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मंगलवार, 19 जुलाई 2011

दोहा सलिला: यमक झमककर मोहता --संजीव 'सलिल'

दोहा सलिला:
यमक झमककर मोहता
--संजीव 'सलिल'
*
हँस सहते हम दर्द नित, देते हैं हमदर्द.
अपनेपन ने कर दिए, सब अपने पन सर्द..
पन = संकल्प, प्रण.
*
भोग लगाकर कर रहे, पंडित जी आराम.
नहीं राम से पूछते, ग्रहण करें आ राम..
*
गरज रहे बरसे नहीं, आवारा घन श्याम.
रुक्मिणी-राधा अधर पर, वेणु मधुर घनश्याम..
*
कृष्ण-वेणु के स्वर सुनें, गोप सराहें भाग.
सुन न सके जो वे रहे, श्री के पीछे भाग..
भाग = भाग्य, पीछा करना.
*
हल धरकर हलधर चले, हलधर-कर थे रिक्त.
हल धरकर हर प्रश्न का, हलधर कर रस-सिक्त..
हल धरकर = हल रखकर, किसान के हाथ, उत्तर रखकर, बलराम के हाथ.
*
बरस-बरस घन बरसकर, करें धराको तृप्त.
गगन मगन विस्तार लख, हरदम रहा अतृप्त..
*
असुर न सुर को समझते, सुर से रखते बैर.
ससुरसुता पर मुग्ध हो, मना रहे सुर खैर..
असुर = सुर रहित / राक्षस - श्लेष
सुर = स्वर, देवता. यमक
ससुर = सुर सहित, श्वसुर श्लेष.
*
ससुर-वाद्य संग थिरकते, पग-नूपुर सुन ताल.
तजें नहीं कर ताल को,बजा रहे करताल..
ताल = तालाब, नियमित अंतराल पर यति/ताली बजाना.
कर ताल = हाथ द्वारा ताल का पालन, करताल = एक वाद्य
*
ताल-तरंगें पवन सँग, लेतीं विहँस हिलोर.
पत्ते झूमें ताल पर, पर बेताल विभोर..
ताल = तालाब, नियमित अंतराल पर यति/ताली बजाना.
पर = ऊपर / के साथ, किन्तु.
*
दिल के रहा न सँग दिल, जो वह है संगदिल.
दिल का बिल देता नहीं, ना काबिल बेदिल..
सँग दिल = देल के साथ, छोटे दिलवाला.
*
यमक झमककर मोहता, खूब सोहता श्लेष.
प्यास बुझा अनुप्रास दे, छोड़े हास अशेष..
*****
दिव्यनर्मदा.ब्लागस्पाट.कॉम


Acharya Sanjiv Salil

http://divyanarmada.blogspot.com

10 टिप्‍पणियां:

Mridul Kirti ने कहा…

वाह! संजीव जी
इसे कहते हैं साहित्य साधना .
आप अब गहरे उतारते जा रहे हैं.
बहुत ही सुन्दर अलंकारिक काव्य संयोजन हैं/
.
अभी यह भजन लिखा सों आपकी रचना के सम्मान में प्रेषित कर रही हूँ.
मृदुल
प्रेषक: Mridul Kirti

www.navincchaturvedi.blogspot.com ने कहा…

दोहों के माध्यम से यमक की झमक के क्या खूब दर्शन कराये हैं सर जी| 'हलधर' वाला दोहा और 'ससुरसुता' वाला शब्द प्रयोग आप की कलाम कारी का बेजोड़ नमूना है|

इसी तरह हम लोगों का मार्गदर्शन करते रहिएगा|

Saurabh Pandey ने कहा…

आदरणीय,
आज की तो सुबह ही अलंकृत हो गयी.
विश्वास है, दिवस-काल पूर्णतः सामासिक होगा.

प्रस्तुत प्रत्येक दोहा सुगठित, गहन और अर्थवान है.

सही कहा आपने --
यमक झमककर मोहता, खूब सोहता श्लेष.
प्यास बुझा अनुप्रास दे, छोड़े हास अशेष..

अनुप्रास समस्त विशादग्रास का कारण बने इसी की सादर अपेक्षा है.



और सावनमास में प्रस्तुत भाव-पंक्ति ने तो झूमने का माहौल ही दे दिया है..

ससुरसुता पर मुग्ध हो, मना रहे सुर खैर..

डमरूवाले की अनेकानेक नृत्य-मुद्राओं वाली कितनी ही छवियाँ स्लाइड-शो कर रही हैं.



हल धरकर हलधर चले, हलधर-कर थे रिक्त.
हल धरकर हर प्रश्न का, हलधर कर रस-सिक्त..

अहा हा हा .! सही है, आजके हलधर का कर रिक्त तो है ही. तभी तो हल धर कर जीते इस हलधर का कर भावशून्य भर है. इस विधान पर कुछ कहना ही क्या अब? उस ’हलधर’ के प्रति करबद्ध ही नहीं नतशीष हो कि ’हे हलधर, भवबाधा हर, कि हल धर कर जी सकें जीवन भर’.

सलिलजी, हम आकण्ठ हुए. हम संतृप्त हुए.
सादर.

prabhat kumar roy ने कहा…

VARY GOOD 'DHOHE'

SaNJIV SALIL.

CONGRATS!

Arun Kumar Pandey 'Abhinav'… ने कहा…

अत्यंत मोहक और हृदयस्पर्शी दोहे !!
मन इन उच्च कोटि की प्रस्तुतिओं से मुघ्ध हुआ !! आचार्य जी को प्रणाम है !!

Ganesh Jee "Bagi" ने कहा…

आहा !
सुबह सुबह बहुत ही खुबसूरत दोहे पढ़ने को मिले, साथ में अलंकारों का इतना बेहतरीन प्रयोग कि क्या कहा जाय, जो दिखता है वो है नहीं, जो है वो दिखता नहीं, सभी दोहे उम्दा बन पड़े है |
बहुत बहुत आभार आचार्य जी |

sanjiv 'salil' ने कहा…

अभिनव बागी हो गये जब से अरुण प्रभात.
सौरभ लख झूमे पवन, 'सलिल' मौन मुस्कात..
Acharya Sanjiv Salil

http://divyanarmada.blogspot.com

shar_j_n ✆ ekavita ने कहा…

आदरणीय आचार्य जी,

ये आपकी ही पंक्तियाँ आपकी विलक्षण प्रस्तुति को समर्पित:

यमक झमककर मोहता, खूब सोहता श्लेष.
प्यास बुझा अनुप्रास दे, छोड़े हास अशेष..

... कुछ बिम्ब साथ में ले जा रही हूँ:

हल धरकर हलधर चले, हलधर-कर थे रिक्त...

गगन मगन विस्तार लख, हरदम रहा अतृप्त..

कृष्ण-वेणु के स्वर सुनें, गोप सराहें भाग.
सुन न सके जो वे रहे, श्री के पीछे भाग..

रुक्मिणी-राधा अधर पर, वेणु मधुर घनश्याम...

सादर शार्दुला

sanjiv 'salil' ने कहा…

sanjiv verma ✆ ekavita

विवरण दिखाएं १२:२९ पूर्वाह्न (1 मिनट पहले)

शार्दुला जी!
वन्दे मातरम. आप जैसी साहित्यप्रेमी को एक भी पंक्ति रुचे तो मेरा कविकर्म धन्य है.

sanjiv 'salil' ने कहा…

sanjiv verma ✆ ekavita

विवरण दिखाएं १२:२९ पूर्वाह्न (1 मिनट पहले)

शार्दुला जी!
वन्दे मातरम. आप जैसी साहित्यप्रेमी को एक भी पंक्ति रुचे तो मेरा कविकर्म धन्य है.