मुक्तिका
......मुझे दे.
संजीव 'सलिल'
*
ए मंझधार! अविरल किनारा मुझे दे.
कभी जो न डूबे सितारा मुझे दे..
नहीं चाहिए मुझको दुनिया की सत्ता.
करूँ मौज-मस्ती गुजारा मुझे दे..
जिसे पूछते सब, न चाहूँ मैं उसको.
रिश्ता जो जगने बिसारा मुझे दे..
खुशी-दौलतें सारी दुनिया ने चाहीं.
नहीं जो किसी को गवारा मुझे दे..
तिजोरी में जो, क्या मैं उसका करूँगा?
जिसे घर से तूने बुहारा मुझे दे..
ज़हर को भी अमृत समझकर पियूँगा.
नहीं और को दैव सारा मुझे दे..
रह मत 'सलिल' से कभी दूर पल भर.
रहमत के मालिक सहारा मुझे दे..
********************************
Acharya Sanjiv Salil
http://divyanarmada.blogspot.com
......मुझे दे.
संजीव 'सलिल'
*
ए मंझधार! अविरल किनारा मुझे दे.
कभी जो न डूबे सितारा मुझे दे..
नहीं चाहिए मुझको दुनिया की सत्ता.
करूँ मौज-मस्ती गुजारा मुझे दे..
जिसे पूछते सब, न चाहूँ मैं उसको.
रिश्ता जो जगने बिसारा मुझे दे..
खुशी-दौलतें सारी दुनिया ने चाहीं.
नहीं जो किसी को गवारा मुझे दे..
तिजोरी में जो, क्या मैं उसका करूँगा?
जिसे घर से तूने बुहारा मुझे दे..
ज़हर को भी अमृत समझकर पियूँगा.
नहीं और को दैव सारा मुझे दे..
रह मत 'सलिल' से कभी दूर पल भर.
रहमत के मालिक सहारा मुझे दे..
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Acharya Sanjiv Salil
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1 टिप्पणी:
वाह आचार्य जी क्या बात है
जहर सारा मुझे दे
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