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सोमवार, 3 अप्रैल 2023

गीत, बिन तुम्हारे, क्षणिका, बुंदेली, दोहा, त्रिपदी, पंच यज्ञ, राग जातीय छंद,कमला देवी चट्टोपाध्याय,पैरोडी, कुण्डलिया,मुक्तिका

मुक्तक
दुआ

दुआ करिए दुआ से ही दवा का काम हो जाए।
दुआ करिए दबा सच को न कोई झूठ जय पाए।।
करे वादा बता जुमला न नेता लोक को ठग ले-
नहीं फिर तंत्र रौंदे लोक को निज कीर्ति खुद गाए।।
३-४-२०२३
नौ दोहा दीप
दिन की देहरी पर खड़ी, संध्या ले शशि-दीप
गगन सिंधु मोती अगिन, तारे रजनी सीप
दीप जला त्राटक करें, पाएँ आत्म-प्रकाश
तारक अनगिन धरा को, उतर करें आकाश
दीप जलाकर कीजिए, हाथ जोड़ नत माथ
दसों दिशा की आरती, भाग्य देव हों साथ
जीवन ज्योतिर्मय करे, दीपक बाती ज्योत
आशंका तूफ़ान पर, जीते आशा पोत
नौ-नौ की नव माल से, कोरोना को मार
नौ का दीपक करेगा, तम-सागर को पार
नौ नौ नौ की ज्योति से, अन्धकार को भेद
हँसे ठठा भारत करे, चीनी झालर खेद
आत्म दीप सब बालिये, नहीं रहें मतभेद
अतिरेकी हों अल्पमत, बहुमत में श्रम - स्वेद
तन माटी माटी दिया, लौ - आत्मा दो ज्योत
द्वैत मिटा अद्वैत वर, रवि सम हो खद्योत
जन-मन वरण प्रकाश का, करे तिमिर को जीत
वंदन भारत-भारती कहे, बढ़े तब प्रीत
*
मुक्तिका
*
सलिल बूँद मिल स्वाति से, बन जाती अनमोल
तृषा पपीहे की बुझे, जब टेरे बिन मोल
मन मुकुलित ममतामयी!, हो दो यह वरदान
सलिल न पंकिल हो तनिक, बहे मधुरता घोल
मनुज छोर की खोज में, भटक रहा दिन-रैन
कौन बताये है नहीं, छोर जगत है गोल
रहे शिष्य की छाँह से, शिक्षक हरदम दूर
गुरु कह गुरुघंटाल बन, परखें स्वारथ तोल
झूम बजाएँ नाचिए, किंतु न दीजै फाड़
अटल सत्य हर ढोल में, रही हमेशा पोल
सगा न कोई किसी का, सब मतलब के मीत
सरस सत्य हँस कह सलिल, अप्रिय सत्य मत बोल
अगर मधुरता अत्यधिक, तब रह सजग-सतर्क
छिप अमृत की आड़ में, गरल न करे किलोल
***
मुक्तिका -
सूत्र - रगण गुरु
ध्वनिखंड - फाइलातुं
*
सत्य बोलें
या न बोलें।
वाक् द्वारा
प्रेम घोलें।
क्यों न भैये
बात तोलें?
आदमी के
साथ होलें।
आँसुओं की
माल पो लें।
वायदों की
नस्ल बो लें।
कायदे से
साँस तो लें
३-४-२०२०
***
कुण्डलिया
*
कहता साहूकार क्यों, मैं हूँ चौकीदार?
स्वांग रचाकर चाहता, बना सके सरकार
बना सके सरकार, न चाहे चूके मौका
बुआ भतीजा मिले, लगाने फिर से चौका
भैया-बहिना संग, बंधु को बंधु न सहता
दगाबाज दे दगा, चोर औरों को कहता
*
आवारा मन ने कहा, लड़ ले आम चुनाव
खास-खास हैं सड़क पर, सम हैं भाव-अभाव
सम हैं भाव-अभाव, माँग लो माँग न चूको
नोटा में मतदान, करो हर दल पर भूँको
अब तक ठगता रहा, ठगाया अब बेचारा
मन की कहे तरंग, न हो जन-गण बेचारा
***
एक दोहा
खास-ख़ास बतला रहे, आया आम चुनाव।
ताव-भाव मत माँगते, मत दें भूख-अभाव।।
***
कार्य शाला :
दोहा प्रश्नोत्तर
*
सरोज सिंह परिहार 'सूरज' नागौद
नीर भरे नैना रहें,लिये दरस की प्यास।
प्यासे नैना जल भरे,अजब विरोधाभास।।
*
संजीव वर्मा 'सलिल'
स्नेह सलिल नैना लिए, करें दरस की प्यास।
नेह नर्मदा मिल बहे, नहीं विरोधाभास।।
***
३.४.२०१९
पैरोडी- हवाई दोस्ती है ये
ई मित्रता पर पैरोडी:
*
(बतर्ज़: अजीब दास्तां है ये,
कहाँ शुरू कहाँ ख़तम...)
*
हवाई दोस्ती है ये,
निभाई जाए किस तरह?
मिलें तो किस तरह मिलें-
मिली नहीं हो जब वज़ह?
हवाई दोस्ती है ये...
*
सवाल इससे कीजिए?
जवाब उससे लीजिए.
नहीं है जिनसे वास्ता-
उन्हीं पे आप रीझिए.
हवाई दोस्ती है ये...
*
जमीं से आसमां मिले,
कली बिना ही गुल खिले.
न जिसका अंत है कहीं-
शुरू वहीं हैं सिलसिले.
हवाई दोस्ती है ये...
*
दुआ-सलाम कीजिए,
अनाम नाम लीजिए.
न पाइए न खोइए-
'सलिल' न ख्वाब देखिए.
हवाई दोस्ती है ये...
***
छंद- दोहा
अलंकार- यमक
*
मिला भाग से भाग, गुणा-भाग कर भाग मत।
ले जो भाग सुभाग, उससे दूर न भागता।।
*
भाग = किस्मत, हिस्सा, हिसाब-किताब, दूर जाना, भाग लेना, सौभाग्य, अलग होता।
संवस, ३-४-२०१९
***
स्मरणांजलि:
कमला देवी चट्टोपाध्याय
*
कमला देवी चट्टोपाध्याय भारतीय नारी के नवजागरण काल ही अविस्मरणीय विभूति रहीं हैं। स्वतंत्रता सत्याग्रही, समाज सुधारक, नाट्य कला उन्नायक, हथकरघा विकासक तथा हस्त शिल्प संरक्षक के रूप में उनका योगदान असाधारण और उल्लेखनीय रहा है। उनका जीवनकाल (३ अप्रैल १९०३, मैंगलोर - २९ अक्टूबर १९८८) विशेषकर सवातंत्र्योपरांत अवधि भारतीय नारी के सामाजिक-आर्थिक उन्नयन हेतु सहकारिता आंदोलन को समर्पित रहा। नेशनल स्कूल ऑफ़ ड्रामा, संगीत-नाटक अकादमी, सेन्ट्रल कोटेज इंडस्ट्रीज एम्पोरियम, क्राफ्ट्स कौंसिल ऑफ़ इंडिया जैसी अनेक संस्थाएँ उनकी दूरदृष्टि के फलस्वरूप अस्तित्व में आईं। प्रबल विरोध सहकर भी उनहोंने हस्तशिल्प तथा सहकारिता को आम जनों के सामाजिक-आर्थिक उन्नयन के लिए प्रभावी अस्त्र के रूप में प्रयोग किया। उन्हें १९७४ में संगीत नाटक अकादमी फेलोशिप (संगीत-नाटक अकादमी का सर्वोच्च सम्मान) से अलंकृत किया गया।
कमलादेवी अपने पिता अनंथ्य धारेश्वर (जिला कलेक्टर मैंगलोर) तथा माता गिरिजाबाई (कर्णाटक के संभ्रांत परिवार कन्या) की चौथी संतान थीं। उन्हें साहित्यिक-सांस्कृतिक मूल्यों की समझ और देश सेवा का संस्कार अपनी विदुषी दादी और माँ से विरासत में मिला। कमलादेवी मेधावी विद्यार्थी थीं जिन्होंने बचपन से ही साहस और आत्म विश्वास का परिचय दिया। महादेव गोविन्द रानाडे, गोपाल कृष्ण गोखले, रमाबाई रानाडे, एनी बेसेंट, जैसे राष्ट्रवादी नेता परिवार के अन्तरंग मित्र थे, उनके आवागमन से तरुणी कमलादेवी को राष्ट्रीय आन्दोलन को समझने और उससे जुड़ने की प्रेरणा मिली। उनहोंने केरल की संस्कृत नाट्य परंपरा 'केरल-कुट्टीयट्टम' का शिक्षण महान गुरु पद्म श्री मणि माधव चक्यार किल्लीकुरुसिमंगलम में उनके निवास पर रहकर प्राप्त किया।
दुर्योगवश उनकी आदर्श बड़ी बहन सगुना का विवाह के अल्प काल बाद तरुणाई में ही निधन हो गया। कमला देवी ७ वर्ष की ही थीं कि उनके पिता नहीं रहे। तत्कालीन कानूनों के अनुसार पिता की विशाल संपत्ति कमला देवी के माँ गिरिजाबाई के सौतेले पुत्रों को मिली। गिरिजा बाई को नाममात्र की भरणपोषण निधि मिली जिसे उस स्वाभिमानी महिला ने ठुकराते हुए अपने दहेज़ में मिली संपत्ति से अपनी बेटियों का पालन-पोषण करने का निर्णय लिया। कमलादेवी ने साहस और संघर्ष के गुण अपनी माँ से पाए। मात्र १४ वर्ष की आयु में १९१७ में उनका विवाह कृष्ण राव के साथ हुआ किन्तु दुर्भाग्यवश दो वर्ष बाद ही १९१९ में वे विधवा हो गईं।
क्वीन मेरी कोलेज चेन्नई में पढ़ते समय वे सरोजिनी नायडू की छोटी बहिन सुहासिनी चट्टोपाध्याय तथा उनके प्रतिभाशाली भाई हरिन्द्रनाथ चट्टोपाध्याय (कालांतर में प्रसिद्ध कवि, लेखक, अभिनेता) के संपर्क में आईं। कला के प्रति लगाव इन दोनों के मिलन में सहायक हुआ। २० वर्ष की होने पर १९२३ में कमलादेवी, तत्कालीन रूढ़िवादी समाज के घोर विरोध के बाद भी हरिन्द्रनाथ के साथ विवाह बंधन में बंध गईं। विवाह के शीघ्र बाद हरिन प्रथम विदेश यात्रा पर लंदन प्रस्थित हो गए, कुछ माह बाद कमला देवी भी उनसे जा मिलीं और उनहोंने बेडफ़ोर्ड कोलेज लन्दन से समाजशास्त्र में डिप्लोमा प्राप्त किया। उन्हें एक पुत्र हुआ जिसका नाम रामकृष्ण चट्टोपाध्याय रख गया।
१९२३ में महात्मा गाँधी के असहयोग आन्दोलन का समाचार मिलाने पर वे तत्काल भारत लौटीं और समाज के उत्थान हेतु गठित गांधीवादी संस्था 'सेवा दल' में जुड़ गईं तथा शीघ्र ही महिला प्रकोष्ठ प्रभारी बना दी गईं। उनहोंने पूरे देश से दक्ल के लिए सभी आयु वर्गों की महलों का चयन 'सेविका; हेतु किया तथा उन्हें प्रशिक्षण भी दिया। वर्ष १९२६ में उनकी भेंट सफ्रागेट मार्ग्रेट ई. कूजीन, आल इंडिया वीमन कोंफेरेंस के संस्थापक से हुई, जिन्होंने कमलादेवी को मद्रास प्रविन्शिअल लेजिस्लेटिव असेम्बली के चुनाव में भागीदारी हेतु हेतु प्रेरित किया। वे भारत की प्रथम महिला उम्मीदवार बनीं, उन्हें प्रचार हेतु अत्यल्प समय मिला तथापि वे केवल ५५ मतों से पराजित हुईं।
आल इंडिया वीमन कोंफेरेंस की स्थापना के पश्चात् वे इसकी प्रथम महिला संगठन सचिव हुईं। कालांतर में यह संस्था देशव्यापी संगठन के रूप में विकसित हुई, पूरे देश में इसकी शाखाएँ आरम्भ हुईं। कमलादेवी ने सघन दौरे कर संवैधानिक सुधारों की जमीन तैयार की। उनहोंने कई यूरोपीय देशों की यात्रा की तथा वहाँ से प्रेरणा प्राप्त कर भारत में महिलाओं के लिए महिलाओं द्वारा संचालित शैक्षणिक संस्थाओं की स्थापना की। इसका शानदार उदाहरण लेडी इरविन गृह विज्ञान महाविद्यालय दिल्ली जैसी सर्वकालिक श्रेष्ठ संस्था है। १९३० में महात्मा गांधी द्वारा नमक सत्त्याग्रह हेतु गठित सात सदस्यीय दल की के सदस्य कमलादेवी भी थीं जिन्होंने मुम्बई बीच फोर्ट पर नमक बनाया।इस समिति में दूसरी महिला अवन्तिका बी गोखले थीं। कमलादेवी यहीं नहीं रुकीं। उनहोंने साहस की मिसाल कायम करते हुए समीपस्थ उच्च न्यायालय में जाकर उपस्थित न्यायाधीश से पूछा कि क्या वह उनके द्वारा तुरंत तैयार किया गया नमक खरीदना चाहेगा? २६ जनवरी १९३० को भारतीय तिरंगे झंडे से लिपटकर उसकी रक्षा करने पर वे देशव्यापी चर्चा औरए सराहना की पात्र हुईं। १९३० में ही मुम्बई स्टोक एक्सचेज में घुसकर देशी नमक के पैकेट बेचने पर उन्हें गिरफ्तार कर एक साल का कारावास दिया गया।
हरिन और कमला ने अनेक कलात्मक प्रयोग किए और ख्यति अर्जित की, उन्हें एक पुत्र रामा प्राप्त हुआ। उस समय संभ्रांत परिवारों की महिलाओं के लिए अभिनय का निषेध होने पर भी कमला देवी ने कुछ चलचित्रों में अभिनय किया और अपनी प्रतिभा की छाप छोडी। वर्ष १९३१ में शूद्रक के प्रसिद्ध नाटक पर आधारित प्रथम कन्नड़ मूक चलचित्र मृच्छकटिक (वसंतसेना) जिसके नायक येनाक्षी रामाराव, निदेशक कन्नड़ फिल्मों के पितामह मोहन दयाराम भवानी थे, में अभिनय कर कमलादेवी ने अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया। तत्पश्चात अपनी दूसरी पारी में वर्ष १९४३ में हिंदी चलचित्र तानसेन (नायक के.एल.सहगल, सहनायिका खुर्शीद), शंकर-पारवती (१९४३), तथा धन्ना भगत (१९४५) में कमलादेवी ने जीवंत अभिनय किया। विवाह के कई वर्षों बाद एक और परंपरा को तोड़ते हुए कमलादेवी ने 'तलाक' का वाद स्थापित कर १९५५ में विवाह का अंत किया।
वर्ष १९३६ में कमला देवी कोंग्रेस समाजवादी दल की अध्यक्ष चुनी गईं जहाँ उनके सहयोगी जयप्रकाश नारायण, राममनोहर लोहिया और मीनू मसानी जैसे प्रखर नेता थे। १९४० में द्वितीय विश्व युद्ध आरम्भ होते समय कमलादेवी लन्दन में थीं। उनहोंने तुरंत विश्व भ्रमण कर भारत की परिस्थिति और विश्व युद्ध के पश्चात स्वाधीनता हेतु वातावरण बनाने का कार्य आरम्भ कर दिया।
भारत की स्वतंत्रता के साथ आई विभाजन की त्रसदी से दात्कार्जूझते हुए कमला देवी ने शरणार्थियों के पुनर्वास के कार्य में खुद को झोंक दिया। उनहोंने इन्डियन कोओपरेटिव यूनियन की स्थापना कर पुनर्वास तथा सहकारिता आधारित नगर निर्माण की संकल्पना को मूर्त रूप दिया। भारत सरकार विशेषकर जवाहरलाल नेहरु ने इस शर्त पर अनुमति दी कि वे सरकार से वित्तीय सहायता नहीं मांगेंगी। कमलादेवी ने असाधारण जीवत का परिचय देते हुए नार्थ वेस्ट फ्रंटीयार से आये ५०.००० से अधिक शरणार्थियों के लिए दिल्ली की सीमा पर फरीदाबाद नगर का निर्माण कराया। उनहोंने शरणार्थियों को रहने के लिए घर तथा आजीविका चलाने के लिए नया काम-धंधा सिखाने, तथा स्वास्थ्य सुविधाएँ उपलब्ध करने के लिए खुद को झोंक दिया।
जीवन के उत्तरार्ध में भारतीय हस्तशिल्प तथा हस्तकलाओं के संरक्षण, उन्नयन तथा आजीविका-साधन के रूप में विकास के प्रति कमला देवी समर्पित रहीं। उनहोंने नेहरू जी द्वारा पश्चिमी देशों से विशाल उत्पादन तकनीक को उद्योग जगत में लाने के प्रयासों से हत्शिल्प और हस्तकलाओं पर संभावित दुष्प्रभावों से बचाने का सफल प्रयास लगातार किया। असंगठित क्षेत्र में कार्यरत महिलाओं के लिए क्राफ्ट म्यूजियम स्थापित कर उन्हें पारंपरिक कलाओं के भण्डार ग्रहों और विक्रय केन्द्रों के रूप में विकसित किया। इसक श्रेष्ठ उदाहरण थियेटर क्राफ्ट्स म्यूजियम दिल्ली है।उन्होंने शिल्प और कलाओं को उन्नत करने के साथ-साथ श्रेष्ठ कलाकारों-शिल्पकारों को प्रोत्साहित करने के लिए, उनसे प्रशिक्षण प्राप्त करने, उन्हें पुरस्कृत करने तथा उनकी कलाकृतियों को पारंपरिक गौरव के साथ जोड़कर क्रय करने की मानसिकता पूरे देश में विकसित की। १९६४ में कमला देवी ने भारतीय नाट्य संघ के अंतर्गत नाट्य इन्स्टीट्यट ऑफ़ कत्थक एंड कोरिओग्राफी बेंगलुरु का श्री गणेश किया तथा यूनेस्को से सम्बद्ध कराया। इसकी वर्तमान निदेशक श्रीमती माया राव हैं।
कमलादेवी अपने समय से बहुत आगे रहने वाली महिला रत्न थीं। वे आल इण्डिया हिन्दी क्राफ्ट बोर्ड की स्थापना के मूल में थीं तथा इसकी प्रथम अध्यक्ष रहीं। क्राफ्ट कौंसिल ऑफ़ इंडिया, को विश्व क्राफ्ट्स कौंसिल एशिया-पेसिफिक रीजन का प्रथम अध्यक्ष होने का गौरव कमलादेवी ने ही दिलाया। कालांतर में उनहोंने नेशनल स्कूल ऑफ़ ड्रामा की स्थापना, संगीत-नाटक अकादमी की अध्यक्षता तथा यूनेस्को के सदस्य के रूप में महती भूमिका का निर्वहन किया। १९८६ में उनकी आत्मकथा 'इनर रिसेसेस एंड आउटर स्पेसेस' प्रकाशित हुई।
पुरस्कार-सम्मान:
वर्ष १९५५ में भारत सरकार ने उन्हें 'पद्म भूषण' तथा १९८७ में द्वितीय सर्वोच्च नागरिक अलंकरण 'पद्म विभूषण' से सम्मानित किया। उन्हें वर्ष १९६६ में सामुदायिक नेतृत्व हेतु विश्व विख्यात रमनमैगसाय्साय पुरस्कार, संगीत-नाटक अकादमी से संगीत-नाटक अकादमी फेलोशिप व रत्न सदस्य तथा इंडियास नेशनल अकादमी ऑफ़ म्यूजिक, डांस एंड ड्रामा के लाइफ टाइम अचीवमेंट अवार्ड जैसे सर्वोच्च पुरस्कार देकर संस्थाएं गौरंवान्वित हुईं। यूनेस्को ने १९७७ में उन्हें हस्तशिल्प के उन्नयन हेतु पुरस्कृत किया। शान्तिनिकेतन ने अपना सर्वोच्च 'देशिकोत्तम' पुरस्कार समर्पित किया।
भारत सरकार की मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति ईरानी द्वारा मार्च २०१७ में अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर महिला बुनकरों एवं शिल्पियों के लिए ‘कमलादेवी चट्टोपाध्याय राष्ट्रीय पुरस्कार’ शुरू करने की घोषणा की गई है।
साहित्य:
कमला देवी ने अनेक पुस्तकों का प्रणयन किया है। प्रमुख है: १. The Awakening of Indian women, Everyman's Press, 1939. २. Japan-its weakness and strength, Padma Publications 1943.३. Uncle Sam's empire, Padma publications Ltd, 1944.४. In war-torn China, Padma Publications, 1944.५. Towards a National theatre, (All India Women's Conference, Cultural Section. Cultural books), Aundh Pub. Trust, 1945.६. America,: The land of superlatives, Phoenix Publications, 1946.७. At the Cross Roads, National Information and Publications, 1947.८. Socialism and Society, Chetana, 1950.९. Tribalism in India, Brill Academic Pub, 1978, ISBN 0706906527.१०. Handicrafts of India, Indian Council for Cultural Relations & New Age International Pub. Ltd., New Delhi, India, 1995. ISBN 99936-12-78-2.११. Indian Women's Battle for Freedom. South Asia Books, 1983. ISBN 0-8364-0948-5.१२. Indian Carpets and Floor Coverings, All India Handicrafts Board, 1974.१३. Indian embroidery, Wiley Eastern, 1977.१४. India's Craft Tradition, Publications Division, Ministry of I & B, Govt. of India, 2000. ISBN 81-230-0774-4.१५. Indian Handicrafts, Allied Publishers Pvt. Ltd, Bombay India, 1963.१६. Traditions of Indian Folk Dance.१७. The Glory of Indian Handicrafts, New Delhi, India: Clarion Books, 1985.१८. Inner Recesses, Outer Spaces: Memoirs, 1986. ISBN 81-7013-038-7.
कमलादेवी चट्टोपाध्याय पर पुस्तकें: १.. Sakuntala Narasimhan, Kamaladevi Chattopadhyay. New Dawn Books, 1999. ISBN 81-207-2120-9. २. S.R. Bakshi, Kamaladevi Chattopadhyaya : Role for Women’s Welfare, Om, 2000, ISBN 81-86867-34-1.३. Reena Nanda, Kamaladevi Chattopadhyaya: A Biography (Modern Indian Greats), Oxford University Press, USA, 2002, ISBN 0-19-565364-5.४. Jamila Brij Bhushan, Kamaladevi Chattopadhyaya – Portrait of a Rebel, Abhinav Pub, 2003. ISBN 81-7017-033-8. ५. M.V. Narayana Rao (Ed.), Kamaladevi Chattopadhyay: A True Karmayogi. The Crafts Council of Karnataka: Bangalore. 2003 ६. Malvika Singh, The Iconic Women of Modern India – Freeing the Spirit. Penguin, 2006, ISBN 0-14-310082-3.७. Jasleen Dhamija, Kamaladevi Chattopadhyay, National Book Trust, 2007. ISBN 8123748825 ८. . Indra Gupta , India’s 50 Most Illustrious Women. ISBN 81-88086-19-3.
***
छंद सलिला :
राग और रागी जातीय छंद
*
हिंदी पिंगल में छ: रागों के आधार पर छ: मात्रिक छंद को 'रागी जातीय' छंद कहा गया है। 'षटराग' का अभ्यासी अपनी धुन में मस्त रहा और जन सामान्य उसे न 'खटरागी' कहकर उपहास करता रहा।
रागों के वर्गीकरण की परंपरागत पद्धति (१९वीं सदी तक) के अनुसार हर एक राग का परिवार है। मुख्य छः राग हैं पर विविध मतों के अनुसार उनके नामों व पारिवारिक सदस्यों की संख्या में अन्तर है। इस पद्धति को मानने वालों के चार मत हैं।
१. शिव मत इसके अनुसार छः राग माने जाते थे, प्रत्येक की छः-छः रागिनियाँ तथा आठ पुत्र हैं। इस मत में मान्य छः राग- १. राग भैरव, २. राग श्री, ३. राग मेघ, ४. राग बसंत, ५. राग पंचम, ६. राग नट नारायण हैं।
कल्लिनाथ मत- इसमें भी वही छः राग माने गए हैं जो शिव मत के हैं, पर रागिनियाँ व पुत्र-रागों में अन्तर है।
भरत मत- के अनुसार छः राग, प्रत्येक की पाँच-पाँच रागिनियाँ आठ पुत्र-राग तथा आठ पुत्र वधू हैं। इस मत में मान्य छः राग निम्नलिखित हैं- १. राग भैरव, २. राग मालकोश, ३. राग मेघ, ४. राग दीपक, ५. राग श्री, ६. राग हिंडोल।
हनुमान मत- इस मत के अनुसार भी छः राग वही हैं जो 'भरत मत' के हैं, परन्तु इनकी रागिनियाँ, पुत्र-रागों तथा पुत्र-वधुओं में अन्तर है।
ये चारों पद्धति १८१३ ई. तक चलीं तत्पश्चात पं॰ भातखंडे जी ने 'थाट राग' पद्धति का प्रचार व प्रसार किया।
*
विमर्श :
पंच यज्ञ
हर मनुष्य को ५ श्रेष्ठ कर्ण नियमित रूप से करना चाहिए. इन्हीं कर्मो का नाम यज्ञ है। ५ यज्ञों के आधार पर ५ मात्राओं के छंदों को याज्ञिक जातीय कहा गया है। ५ यज्ञ निम्न हैं-
१. ब्रह्मयज्ञ- प्रातः सूर्योदय से पूर्व तथा सायं सूर्यास्त के बाद जब आकाश में लालिमा हो तब एकांत स्थान में बैठ कर ईश्वर का ध्यान करना ब्रह्मयज्ञ (संध्या) है।
२. देवयज्ञ- अग्निहोत्र (हवन) देवयज्ञ है। हम अपने शरीर द्वारा वायु, जल और पृथ्वी को निरंतर प्रदूषित करते हैं। मानव निर्मित यंत्र भी प्रदूषणफैलाते हैं जिसे रोक वायु,जल और पृथ्वी को पवित्र करने हेतु हवन करना हमारा परम कर्तव्य है।
हवन में बोले मन्त्रों से मानसिक - आत्मिक पवित्रता एवं शान्ति प्राप्त होती है।
३. पितृ यज्ञ- जीवित माता पिता गुरुजनो और अन्य बड़ो की सेवा एवं आज्ञा पालन करना ही पितृ यज्ञ है।
४. अतिथि यज्ञ- घर आये विद्वान्,धर्मात्मा, स्नेही स्वजन आदि का सत्कार कर ज्ञान पाना अतिथि यज्ञ है।
५. बलिवैश्वदेव यज्ञ- पशु-पक्षी, कीट-पतंग आदि पर दया कर खाना-पानी देना बलिवैश्वदेव यज्ञ है।
***
।। वेदोक्त रात्रि सूक्त।।
*
। ॐ रजनी! जग प्रकाशें, शुभ-अशुभ हर कर्म फल दें।
।। विश्व-व्यापें देवी अमरा,ज्योति से तम नष्ट कर दें।।
*
। रात्रि देवी! भगिनी ऊषा को प्रगट कर मिटा दें तम।
।। मुदित हों माँ पखेरू सम, नीड़ में जा सो सकें हम ।।
*
। मनुज, पशु, पक्षी, पतंगे, पथिक आंचल में सकें सो।
।। काम वृक वासना वृकी को, दूर कर सुखदायिनी हो।।
*
। घेरता अज्ञान तम है, उषा!ऋणवत दूर कर दो।
।। पयप्रदा गौ सदृश रजनी!, व्योमपुत्रि!! हविष्य ले लो।।
***
***
दोहे पर्यावरण के
भारत की जय बोल
*
वृक्ष देव देते सदा, प्राणवायु अनमोल.
पौधारोपण कीजिए, भारत की जय बोल..
*
पौधारोपण से मिले, पुत्र-यज्ञ का पुण्य.
पेड़ काटने से अधिक, पाप नहीं है अन्य..
*
माँ धरती के लिये हैं, पत्ते वस्त्र समान.
आभूषण फल-फूल हैं, सर पर छत्र वितान..
*
तरु-हत्या दुष्कर्म है, रह नर इससे दूर.
पौधारोपण कर मिले, तुझे पुण्य भरपूर..
*
पेड़ कटे, वर्षा घटे, जल का रहे अभाव.
पशु-पक्षी हों नष्ट तो, धरती तप्त अलाव..
*
जीवनदाता जल सदा, उपजाता है पौध.
कलकल कलरव से लगे, सारी दुनिया सौध..
*
पौधे बढ़कर पेड़ हों, मिलें फूल,फल, नीड़.
फुदक-फुदक शुक-सारिका, नाचें देखें भीड़..
*
पेड़ों पर झूले लगें, नभ छू लो तुम झूल.
बसें देवता-देवियाँ. काटो मत तुम भूल..
*
पीपल में हरि, नीम में, माता करें निवास.
शिव बसते हैं बेल में, पूजो रख विश्वास..
*
दुर्गा को जासौन प्रिय, हरि को हरसिंगार.
गणपति चाहें दूब को, करिए सबसे प्यार..
*
शारद-लक्ष्मी कमल पर, 'सलिल' रहें आसीन.
पाट रहा तालाब नर, तभी हो रहा दीन..
३-४-२०१७
***
त्रिपदियाँ
*
हर मंच अखाडा है
लड़ने की कला गायब
माहौल बिगाड़ा है.
*
सपनों की होली में
हैं रंग अनूठे ही
सांसों की झोली में.
*
भावी जीवन के ख्वाब
बिटिया ने देखे हैं
महके हैं सुर्ख गुलाब
*
चूनर ओढ़ी है लाल
सपने साकार हुए
फिर गाल गुलाल हुए
*
मासूम हँसी प्यारी
बिखरी यमुना तट पर
सँग राधा-बनवारी
*
पत्तों ने पतझड़ से
बरबस सच बोल दिया
अब जाने की बारी
*
चुभने वाली यादें
पूँजी हैं जीवन की
ज्यों घर की बुनियादें
*
देखे बिटिया सपने
घर-आँगन छूट रहा
हैं कौन-कहाँअपने?
*
है कैसी अनहोनी?
सँग फूल लिये काँटे
ज्यों गूंगे की बोली
३-४-२०१६
***
बुन्देली दोहे
महुआ फूरन सों चढ़ो, गौर धना पे रंग।
भाग सराहें पवन के, चूम रहो अॅंग-अंग।।
मादल-थापों सॅंग परंे, जब गैला में पैर।
धड़कन बाॅंकों की बढ़े, राम राखियो खैर।।
हमें सुमिर तुम हो रईं, गोरी लाल गुलाल।
तुमें देख हम हो रए, कैसें कएॅं निहाल।।
मन म्रिदंग सम झूम रौ, सुन पायल झंकार।
रूप छटा नें छेड़ दै, दिल सितार कें तार।।
नेह नरमदा में परे, कंकर घाईं बोल।
चाह पखेरू कूक दौ, बानी-मिसरी घोल।।
सैन धनुस लै बेधते, लच्छ नैन बन बान।
निकरन चाहें पै नईं, निकर पा रए प्रान।।
तड़प रई मन मछरिया, नेह-नरमदा चाह।
तन भरमाना घाट पे, जल जल दे रौ दाह।।
अंग-अंग अलसा रओ, पोर-पोर में पीर।
बैरन ननदी बलम सें, चिपटी छूटत धीर।।
कोयल कूके चैत मा, देख बरे बैसाख।
जेठ जिठानी बिन तपे, सूरज फेंके आग।।
३-४-२०१६
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क्षणिका
कानून और आदमी
*
क़ानून को
आम आदमी तोड़े
तो बदमाश
निर्बल तोड़े
तो शैतान
असहाय तोड़े
तो गुंडा
समर्थ या नेता
तोड़े तो निर्दोष
और अभिनेता
तोड़े तो
सहानुभूति का पात्र.
३-४-२-१३
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एक रचना:
बिन तुम्हारे...
*
बिन तुम्हारे सूर्य उगता, पर नहीं होता सवेरा.
चहचहाते पखेरू पर डालता कोई न डेरा.

उषा की अरुणाई मोहे, द्वार पर कुंडी खटकती.
भरम मन का जानकर भी, दृष्टि राहों पर अटकती..

अनमने मन चाय की ले चाह जगकर नहीं जगना.
दूध का गंजी में फटना या उफन गिरना-बिखरना..

साथियों से बिना कारण उलझना, कुछ भूल जाना.
अकेले में गीत कोई पुराना फिर गुनगुनाना..

साँझ बोझिल पाँव, तन का श्रांत, मन का क्लांत होना
याद के बागों में कुछ कलमें लगाना, बीज बोना..

विगत पल्लव के तले, इस आज को फिर-फिर भुलाना.
कान बजना, कभी खुद पर खुद लुभाना-मुस्कुराना..

बिन तुम्हारे निशा का लगता अँधेरा क्यों घनेरा?
बिन तुम्हारे सूर्य उगता, पर नहीं होता सवेरा.
३-४-२०११
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