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गुरुवार, 6 अप्रैल 2023

पुल निर्माण की तकनीक

तकनीक 
पुल निर्माण की तकनीक 
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बहते हुए पानी में निर्माण कार्य करना हमेशा से मुश्किल रहा है। इसके लिए अनेक उपाय करने पड़ते हैं।

पुल का अभिकल्पन (डिजाइन) करते समय पानी की अधिकतम और न्यूनतम गहराई, पानी के बहाव की गति, पानी के नीचे की मिट्टी की प्रकृति, पुल का भार, पुल पर चलने वाले वाहनों का भार आदि के हिसाब से पुल की नींव (Foundation) का प्रकार तय किया जाता है, और फिर नींव का अभिकल्पन किया जाता है।

पानी में बने पुल की नींव की सामान्यतः दो प्रकार की होती है-  १. पाइल (pile) नींव तथा २. कूप (Well)   नींव। 

बहते हुए पानी में काम  करने के लिए पानी में एक टेम्पररी एकसेस के लिए एक मजबूत लोहे का प्लेटफॉर्म बना लिया जाता है।


इस पुल की सहायता से पानी में लकड़ी की बल्ली (wood pile) वृत्ताकार आकार में धंसा दी जाती हैं। इनके बीच में रेत से भरे बोरे फंसा दिए जाते हैं। अब शुरू होता है इस वृत्त में रेत या मिट्टी भरने का काम। जब मिट्टी पानी के सतह से ऊपर आ जाती है तो लोहे के पुल से फाउंडेशन के निर्माण हेतु इंजीनियर, मजदूर और मशीन अपना काम शुरू करते हैं।



पुल की संरचना को हम दो भागों में बांटते हैं- १. अधो संरचना (Sub structure) तथा २. ऊपरी संरचना (Super structure)

पल का जो भाग जमीन के स्तर के नीचे होता है उसे अधो संरचना कहा जाता है। इस हम नींव के नाम से जानते हैं। 
पुल के बीच में पुल को रोकने के लिए जो आधार बनाया जाता है उसे स्तंभ/खंबा  (Pier) कहते हैं। दो पियर के बीच की दूरी span कही जाती है। स्पैन के हिसाब से ही पुल का प्रकार तय किया जाता है। इसे हम इस प्रकार बांट सकते है -सॉलिड स्लैब - 10–15 मीटर के स्पेन के लिए
गर्डर - 60–80 मीटर तक के स्पेन के लिए, सेगमेंट - 80 मीटर से ज़्यादा स्पेन के लिए

जहाँ नदियों का जल स्तर अधिक ऊँचा  नहीं होता और ज्यादा वक्त उनकी चौड़ाई कम रहती है वहाँ गर्डर का इस्तेमाल किया जाता है। गर्डर को सीधे इसकी जगह पर या कास्टिंग यार्ड में बना सकते हैं। कास्टिंग यार्ड में बने हुए गर्डर को क्रेन की सहायता से पियर कैप के ऊपर रख दिया जाता है।


यह गंगा नदी पर बना cable stayed pre cast segment type bridge है। यह उत्तर प्रदेश के बलिया जिले में स्थित श्रीरामपुर घाट पर बना है। वर्तमान में अपनी तरह का ये भारत का सबसे लंबा पुल है। इसकी लंबाई 2544 मीटर है।





सेगमेंट ब्रिज वहां के लिए डिजाइन किए जाते हैं जहां पानी का स्तर काफी ऊंचा हो। जिसके कारण स्पान काफी अधिक हो जाता है। इस के लिए पहले कास्टिंग यार्ड में सेगमेंट्स को कास्ट कर लिया जाता है। फिर इन्हें उठाकर एक - एक करके पियर के दोनों तरफ जोड़ते जाते हैं। एक तरीका है लॉन्चर से लॉन्च करने का, इस तरह -

या फिर इस तरह -

सेगमेंट कुछ इस तरह का दिखता है -

सेगमेंट्स को आपस में जोड़ने के लिए High Tensile Stand wire का प्रयोग किया जाता है। इसे सेगमेंट के बीच से गुजार कर बहुत शक्तिशाली जैक से खींचा जाता है और सीमेंट कंपाउंड से जाम कर दिया जाता है। दो सेगमेंट के बीच की दरार को एपॉक्सी से भर देते हैं।

अंत में जब ब्रिज बनकर तैयार हो जाए तब लोड टेस्टिंग की जाती है। यह चेक करने के लिए कि जिस लोड के लिए ब्रिज डिजाइन किया गया है उतने लोड में सुरक्षित है अथवा नहीं।

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