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रविवार, 23 अप्रैल 2023

विलियम शेक्सपियर

जन्म दिवस पर स्मरण- 

विलियम शेक्सपियर

इंग्लैंड के राष्ट्रीय कवि विलियम शेक्सपियर, १६ वीं शताब्दी के कालजयी अंग्रेजी कवि, नाटककार और अभिनेता थे। वे अंग्रेजी भाषा के सबसे महान लेखक और प्रख्यात नाटककार के रूप में व्यापक हैं। इनका उपनाम “बार्ड ऑफ़ एवन” था। उन्होंने ३८ नाटकों, १५४ सोनेट, २ लंबी कथाकाव्य और कुछ अन्य छंद जिनमें से कुछ की औथोर्शिप अनिश्चित है की रचना की। इनके नाटकों का विश्व की सभी प्रमुख भाषाओं में अनुवाद व अभिनीत किया गया है। शेक्सपियर ने लगभग अंग्रेजी के लगभग १७०० शब्दों की रचना की।

इंग्लैंड के वारविकशायर में स्ट्रेटफोर्ड – अपॉन – एवन शहर में विलियम शेक्सपियर का जन्म २६ अप्रैल सन १५६४ को हुआ था। इनके पिता जॉन शेक्सपियर एक सफल स्थानीय व्यापारी तथा स्ट्रेटफोर्ड की सरकार में जिम्मेदार अधिकारी एवं वर्ष १५६९ में मेयर थे। शेक्सपियर की माता मर्री शेक्सपियर एक पड़ोसी गाँव के धनी जमींदार की बेटी थीं। अपने माता-पिता की ८ संतानों में से विलियम शेक्सपियर तीसरे तथा सबसे बड़े पुत्र थे।

१८ वर्षीय विलियम शेक्सपियर और २६ वर्षीय ऐनी की शादी के ६ महीने बाद इन्हें एक बेटी हुई तथा इसके बाद इनके २ जुड़वाँ बच्चे हम्नेट और जूडिथ हुए। हेम्नेट की११ साल की उम्र में मृत्यु हो गई। सुसंना का विवाह जॉन हाल से तथा जूडिथ की शादी थॉमस क़ुइनी से हुई। विलियम ने अपने नाट्य कैरियर की शुरुआत सन १५८५ में की। सन १५९२ में उन्होंने लन्दन मंच पर अपने कैरियर की शुरुआत की तथा शीघ्र ही बहुत प्रसिद्ध हो गए। रोबर्ट ग्रीने, शेक्सपियर के प्रखर आलोचक थे। सन १५९३-९४ में ‘वीनस एंड एडोनिस’ कविता जिसमें वीनस की यौन उन्नति तथा एडोनिस के एवेंचुअल रिजेक्शन को दर्शाया गया है, हेनरी रिओथेस्ले (साउथएम्प्टन के एर्ल) को समर्पित की। ‘दी रेप ऑफ़ लूक्रेस’ कविता में लूक्रेस के भावनात्मक उबाल (टर्मोइल) को प्रस्तुत किया है जिसका तर्क़ुइन ने रेप किया था। दोनों कविताएँ बहुत लोकप्रिय हुईं। शेक्सपियर ने ‘अ लवर्स कंप्लेंट’ कविता में एक महिला की संक्षिप्त कहानी बताई जो अपने प्रेमी द्वारा प्रलोभन के कारण पीड़ित थी। और‘दी फोनिक्स एंड दी टर्टल’ कविता में फोनिक्स एवं प्रेमी की मौत के शोक को व्यक्त किया।

१५९४ के बाद से शेक्सपियर के लगभग सभी नाटक लन्दन में एक अग्रणी कंपनी में चेम्बर्लेन द्वारा प्रदर्शित किये गए। शेक्सपियर ने सन १५९९ में अपना स्वयं का थिएटर खरीदा और उसका नाम ग्लोब रखा। शेक्सपियर की प्रतिष्ठा एक नाटककार और अभिनेता के रूप में बहुत तेजी से बढ़ी। सन १६०३ में महारानी एलिज़ाबेथ की मौत के बाद, उन्हें एक शाही पेटेंट के साथ एक कम्पनी द्वारा सम्मानित किया गया। शेक्सपियर ने स्वयं के तथा दूसरों के लिखे कई नाटकों (‘एव्री मेन इन हिज हुमौर’, ‘सेजनस हिज फॉल’, ‘दी फर्स्ट फोलियो’, ‘एस यू लाइक इट’, ‘हैमलेट’ और ‘हेनरी 6’ आदि) में अभिनय कार प्रसिद्धि पाई। उन्होंने लगभग ३७ नाटक लिखे तथा स्ट्रेटफोर्ड में एक विशाल हवेली खरीदी जिसका नाम 'न्यू हाउस' रखा। शेक्सपियर ने लेस में रियल अचल संपत्ति खरीदी तथा सफल व्यवसायी रहे।

सन १६०९ में, शेक्सपियर ने १५४ सॉनेट लिखे। सॉनेट उनकी खुद की विशिष्ट काव्य शैली थी जिसमें असामान्य प्यार और जुनून की अभिव्यक्ति थी। शेक्सपियर नवताप्रेमी (इनोवेटिव) भी थे। सॉनेट में मेटाफोर्स और र्हेटोरिकल फ्रेसेस को जोड़कर अपने तरीके की पारंपरिक (कन्वेंशनल)शैली थी। शेक्सपियर के अधिकांश नाटकों में एक छंद पैटर्न की उपस्थिति रहती थी जोकि 'अनराइम्ड आयंबिक पेंटामीटर' (आगे काव्य पंक्तियाँ होती थीं। उनके लेखन के आरंभ में शेक्सपियर ज्यादातर ऐतिहासिक चरित्र जैसे ‘रिचर्ड २’, ‘हेनरी ५’, ‘हेनरी६’ आदि पर लेखन करते थे। केवल एक अपवाद था ‘रोमियो एंड जूलिएट'। शेक्सपियर एक बहुमुखी प्रतिभावान व्यक्ति थे जिन्होंने अपने व्यापक काम के साथ विभिन्न शैलियों को सफलतापूर्वक अपनाया। शेक्सपियर के नाटकों में रोमांस के साथ – साथ कॉमेडी भी होती थी। शेक्सपियर ने मानव व्यवहार विश्वासघात, प्रतिकार, अनाचार, नैतिक विफलता आदि को उत्कृष्टता के साथ ‘हेमलेट’, ‘किंग लीयर’, ‘ऑथेलो’ और ‘मैकबेथ’ आदि में प्रस्तुत किया। अधिकतर दुखांत लेखन के कारण उन्हें 'डार्क ट्रेजेडीस' शैली के अंतर्गत आ गए. का कहा गया। उनका अंतिम काम था ट्रेजेडी और कॉमेडी दोनों को मिलाकर एक त्रासद हास्यमय (ट्रेजेडिककॉमेडीस) नाटक का लेखन। इसमें एक दुखद कहानी का सुखद अंत था। सन १६१० तक शेक्सपियर ने बहुत से नाटक लिखे. यह अनुमान लगाया जाता है कि उनके लिखित पिछले तीन नाटक जॉन फ्लेचर के साथ सहयोग में थे, जो किंग’स मेन थिएटर ग्रुप के लिए शेक्सपियर के बाद नाटककार के रूप में सफल हो गया। सन १६१३ में शेक्सपियर स्ट्रेटफोर्ड से रिटायर हो गए। विलियम शेक्सपियर की अपने जन्म दिन के दिन पहले २३ अप्रैल सन १६१६ को मृत्यु हो गई। चर्च के रिकॉर्ड के अनुसार, वे ५ अप्रैल सन १६१६को होली ट्रिनिटी चर्च के चांसल में अपनी पत्नी और २ बेटियों के साथ थे।

शेक्सपियर की सूक्तियाँ -

१. सबसे प्यार करो, कुछ पर भरोसा करो, किसी का भी बुरा मत करो।

२. मूर्ख को लगता है कि वह बुद्धिमान है, बुद्धिमान व्यक्ति जानता है कि वह मूर्ख है।

३. महानता का डर नहीं हैं। कुछ महान पैदा ही होते हैं, महानता प्राप्त करने के लिए।

४. प्यार, आँखों के साथ नहीं बल्कि मन के साथ देखा जाता हैं और इसलिए पंखों का लोभ करने वालों को अंधा चित्रित किया गया है।

५. गलतियाँ हमारे सितारों में नहीं, अपने आप में है।

६. मैं दिमागी लड़ाई में आपको चुनौती देता हूँ, लेकिन मैं देख रहा हूँ कि आप निहत्थे हैं।

७. अच्छा या बुरा कुछ नहीं होता, सोच अच्छा या बुरा बनाती है।

८. नियति को पकड़ना सितारों में नहीं, अपने आप में होता है।

१०. नर्क खाली है और सभी शैतान यहाँ हैं।

११. हम जानते है कि हम क्या हैं लेकिन ये नहीं जानते कि क्या हो सकते हैं?

१२. शब्द हवा की तरह आसान है; वफादार दोस्त खोजने में मुश्किल है।

१३. सच्चे प्यार का रास्ता कभी आसान नहीं होता।

१४. अपना प्यार किसी ऐसे पर बर्बाद मत करों, जिसे इसकी कद्र नहीं।

१५. ख़ुशी और हँसी के साथ पुरानी झुर्रियां भी आतीं हैं।

यह सोनेट विलियम शेक्सपियर द्वारा रचित सुंदर सोनेट १ से सोनेट १२९ तक फैले 'फेयर यूथ' (सुंदर यौवन) शीर्षक सबसे बड़े खंड का भाग है। इन कविताओं में कवि एक युवक के प्रति अपने प्रेम और आदर को अभिव्यक्त करता है।

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SONNET 29, Year1609

When, in disgrace with fortune and men’s eyes,
I all alone beweep my outcast state,
And trouble deaf heaven with my bootless cries,
And look upon myself and curse my fate,

Wishing me like to one more rich in hope,
Featured like him, like him with friends possessed,
Desiring this man’s art and that man’s scope,
With what I most enjoy contented least;

Yet in these thoughts myself almost despising,
Haply I think on thee, and then my state,
(Like to the lark at break of day arising
From sullen earth) sings hymns at heaven’s gate;

For thy sweet love remembered such wealth brings
That then I scorn to change my state with kings.

हो निरादर ही बदा जब भाग्य में, हर आँख में,
मैं अकेला रुदन करता हूँ बहिष्कृत राज्य में,
और बहरे स्वर्ग को दो कष्ट, बिन पदत्राण चीख, 
और देखो मुझे, दो अभिशाप मेरे भाग्य को;

दो बधाई मुझे, ज्यों संपन्न ज्यादा आस में, 
प्रदर्शित उसकी तरह, हों मित्र भी उसकी तरह, 
लिए चाहत इस मनुज की कला, उसके क्षेत्र की, 
हुआ आनंदित अधिक जिससे हुआ संतुष्ट कम;

यद्यपि इन विचारों में 'आत्म' मेरा है तिरस्कृत, 
हो मुदित मैं सोचता हूँ आप पर, निज जगह पर,  
जिस तरह हो लार्क उगते दिवस के अवसान में, 
सुनसान भू से भजन गाता स्वर्ग के मुख द्वार पर; 

संपदा लाता मधुर जो याद तेरे प्यार की
मना करता मैं न बदलूँ भाग्य अपना नृपति से। 
***


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