सलिल सृजन २६ फरवरी
*
युगतुलसी
आत्म-दीप प्रज्वलित कर, जग दे जो उजियार।
युगतुलसी सिय-राम पर, खुद को करें निसार।।
खुद को करें निसार, पवनसुत बनें सहायक।
श्वास-आस कर एक, रहे आजीवन साधक।।
अनुपम ग्रंथ अमोल, तरें हम प्रवचन सुनकर।
हों भवसागर पार, आत्म-दीप प्रज्वलित कर।।
(छंद-कुंडलिया)
२६.२.२०२४
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सॉनेट
तुम
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आँख लगी तुम रहीं रिझाती।
आँख खुली हो जातीं गायब।
आँख मिली तुम रहीं लजाती।।
आँख झुकी मन भाती है छब ।।
आँख उठाई दिल निसार है।
आँख लड़ाई दिलवर हारा।
आँख दिखाई, क्या न प्यार है?
आँख तरेरी उफ् फटकारा।।
आँख झपककर कहा न बोलो।
आँख अबोले रही बोलती।
आँख बरजती राज न खोलो।।
आँख लाल हो रही डोलती।।
आँख मुँदी तो हो तुम ही तुम।
आँख खुली तो हैं हम ही हम।।
२६-२-२०२२
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ॐ
महाकाल की जय जय बोलो।
प्रभु-दर्शन कर पावन हो लो।।
*
करे भस्म श्रंगार मनोहर, मंद मंद मुस्काते।
डम-डम डिम-डिम डमरू ध्वनि कर दूषण सभी मिटाते।।
नेह नर्मदा धार शीश पर, जग हित हेतु बहाते।
कंठ नाग-विष; सिर शशि अमृत रख जीवन जय गाते।।
सत्य-तुला पर करनी तोलो।
प्रभु महिमा गा नव रस घोलो।।
महाकाल की जय जय बोलो प्रभु-दर्शन कर पावन हो लो।।
*
काम क्रोध मद त्रिपुरासुर को पल में मार भगाते।
भक्ति-भाव गह चरण शरण ले भक्त अभय हो जाते।।
रुद्र-अक्ष रुद्राक्ष हार हर बाधा दूर हटाते।
नंदी वृषभ साथ रखते फिर वन में धूनि रमाते।।
पौध लगा किस्मत पट खोलो।
वृक्ष बचाकर प्रभुप्रिय हो लो।।
महाकाल की जय जय बोलो।
प्रभु-दर्शन कर पावन हो लो।।
*
अशुभ आप ले शुभ देते हर, कंकर में बस जाते।
शंका तज विश्वास अमिट रख शंकर पूजे जाते।।
क्षिप्रा मति-गति करे न आलस, संकट पर जय पाते।
जंगल में मंगल करते प्रभु, देव-दनुज यश गाते।।
अपने पाप, पुण्य कर धो लो।
सत्-शिव-सुंदर पावन हो लो।।
महाकाल की जय जय बोलो।
प्रभु-दर्शन कर पावन हो लो।।
२६.२.२०२१
***
मुक्तिका
निराला हो
*
जैसे हुए, न वैसा ही हो, अब यह साल निराला हो
मेंहनतकश ही हाथों में, अब लिये सफलता प्याला हो
*
उजले वसन और तन जिनके, उनकी अग्निपरीक्षा है
सावधान हों सत्ता-धन-बल, मन न तनिक भी काला हो
*
चित्र गुप्त जिस परम शक्ति का, उसके पुतले खड़े न कर
मंदिर-मस्जिद के झगड़ों में, देव न अल्लाताला हो
*
कल को देख कलम कल का निर्माण आज ही करती है
किलकिल तज कलकल वरता मन-मंदिर शांत शिवाला हो
*
माटी तन माटी का दीपक बनकर तिमिर पिये हर पल
आये-रहे-जाए जब भी तब चारों ओर उजाला हो
*
क्षर हो अक्षर को आराधें, शब्द-ब्रम्ह की जय बोलें
काव्य-कामिनी रसगगरी, कवि-आत्म छंद का प्याला हो
*
हाथ हथौड़ा कन्नी करछुल कलम थाम, आराम तजे
जब जैसा हो जहाँ 'सलिल' कुछ नया रचे, मतवाला हो
***
दोहा सलिला
सावरकर
*
उन सा वर कर पंथ हम, करें देश की भक्ति
सावरकर को प्रिय नहीं, रही स्वार्थ अनुरक्ति
वीर विनायक ने किया, विहँस आत्म बलिदान
डिगे नहीं संकल्प से, कब चाहा प्रतिदान?
भक्तों! तजकर स्वार्थ हों, नीर-क्षीर वत एक
दोषारोपण बंद कर, हों जनगण मिल एक
मोटी-छोटी अँगुलियाँ, मिल मुट्ठी हों आज
गले लगा-मिल साधिए, सबके सारे काज
***
वंदना
हे हंसवाहिनी! वीणा के तारों से झट झंकार करो
जो मतिभ्रम फैला वह हरकर, सद्भाव सलिल संचार करो
हो शरद पूर्णिमा की झिलमिल, दिल से दिल मिल खिल पाएँ
टकराव न हो, अलगाव न हो, मिल सुर से सुर सरगम गाएँ
२६-२-२०२०
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सुमुखी सवैया
सूत्र: सतजलग = सात जगण + लघु गुरु
वर्णिक मापनी - १२१ १२१ १२१ १२१ १२१ १२१ १२१ १२
*
नहीं घुसपैठ सहे अब देश, करे प्रतिकार न रोक सको
सुनो अब बात नहीं कर घात, झुको इमरान न टोक सको
उड़े कुछ यान नहीं कुछ भान, गिरा बम लौट सके चुपके
नहीं जिद ठान करो मत मान, छुरा अब पीठ न भोक सको
*
नहीं करता हमला यदि भारत, तो न कहो नहिं ताकत है
करे हमला यदि तो न बचो तुम, सत्य सुनो अब शामत है
मिटे अब पाक नहीं कुछ धाक, न साथ दिया चुप चीन रहा-
नहीं सुधरे यदि तो समझो, न भविष्य रहा बस आफत है
*
मिराज उड़े जब भारत के, नभ ने झुक वंदन आप किया
धरा चुप देख रही उड़ते, अभिनंदन चंदन माथ किया
किया जब लेसर वार अचूक, कँपा तब पाक न धैर्य रहा-
मिटे सब बंकर धूल मिले, अभिशाप बना सब पाप किया
२६-२-२०१९
***
दोहा सलिला
ट्रस्टीशिप सिद्धांत लें, पूँजीपति यदि सीख
सबसे आगे सकेगा, देश हमारा दीख
*
लोकतंत्र में जब न हो, आपस में संवाद
तब बरबस आते हमें, गाँधी जी ही याद
*
क्या गाँधी के पूर्व था, क्या गाँधी के बाद?
आओ! हम आकलन करें, समय न कर बर्बाद
*
आम आदमी सम जिए, पर छू पाए व्योम
हम भी गाँधी को समझ, अब हो पाएँ ओम
*
कहें अतिथि की शान में, जब मन से कुछ बात
दोहा बनता तुरत ही, बिना बात हो बात
*
समय नहीं रुकता कभी, चले समय के साथ
दोहा साक्षी समय का, रखे उठाकर माथ
*
दोहा दुनिया का सतत, होता है विस्तार
जितना गहरे उतरते, पाते थाह अपार
***
एक व्यंग्य मुक्तिका
*
छप्पन इंची छाती की जय
वादा कर, जुमला कह निर्भय
*
आम आदमी पर कर लादो
सेठों को कर्जे दो अक्षय
*
उन्हें सिर्फ सत्ता से मतलब
मौन रहो मत पूछो आशय
*
शाकाहारी बीफ, एग खा
तिलक लगा कह बाकी निर्दय
*
नूराकुश्ती हो संसद में
स्वार्थ करें पहले मिलकर तय
*
न्यायालय बैठे भुजंग भी
गरल पिलाते कहते हैं पय
*
कविता सँग मत रेप करो रे!
सीखो छंद, जान गति-यति, लय
२६-२-२०१८
***
रचना एक : रचनाकार दो
वासंती कुंडली
दोहा: पूर्णिमा बर्मन
रोला: संजीव वर्मा
*
वसंत-१
ऐसी दौड़ी फगुनहट, ढाँणी-चौक फलाँग।
फागुन झूमे खेत में, मानो पी ली भाँग।।
मानो पी ली भाँग, न सरसों कहना माने।
गए पड़ोसी जान, बचपना है जिद ठाने।।
केश लताएँ झूम लगें नागिन के जैसी।
ढाँणी-चौक फलाँग, फगुनहट दौड़ी ऐसी।।
*
वसंत -२
बौर सज गये आँगना, कोयल चढ़ी अटार।
चंग द्वार दे दादरा, मौसम हुआ बहार।।
मौसम हुआ बहार, थाप सुन नाचे पायल।
वाह-वाह कर उठा, हृदय डफली का घायल।।
सपने देखे मूँद नयन, सर मौर बंध गये।
कोयल चढ़ी अटार, आँगना बौर सज गये।
*
वसंत-३
दूब फूल की गुदगुदी, बतरस चढ़ी मिठास।
मुलके दादी भामरी, मौसम को है आस।।
मौसम को है आस, प्यास का त्रास अकथ है।
मधुमाखी हैरान, लली सी कली थकित है।।
कहे 'सलिल' पूर्णिमा, रात हर घड़ी मिलन की।
कथा कही कब जाए, गुदगुदी डूब-फूल की।।
२६.२.२०१७
***
नवगीत:
तुमने
*
तुमने
सपने सत्य बनाये।
*
कभी धूप बन,
कभी छाँव बन।
सावन-फागुन की
सुन-गुन बन।
चूँ-चूँ, कलकल
स्वर गुंजाये।
*
अंकुर ऊगे,
पल्लव विकसे।
कलिका महकी
फल-तरु विहँसे।
मादक परिमल
दस दिश छाये।
*
लिखी इबारत,
हुई इबादत।
सचमुच रब की
बहुत इनायत।
खनखन कंगन
कुछ कह जाए।
*
बिना बताये
दिया सहारा।
तम हर घर-
आँगन उजियारा।
आधे थे
पूरे हो पाये।
*
कोई न दूजा
इतना अपना।
खुली आँख का
जो हो सपना।
श्वास-प्यास
जय-जय गुंजाये।
***
नवगीत:
तुम पर
*
तुम पर
खुद से अधिक भरोसा
मुझे रहा है।
*
बिना तुम्हारे
चल, गिर, उठ, बढ़
तुम तक आया।
कदम-कदम बढ़
जगह बना निज
तुमको लाया।
खुद को किया
समर्पित हँस, फिर
तुमको पाया।
खाली हाथ बढ़ाया
तेरा हाथ गहा है।
*
तन-मन-धन
कर तुझे समर्पित
रीत गया हूँ।
अदल-बदल दिल
हार मान कर
जीत गया हूँ।
आज-आज कर
पता यह चला
बीत गया हूँ।
ढाई आखर
की चादर को
मौन तहा है।
*
तुम पर
खुद से अधिक भरोसा
मुझे रहा है।
२६.२.२०१६
***
नवगीत:
संजीव
.
हमने
बोये थे गुलाब
क्यों
नागफनी उग आयी?
.
दूध पिलाकर
जिनको पाला
बन विषधर
डँसते हैं,
जिन पर
पैर जमा
बढ़ना था
वे पत्त्थर
धँसते हैं.
माँगी रोटी,
छीन लँगोटी
जनप्रतिनिधि
हँसते हैं.
जिनको
जनसेवा
करना था,
वे मेवा
फँकते हैं.
सपने
बोने थे जनाब
पर
नींद कहो कब आयी?
.
सूत कातकर
हमने पायी
आज़ादी
दावा है.
जनगण
का हित मिल
साधेंगे
झूठा हर
वादा है.
वीर शहीदों
को भूले
धन-सत्ता नित
भजते हैं.
जिनको
देश नया
गढ़ना था,
वे निज घर
भरते हैं.
जनता
ने पूछा हिसाब
क्यों
तुमने आँख चुरायी?
.
हैं बलिदानों
के वारिस ये
जमी जमीं
पर नजरें.
गिरवी
रखें छीन
कर धरती
सेठों-सँग
हँस पसरें.
कमल कर रहा
चीर हरण
खेती कुररी
सी बिलखे.
श्रम को
श्रेय जहाँ
मिलना था
कृषक क्षुब्ध
मरते हैं.
गढ़ ही
दे इतिहास नया
अब
‘आप’ न हो रुसवाई.
२६.२.२०१५
***
शिशु गीत सलिला : १
*
१. श्री गणेश
श्री गणेश की बोलो जय,
पाठ पढ़ो होकर निर्भय।
अगर सफलता पाना है-
काम करो होकर तन्मय।।
*
२. सरस्वती
माँ सरस्वती देतीं ज्ञान,
ललित कलाओं की हैं खान।
जो जमकर अभ्यास करे-
वही सफल हो, पा वरदान।।
*
३. भगवान
सुन्दर लगते हैं भगवान,
सब करते उनका गुणगान।
जो करता जी भर मेहनत-
उसको देते हैं वरदान।।
*
४. देवी
देवी माँ जैसी लगती,
काम न लेकिन कुछ करती।
भोग लगा हम खा जाते-
कभी नहीं गुस्सा करती।।
*
५. धरती माता धरती सबकी माता है,
सबका इससे नाता है।
जगकर सुबह प्रणाम करो-
फिर उठ बाकी काम करो।।
*
६. भारत माता सजा शीश पर मुकुट हिमालय,
नदियाँ जिसकी करधन।
सागर चरण पखारे निश-दिन-
भारत माता पावन।
*
७. हिंदी माता
हिंदी भाषा माता है,
इससे सबका नाता है।
सरल, सहज मन भाती है-
जो पढ़ता मुस्काता है।।
*
८. गौ माता
देती दूध हमें गौ माता,
घास-फूस खाती है।
बछड़े बैल बनें हल खीचें
खेती हो पाती है।
गोबर से कीड़े मरते हैं,
मूत्र रोग हरता है,
अंग-अंग उपयोगी
आता काम नहीं फिकता है।
गौ माता को कर प्रणाम
सुख पाता है इंसान।
बन गोपाल चराते थे गौ
धरती पर भगवान।।
*
९. माँ -१ माँ ममता की मूरत है,
देवी जैसी सूरत है।
थपकी देती, गाती है,
हँसकर गले लगाती है।
लोरी रोज सुनाती है,
सबसे ज्यादा भाती है।।
*
१०. माँ -२ माँ हम सबको प्यार करे,
सब पर जान निसार करे।
माँ बिन घर सूना लगता-
हर पल सबका ध्यान धरे।।
*
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