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मंगलवार, 20 फ़रवरी 2024

रानू राठौड़ 'रूही', जबलपुर, लेख संकलन

कृति चर्चा-
'दृष्टिपात जबलपुर' : लोकोपयोगी आलेख संग्रह
- आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'
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वर्तमान संक्रमण काल में द्रुत गति से हो रहे सामाजिक-आर्थिक-राजनैतिक परिवर्तनों से भारत की पारिवारिक वुअवस्था चरमरा रही है। दो पीढ़ियों के मध्य अंततराल को पाटकर संवेदना सेतु निर्माण करने में साहित्य की महती भूमिका है। दुर्भाग्य वश हर शिक्षित व्यक्ति खुद को साहित्यकार समझकर मनमाना साहित्य लिखा रहा है और वैज्ञानिक विकास द्वारा सस्ती-सुलभ हुई मुद्रण तकनीक ने नव धनाढ्य वर्ग में पुस्तक छाप लेने मात्र को साहित्यकार होने की पात्रता बना दिया है। इस कारण स्तरहीन-निरुपयोगी पुस्तकों का ढेर लगता जा रहा है। इस कारण साहित्य पढ़ने से आम जन विमुख होता जा रहा है। इस पारिस्थितिक चक्रव्यूह ने सर्वाधिक अहित कविता का किया है। गद्य अपेक्षाकृत कम लिखा जाने से स्तरहीनता का अपेक्षाकृत कम शिकार हुआ है। गद्य में कहानी, लघुकथा, व्यंग्य लेख जैसी विधाएँ नकारात्मकता को कला मान कर समाज में संवेदनहीनता का प्रचार कर रही हैं। तथाकथित समीक्षा साहित्य के नाम पर व्यक्तिगत संबंधों के आधार पर लिखी गई पाठकीय प्रतिक्रिया ही स्थान पा रही है। गद्य की प्रमुख विधाओं में नाटक, एकांकी, उपन्यास, कहानी, लघुकथा, निबंध, मीमांसा, जीवनी, आत्मकथा, यात्रा वृत्त, संस्मरण, रेखाचित्र, गद्य काव्य, रपट, दैनंदिनी, भेंट वार्ता (साक्षात्कार), गद्य काव्य, पत्र साहित्य, पत्र लेखन, आलेख, रिपोर्ट, गद्य  गीत आदि उल्लेखनीय हैं किंतु इनमें लेखन काव्य की तुलना में बहुत कम है। इस परिस्थिति में 
संस्कारधानी की समर्थ साहित्यकार रानू रुही का आलेख संकल 'दृष्टिपात जबलपुर' का प्रकाशित होना महत्वपूर्ण है।

                    लेख से पूर्व ”आ” उपसर्ग जोड़ने से आलेख शब्द बनता है। आलेख निबंध लेखन का ही एक लघु रूप है। ‘आ’ उपसर्ग लेख के सम्यक और सर्वांग-सम्पूर्ण होने को व्यंजित करता है। आलेख वास्तव में लेख का ही प्रतिरूप होता है। यह आकार में लेख से बड़ा होता है।  इसे निबंध का एक रूप कहा जा सकता  है। लेख में सामान्यत: किसी एक विषय से संबंधित विचार होते हैं। आलेख में ‘आ’ उपसर्ग लगता है जो कि यह प्रकट करता है कि आलेख सम्यक् और संपूर्ण होना चाहिए। आलेख गद्य की वह विधा है जो किसी एक विषय पर सर्वांगपूर्ण और सम्यक् विचार प्रस्तुत करती है। आलेख लेखन अपने आप में विज्ञान और कला दोनों है। सामान्यत:, आलेख में किसी घटना अथवा किसी विषय (आध्यात्मिक, धार्मिक, सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, सांस्कृतिक, साहित्यिक, वैधानिक, भौगोलिक आदि) पर संक्षिप्त किंतु पूर्ण जानकारी सारगर्भित शब्दावली के माध्यम से प्रस्तुत की जाती है। लेखक द्वारा चयनित विषय पर अपने स्वतंत्र-संक्षिप्त-प्रामाणिक भावों की सहज-सरल अभिव्यक्ति ही आलेख है। आलेख संबंधित विषय पर लेखक के मन के भावों को अभिव्यक्त कर पाठक/श्रोता तक पहुँचाता है। आलेख के माध्यम से विभिन्न क्षेत्रों से संबंधित विषयों का ज्ञान पाकर पाठकों का मानसिक विकास होता है। आलेख लेखन से जन जाग्रति और  जनमत निर्माण भी किया जा सकता है। 
                    
                    वर्तमान दूषित शिक्षा प्रणाली ने बालकों व किशोरों को पारिवारिक-सामाजिक पृष्ठ भूमि से दूर किया है। आलेख लेखन में प्रयुक्त सहज-सरल प्रसाद गुण व अमिधा शब्द शक्ति युक्त भाषा कॉनवेंट के छात्रों, ग्राम्य, नगरीय व महिला पाठकों के लिए सर्वथा उपयुक्त और ग्राह्य होती है। विषयों का वैविध्य और आम जन से संबद्धता आलेख विधाता को लोक प्रिय ही नहीं लोकोपयोगी भी बनाती है। आलेख विचार प्रधान गद्य है जिसमें कल्पनाशीलता का स्थान दाल में नमक की तरह ही होता है।  आलेख में भ्रामक अथवा विवादास्पद जानकारी नहीं होनी चाहिए।एक अच्छे आलेख का पाठक आलेख को पढ़कर न केवल जानकार बनता है अपितु उसमें विषय को और अधिक जानने की जिज्ञासा से अधिक जानने की दिशा में प्रवृत्त होता है। आलेख लेखन में भूमिका, विषय प्रतिपादन और निष्कर्ष अहम होता है। जन सामान्य के लिए आलेख की भाषा सहज, सरल, सुबोध, स्पष्ट तथा सारगर्भित होना चाहिए। किसी विषय के विद्वानों के लिए लिखे गए आलेख की भाषा प्रांजल, शुद्ध, विषय विशेष के उपयुक्त शब्दावली युक्त, अतीत की विरासत, वर्तमान की उन्नति तथा भावी प्रगति की प्रामाणिक जानकारी, तथ्यों-आँकड़ों आदि से सज्जित होना चाहिए। जो आलेख में शोध पर केंद्रित होते हैं उन्हें 'शोधालेख' तथा तकनीकी जानकारी से परिपूर्ण आलेख को 'तकनीकी आलेख' कहा जाता है।   

                    आलेख में व्यक्त किए गए विचार विचार कथात्मक न हो कर विवेचन व विश्लेषण युक्त होने चाहिए। आलेख से पाठक की जिज्ञासा शांत हो तथा कुछ और जानने की जिज्ञासा उत्पन्न होना चाहिए। आलेख ज्वलंत मुद्दों, लोकप्रिय विषयों, महत्वपूर्ण अनुष्ठानों-अनुसंधानों-प्रतिष्ठानों आदि  पर हो सकते हैं। आलेख में भावुकता पर यथार्थता को वरीयता डी जानी चाहिए। आलेख का आकार विषय वस्तु, लक्ष्य पाठक वर्ग तथा उपादेयता को देखते हुए होना चाहिए। आलेख लिखने से पहले विषय का गहन अध्ययन कार उस पर मौलिक मन-चिंतन किया जाना चाहिए। आलेख का कथ्य अनुमान नहीं, तथ्य पर  आधृत होता है। आलेख के आखिरी में निष्कर्ष अनिवार्य होता है।

                    उक्त पृष्ठ भूमि में 'दृष्टिपात जबलपुर' का प्रकाशन महत्वपूर्ण इसलिए है कि यह संस्कारधानी के साहित्यकारों की प्रकाशित कृतियों में अपनी मिसाल आप इसलिए है की इसका लक्ष्य पाठक वर्ग शालेय किशोर-तरुण तथा अंग्रेजी माध्यम से शिक्षा पा रहे ऐसे छात्र हैं जिन्हें हिंदी कठिन लगती है, जो अंग्रेजी को विकास के लिए आवश्यक मानते हैं तथा जिन्हें हिंदी से पिछड़े होने की प्रतीति होती है। स्वाभाविक है कि इस वर्ग के लिए आलेखों की भाषा सहज-सरल-सुबोध हो। किसी विषय को सरलता से व्यक्त करना ही सबसे अधिक कठिन होता है। 'दृष्टिपात जबलपुर की लेखिका रानू 'रुही' समाचार पत्र में समाचार लेखिका रही हैं। उन्हें जन सामान्य के लिए कठिन विषयों को सरल कर प्रस्तुत करने में महारत हासिल है। रानू स्वयं शोध कर चुकी हैं, इसलिए उन्हें विषय वस्तु को क्रमबद्ध प्रस्तुत कार निष्कर्ष की ओर ले जाने का अभ्यास है। रानू अध्यापन से भी जुड़ी हैं, इस नाते वे किशोर विद्यार्थियों की मानसिकता तथा कठिनाइयों से न केवल अवगत हैं, अपितु किसी विषय को रुचिकर बनाकर  प्रस्तुत करने में भी समर्थ हैं। यह कार्य किसी बच्चे को शक्कर में लपेटकर कुनैन की कड़वी गोली खिलाने की तरह है। 'दृष्टिपात जबलपुर' का आकलन करते समय यह ध्यान रख जाना आवश्यक है कि इसका लक्ष्य शालेय किशोरों को उनके परिवेश, पर्यावरण, विगत और वर्तमान से अवगत कराकर भविष्य के प्रति संवेदनशील बनाना है। लेखिका अभीष्ट की प्राप्ति में सफल है।  

                    'दृष्टिपात जबलपुर' में ३३ आलेख संकलित हैं। पुस्तक के शीर्षक से स्पष्ट है कि सभी लेख जबलपुर से संबंधित हैं। इनके विषय सनातन सलिला नर्मदा, पहला हिंदी गजेटियर, पौराणिक तीर्थ तथा भू वैज्ञानिकों के लिए महत्वपूर्ण स्थल लम्हेटा घाट, कलचुरी कालीन नर्मदा प्रतिमा, चौंसठ योगिनी मंदिर, प्रभु पार्श्वनाथ की पुरातन प्रतिमा, विवेचना नाट्य मण्डल, संकट मोचन हनुमान मंदिर ग्वारीघाट, सर्वाधिक खंड काव्यकार मनोज जी, तांत्रिक सिद्ध स्थल बाजना मठ, पहले कुलपति पद्मभूषण कुंजीलाल दुबे, दुर्दान्त पिंडारी, गोंड़ रानी दुर्गावती, भारत में रेडियो, गोंड़ राजा संग्राम शाह, मध्य प्रदेश विद्युत मण्डल, आचार्य रजनीश, पहला चर्च, गाँधी जी के प्रवास, डाक विभाग, पहला अशासकीय विद्यालय, सर्वाधिक पुराना बाजार, रानी दुर्गावती संग्रहालय, शहर के ब्यूटी पार्लर, पहला महाविद्यालय, पहला विश्व विद्यालय,  पहला समाचार पत्र, पहला ब्रास बैंड दल, पहला कवि, शहीद स्मारक, सूर्य मंदिर, पहला ऑर्केस्ट्रा, तथा रानीताल हैं। संतोष का विषय यह है कि ये आलेख किशोरों के पाठ्य क्रम का हिस्सा न होते हुए भी उनके बौद्धिक विकास, पर्यावरण के प्रति संवेदनशील बनाने और परिवेश को जानने की उत्सुकता जगाने के लिए उपयोगी हैं।  

                     'दृष्टिपात जबलपुर' के लक्ष्य पाठक वर्ग को देखते हुए विषय-मंथन का विस्तार और विवेचन सीमित होना स्वाभाविक है। विद्वानों को यह प्रतीति हो सकती है की लेखों में पिष्ट पेषण है किंतु जिनके लिए यह कृति लिखी गए है, उन छात्रों के ज्ञान कोश को समृद्ध करने में इस पुस्तक की उपादेयता असंदिग्ध है। सामान्यत: किशोर वर्ग पाठ्य पुस्तकों के सीमित विषयों के अतिरिक्त केवल मनरंजन परक साहित्य के संपर्क में आते हैं किंतु यह कृति किशोरों को अतीत से लेकर वर्तमान तक की जानकारी देती और भविष्य के प्रति संवेदनशील बनाती है। पुटक की भाषा जबलपुर के आम लोगों द्वारा बोले जाने वाली आधुनिक हिंदी है। लेखिका ने देशज बुंदेली, शुद्ध संस्कृत, अदबी उर्दू मिश्रित और दूषित हिंगलिश से परहेज कर पाठक वर्ग के लिए सर्वथा उपयुक्त आधुनिक हिंदी को अभिव्यक्ति का माध्यम उचित ही बनाया है। इन आलेखों को पढ़ते समय धयं रखा जाना चाहिए कि ये आलेख आरंभिक हैं अंतिम नहीं। 

                    हिंदी में आलेख लेखन कला पर पुस्तकों का अभाव है तथापि सुधीर निगम कृत  लेख-आलेख था नंद किशोर 'नवल' लिखित लेख-आलेख, रंजीत देसाई- आलेख आदि इस अभाव की पूर्ति की दिशा में उल्लेखनीय हैं। अंग्रेजी में स्टीवन पिनके- द सेंस ऑफ स्टाइल, जेफ गोइन्स- यू आर अ राइटर, स्टीफन किंग- ऑन राइटिंग आदि कई पुस्तकें लेखन संबंधी मार्गदर्शन हेतु लिखी गई हैं।       

                     हिंदी में लुप्त प्राय होती लेखन-विधाओं में सभी आयुवर्गों,  सामाजिक परिवेशों और बौद्धिक स्तरों के पाठकों के लिए श्रेष्ठ साहित्य रचना इस काल की आवश्यकता है, यह कृति इस दिशा में एक उपयुक्त कदम है। ऐसी कृतियों की मीमांसा करते समय उदार दृष्टिकोण अपनाया जाना चाहिए और छिद्रान्वेषण कार अपनी विद्वता प्रदर्शित करने से दूर रहा जाना चाहिए ताकि नई कलमें निरंतर फलती-फूलती रहें। 'दृष्टिपात जबलपुर' के लेखन-प्रकाशन हेतु प्रिय रानू राठौड़ 'रुही' को किशोरों के बौद्धिक विकास और सुरुचि सम्पन्नता के प्रति संवेदनशीलता हेतु बधाई दी ही जाना चाहिए।  

संदर्भ -
१. बी.एल. शर्मा- हिन्दी शिक्षण  
२. डाॅ. शमशकल पाण्डेय- हिन्दी शिक्षण
३. डाॅ. एस.के. त्यागी - हिन्दी भाषा शिक्षण 
४. आलोचना शास्त्र -पंत 
५. हिंदी साहित्य का इतिहास - आचार्य रामचन्द्र शुक्ल 

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