मुक्तिका:
ढाई आखर
संजीव 'सलिल'
*
ढाई आखर जिंदगी में पायेगा.
दर्द दिल में छिपा गर मुस्कायेगा..
मन न हो बेचैन, जग मत नैन रे.
टेरता कागा कि पाहुन आयेगा.
गाँव तो जड़ छोड़ जा शहरों बसा.
किन्तु सावन झूम कजरी गायेगा..
सारिका-शुक खोजते अमराइयाँ.
भीड़ को क्या नीड़ कोई भायेगा?
लिये खंजर हाथ में दिल मिल रहा.
सियासतदां क्या कभी शरमायेगा?
कौन किसका कब हुआ कोई कहे?
असच को सच देव समझा जाएगा.
'सलिल' पल में सिया को वन दे अवध.
सिर धुने, सदियों सिसक पछतायेगा.
*****
8 टिप्पणियां:
bahut khoob...
shukriya sanjiv salil ji...
bahut he khoobsurat rachna
Siya Sachdev
3:45pm Jul 20
नाम तो दुनिया में वो कर जायेगा.. फिर भला क्या ज़िन्दगी में पायेगा आदमी जब मुतमईन हो जायेगा मय के पैमाने भला अब कब तलक इस तरह क्या दिल को तू बहलायेगा इस तरह भी ख़ूबसूरत हो बहोत कौन उलझी ज़ुल्फ़ को सुलझाएगा छाँव में आने लगेंगे लोग फिर जब कोई पौधा शजर बन जायेगा बोझ ही बस बोझ उस पर इस कदर इस तरह तो शख्स वो मर जायेगा उसके फ़न में इक अजब जादू सा है नाम तो दुनिया में वो कर जायेगा siya
Siya Sachdev 2:56pm Jul 19
नाम तो दुनिया में वो कर जायेगा..
फिर भला क्या ज़िन्दगी में पायेगा
आदमी जब मुतमईन हो जायेगा
मय के पैमाने भला अब कब तलक
इस तरह क्या दिल को तू बहलायेगा
इस तरह भी ख़ूबसूरत हो बहोत
कौन उलझी ज़ुल्फ़ को सुलझाएगा
छाँव में आने लगेंगे लोग फिर
जब कोई पौधा शजर बन जायेगा
बोझ ही बस बोझ उस पर इस कदर
इस तरह तो शख्स वो मर जायेगा
उसके फ़न में इक अजब जादू सा है
नाम तो दुनिया में वो कर जायेगा
'सलिल' पल में सिया को वन दे अवध.
सिर धुने, सदियों सिसक पछतायेगा.
कितना कड़वा सच का दिया आपने , आज भी सब सुबक उठते हैं
जब सीता को बन जाते देखते हैं तो|
Achal Verma
--- On Wed, 7/20/11
सलिल जी,
मनभावन मुक्तिकाओं के लिए बधाई..!
सादर,
दीप्ति
--- On Wed, 20/7/11
आ० आचार्य जी ,
सुन्दर मुक्तिकाओं के लिये एक बार फिर आपकी लेखनी को नमन |
मुक्तिकाएं झर रहीं / कमल मन तृप्त कर रहीं / मंच मुग्ध कर धर रहीं / ढाई आखर वर रहीं !
सादर,कमल
आदरणीय आचार्य जी,
आपकी मुक्तिका बहुत मनभायी!!
साधुवाद !
सादर
संतोष भाऊवाला
ओह कितना सुन्दर आचार्य जी !
"'सलिल' पल में सिया को वन दे अवध.
सिर धुने, सदियों सिसक पछतायेगा."
सादर शार्दुला
priy sanjiv ji
aapki muktikaon me man ko mugdh kar diya kitna sundar likha hai aapne bar bar padhne ko man karta hai ye to bhagwan ki kripa hai
kusum
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