divyanarmada.blogspot.com
9 टिप्पणियां:
achal verma ✆ ekavita,
भाषा आपकी चेरी लगती है, जैसे चाहते हैं वैसे प्रयोग करके उसे मनोहर बना देते हैं| जितनी भी तारीफ़ कीजाय, कम ही होगी|
आपको सभी विधाओं में सामान रूप से कमाल हासिल है |
सादर नमन |
Achal Verma
-Sat, 7/23/11
भाषा माता पूज्य है, चेरी कहें न आप.
सुत पर स्नेह करे अमित, लेती नभ-भू नाप..
धरती है बहुरूप नित, बहले सुत अनजान.
धन्य हुआ है 'सलिल' लख, माँ का रूप महान..
नन्हे भाई
चिरंजीव भवः
कविता थोड़ी थोड़ी समझ आई
क्षमा करना सीख जावूंगी
धन्यवाद
१०:०७ पूर्वाह्न
आ० आचार्य जी,
यमक की दमकार और अक्षरों का चमत्कार
दोनों की झांकी दिखाता हो नमन स्वीकार !
सादर,
कमल
2011/7/23
आदरणीय सलिल जी!
बहुत ही सुन्दर दोहे हैं जितनी तारीफ की जाए कम है।
आपके ज्ञान का कायल हूँ।
बधाई स्वीकारें।
सन्तोष कुमार सिंह
-Sun, 24/7/11
achal verma ✆
आ. आचार्य जी ,
माता पूज्य अवश्य है,पर है चेरी नेक
शिशु सम हम जब हठ करें करतीं काम अनेक
बालक की हर व्यथा को हरदम लेती जान
बिना बताए ही करे हर क्षण वो कल्याण ||
--Sat, 7/23/11
अब तक जितने भी पढ़े, हैं माँ के पर्याय.
'चेरी' कहीं न मिला सका, मुझको नहीं सुहाय..
ज्ञानवृद्ध हैं आप जो लिखा, सही ले मान.
नव पीढ़ी चेरी सदृश, व्यवहारे अनजान..
फिर क्यों उनको दोष दें?, क्यों दें उनको सीख?
देवी-चेरी में सका साम्य, न मुझको दीख..
एक विद्वान के समक्ष झुकाये सर अपना खड़ा अचल हो क्षमादान ही वर अपना
कहाँ आप और कहा एक पाषाण
इसी बहाने मिला बहुत कुछ ज्ञान |
आपकी जय बोले ,
Achal Verma
Mridul
aapke alankaaron ka sameekaran
man mugdh huaa
yamak aur shlesh
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