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गुरुवार, 29 फ़रवरी 2024

२९ फरवरी, लघुकथा, स्वतंत्रता, ज़िंदगी, पद, रामकिंकर, मुक्तक,तुम,गीत

सलिल सृजन २९ फरवरी
*
पद
युग तुलसी मन राम रमैया।
राम ओढ़ते, राम बिछाते, श्वासा सीता मैया।
राम तात हैं, राम मातु हैं, राम सखा अरु भैया।।
राम नाम दुहते हनुमत सँग, राम दुधारू गैया।
राम श्वास हैं, राम आस हैं, रामहि राम गवैया।।
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मुक्तक
फूल पाकर मुस्कुरा पर फूल मत।
शिखर पर जा किंतु बनकर धूल मत।।
भूल मत, ले हार को तू जीत गर-
व्यर्थ की बातों को देना तूल मत।।
२९.२.२०२४
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लघुकथा
सबक
*
दंगों की गिरफ्त में जंगल
इतनों की मौत, उतने घायल,
इतने गुफाएँ, इतने बिल बर्बाद,
'पापा! पुलिस कुछ कर क्यों नहीं रही?' शेरसिंह के बेटे ने पूछा
"करेगी मगर पहले सबक मिल जाने दो। पिछले चुनाव में हमें यहीं हार मिली थी ना?"
२९-२-२०२०
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एक रचना
ज़िंदगी
*
बदरंगी
हो रही ज़िंदगी
रंग भरो तुम
*
काला रंग आरक्षण का
मत मुँह पर मलना
उम्मीदों का लाल गुलाल
छुड़ा मत छलना
सद्भावों की ठंडाई-
गुझिया सफेद दो
पीली पपड़ी बने, दाल मत
दिल पर दलना
खाली हाथ
निकट होली
मत तंग करो तुम
*
हरी सब्जियाँ मुट्ठी में
थैले में पैसे
श्वेत दूध बिन चाय
मिलेगी बोली कैसे?
मकां और भूखंड
हुए आकाश-कुसुम हैं
रौंद रहे नारी को नर
जो राक्षस जैसे
काली माँ सा
रौद्र रूप फिर
आज धरो तुम
*
नेता अफसर सेठ भ्रष्ट हैं
कनककशिपु से
अधिक होलिका काले धन की
घातक रिपु से
आग लगा दे, रंग कुसुम्बी
फागें गायें
नारंगी बलिदान देश-हित
हो हर घर से
सतरंगी हो
काश जिंदगी
संग चलो तुम
***
लघुकथा
घर
*
दंगे, दुराचार, आगजनी, गुंडागर्दी के बाद सस्ती लोकप्रियता और खबरों में छाने के इरादे से बगुले जैसे सफेद वस्त्र पहने नेताजी जन संपर्क के लिये निकले। पीछे-पीछे चमचों का झुण्ड, बिके हुए कैमरे और मरी हुई आत्मावाली खाकी वर्दी।
बर्बाद हो चुके एक परिवार की झोपड़ी पहुँचते ही छोटी सी बच्ची ने मुँह पर दरवाजा बंद करते हुए कहा 'खतरे के समय दुम दबा कर छिपे रहनेवाले नपुंसकों के लिये यहाँ आना मना है। यह संसद नहीं, भारत के नागरिक का घर है। तुम नहीं, हमारा नायक वह पुलिस जवान है जो जान हथेली पर लेकर आतंकवादी की बंदूक के सामने डटा रहा।
लघुकथा
आदर्श
*
त्रिवेदी जी ब्राम्हण सभा के मंच से दहेज़ के विरुद्ध धुआंधार भाषण देकर नीचे उतरे। पडोसी अपने मित्र के कान में फुसफुसाया 'बुढ़ऊ ने अपने बेटों की शादी में तो जमकर माल खेंचा लिया, लडकी वालों को नीलाम होने की हालत में ला दिया और अब दहेज़ के विरोध में भाषण दे रहा है, कपटी कहीं का'।
'काहे नहीं देगा अब एइकि मोंडी जो ब्याहबे खों है'. -दूसरे ने कहा.
***
लघुकथा
स्वतंत्रता
*
जातीय आरक्षण आन्दोलन में आगजनी, गुंडागर्दी, दुराचार, वहशत की सीमा को पार करने के बाद नेताओं और पुलिस द्वारा घटनाओं को झुठलाना, उसी जाति के अधिकारियों का जाँच दल बनाना, खेतों में बिखरे अंतर्वस्त्रों को देखकर भी नकारना, बार-बार अनुरोध किये जाने पर भी पीड़ितों का सामने न आना, राजनैतिक दलों का बर्बाद हो चुके लोगों के प्रति कोई सहानुभूति तक न रखना क्या संकेत करता है?
यही कि हमने उगायी है अविश्वास की फसल चौपाल पर हो रही चर्चा सरपंच को देखते ही थम गयी, वक्ता गण देने लगे आरक्षण के पक्ष में तर्क, दबंग सरपंच के हाथ में बंदूक को देख चिथड़ों में खुद को ढाँकने का असफल प्रयास करती सिसकती रह गयी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता।
२९.२.२०१६
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